डायनासोर काल का ‘जिंको बाइलोवा’ इस जू में है मौजूद, जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर

 देहरादून डायनासोर का जिक्र होते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं, लेकिन उस काल की यादें एक पेड़ के रूप में अब भी धरती पर जिंदा है। 270 मिलियन साल पुराने जिंको बाइलोवा नामक इस पेड़ के लिए दून की सरजमीं भी मुफीद है। देहरादून जू में पिछले साल रोपे गए जिंको बाइलोवा के पांच पौधों ने जड़ें जमा ली हैं। जू में आने वाले सैलानियों को अलग किस्म की पत्तियों वाले ये पौधे अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इससे उत्साहित वन महकमा अब औषधीय महत्व के जिंको बाइलोवा के पौधे अन्य क्षेत्रों में भी रोपने की योजना बना रहा है।

जिंदा जीवाश्म कहा जाने वाला जिंको बाइलोवा, जिंकोगेशिया परिवार की एकमात्र जीवित बची वृक्ष प्रजाति है। डायनासोर काल से पृथ्वी पर पाए जाने वाले इस पौधे के संरक्षण को लेकर हुए प्रयासों के बाद अब इसने उत्तराखंड में भी जड़ें जमानी शुरू की हैं। उत्तराखंड वानिकी शोध शाखा रानीखेत के वैज्ञानिकों ने पूर्व में जिंको बाइलोवा की प्रजाति के क्लोन उगाने में कामयाबी हासिल की थी। अब जिंकोबाइलोवा ने देहरादून जू में भी दस्तक दी है। पिछले वर्ष 21 जुलाई को ‘दैनिक जागरण’ की पर्यावरण संरक्षण के लिए छेड़ी गई मुहिम ‘पौधे लगाएं-वृक्ष बचाएं’ के तहत जू में जिंको बाइलोवा के पांच पौधे लगाए गए थे।

वन मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत के हाथों यह पौधारोपण हुआ था। ये सभी पौधे सालभर में बेहतर ढंग से खिल उठे हैं। देहरादून जू के रेंज अधिकारी एमएम बैजवाण बताते हैं कि जिंका बाइलोवा के पौधे सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र भी हैं। विशिष्ट प्रकार की पत्तियों के कारण सैलानी इसके बारे में जू कर्मियों से जानकारी लेते हैं। वह बताते हैं कि इन पौधों की देखभाल सामान्य पौधों की तरह ही हो रही है। सिर्फ सर्दी में पाले से इनका बचाव किया जाता है। औषधीय महत्व भी कम नहीं देहरादून जू के निदेशक पीके पात्रो विभिन्न शोधों का हवाला देते हुए बताते हैं कि जिंको बाइलोवा का पेड़ 30 मीटर तक ऊंचा हो सकता है। यह औषधीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।

चीन में इसका कई पारंपरिक दवाओं में प्रयोग होता है। कई शोधों में बात सामने आई है कि ग्लूकोमा, दमा, एलर्जी, अल्जाइमर्स जैसे रोगों के उपचार में यह मददगार है। अन्य क्षेत्रों में भी लगेंगे पौधे देहरादून जू में जिंकोबाइलोवा के पौधों के जड़ें जमाने से वन महकमा उत्साहित है। जू के निदेशक के अनुसार जू में इसके और पौधे लगाने के साथ ही इसे दूसरे क्षेत्रों में भी रोपित करने की योजना पर विचार चल रहा है।

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