दिल्ली महिला आयोग की जिद्दी अध्यक्ष स्वाति आज दोपहर दो बजे तोड़ेंगी अनशन
उन्नाव और कठुआ में गैंगरेप की घटनाओं के विरोध में दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल आज दसवें दिन अपना अनशन तोड़ेंगी. शनिवार को ही केंद्रीय कैबिनेट ने 12 साल तक की बच्ची से रेप के दोषियों को मौत की सजा देने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है. केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद ही स्वाति ने रविवार को दोपहर दो बजे अनशन तोड़ने का ऐलान किया है. पिछले दस दिनों के दौरान स्वाति का वजन काफी गिर गया है. वह सिर्फ पानी पी रही हैं.
पिछले दस दिनों के दौरान अनशन स्थल राजघाट पर स्वाति से मिलने के लिए कई बड़ी सामाजिक-राजनीतिक हस्तियां पहुंची थीं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, जेडीयू सांसद अली अनवर के अलावा भाजपा के बागी नेता शत्रुघ्न सिन्हा भी स्वाति से मिलने पहुंचे चुके हैं. केजरीवाल ने जब उनसे अनशन तोड़ने की अपील की तो स्वाति ने कहा था कि मैं जानती हूं कि पीएम मोदी जिद्दी हैं, लेकिन मैं भी उन्हीं की बेटी हूं, अगर वे जिद्दी हैं तो मैं ज्यादा जिद्दी हूं.
केंद्र के फैसले पर स्वाति मालीवाल ने कहा कि अध्यादेश में लिखा है कि 12 साल तक की बच्ची से बलात्कार पर फांसी की सजा होगी और मामले की सुनवाई 6 महीने में पूरी होगी. देशभर में नए फास्ट ट्रैक कोर्ट और स्पेशल टीमें बनाई जाएंगी, जो रेप केस की जांच करेंगी. मालीवाल ने ये भी कहा कि मैं प्रधानमंत्री का आभार प्रकट करती हूं. अनशन ख़त्म होगा, लेकिन संघर्ष जारी रहेगा. इससे पहले पॉक्सो एक्ट में संशोधन पर मालीवाल ने कहा कि केंद्र सरकार ने पहला कदम उठाया है.
"I know PM is very Ziddi, But main bhi unhi ki Beti hu, Agar Woh Ziddi hai, Toh Main Zyada Ziddi hu"
I wont end my fast until he listens and accepts our demands.
pic.twitter.com/O7mMHKRzXA#चलो_राजघाट
— Swati Maliwal (@SwatiJaiHind) April 19, 2018
उन्होंने कहा कि मैं इस फैसले का स्वागत करती हूं, ये आपकी मेहनत जज़्बे और तपस्या का नतीजा है. मालीवाल ने कहा कि शनिवार सुबह प्रधानमंत्री को खत लिखा था कि कानून सैकड़ों हैं, लेकिन उन्हें लागू कैसे किया जाए, ये बड़ी बात है, देश में और फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बनेंगे तो अच्छा होगा. इससे पहले स्वाति ने कहा था कि हमारी 4 मांगें हैं, उनमें से एक मांग फांसी की है. अगर ऐसा होता है तो आंदोलन की जीत मानूंगी. इस देश में सैकड़ों कानून हैं, लेकिन उन्हें लागू करने के लिए जरूरी संसाधनों का अभाव है. ऐसे में इन कानूनों का कोई अर्थ नहीं रह जाता है.