एमपी में कैसे ढह गई थी कांग्रेस की सरकार…

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के अंदर फिर से तनातनी हैं। केंद्र बिंदू में पांच साल पुरानी कहानी हैं। कहानी यह है कि मध्य प्रदेश में 17 माह पुरानी सरकार कैसे गिर गई? ज्योतिरादित्य सिंधिया कमलनाथ से नाराज हुए या दिग्विजय सिंह से। इस पर एक बार फिर से नई बहस छिड़ गई हैं। दिग्विजय सिंह ने एक इंटरव्यू में दावा किया कि कमलनाथ की वजह से ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़कर चले गए। इसके बाद कमलनाथ ने भी पलटवार करते हुए दिग्विजय सिंह को जिम्मेदार ठहरा दिया। आइए हम आपको बताते हैं कांग्रेस की सरकार गिरने की नींव कैसे पड़ी थी? ये पुरानी तस्वीर उसी दौर की है, जब कांग्रेस सत्ता में काबिज थी और आंतरिक खेमे में तनातनी चल रही थी। राहुल गांधी ने कमलनाथ और सिंधिया के बीच जारी सियासी वॉर को कम करने की कोशिश की थी, पर वो भी असफल रहे डैमेज कंट्रोल करने में। उस समय भी इस तस्वीर के बाद समझौते का दावा किया गया था। पार्टी कार्यकर्ताओं में एक भरोसा भरा गया था, लेकिन सारे दावे कोरे साबित हो गए थे। भाजपा को 109 और कांग्रेस को 114 सीट मिली थी दरअसल, 2018 के विधानसभा चुनाव में 15 साल बाद मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी। इसमें शिवराज के नेतृत्व वाली भाजपा को 109 और कांग्रेस को 114 सीट मिली थी। इसके अलावा एक सीट सपा, दो बसपा और चार पर निर्दलीय विधायक चुनाव जीते थे। कांग्रेस निर्दलीय, बसपा और सपा विधायक के साथ मिलकर सरकार बनाने जा रही थी। ऐसे में पार्टी के सामने सबसे बड़ा सवाल था कि सीएम पद का चेहरा कौन होगा? इस रेस में दो नाम सबसे आगे चल रहे थे, जिसमें तत्कालीन कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ थे। दोनों के समर्थक अपने अपने तरीके से दावेदारी पेश कर रहे थे। वहीं, पार्टी के अंदर भी इसे लेकर मंथन चल रहा था। कई दिनों के मंथन के बाद राहुल गांधी ने एक तस्वीर शेयर की उस तस्वीर में बायी तरह कमलनाथ और दायी तरह ज्योतिरातिरादित्य सिंधिया थे। उस तस्वीर के साथ ही कमलनाथ की सीएम के रूप में ताजपोशी की घोषणा हो गई थी। सिंधिया की सरकार और संगठन में सुनवाई नहीं हो रही थी इस घोषणा को सिंधिया के समर्थक स्वीकार ने को तैयार नहीं थे। वे भोपाल से दिल्ली तक नारेबाजी कर रहे थे। आलाकमान ने उनको शांत करने के लिए उनके समर्थक विधायकों को उनके हिसाब से मंत्रिमंडल में जगह दी साथ ही मनपसंद विभाग भी दिए। इसके बाद एमपी में कांग्रेस की सरकार चलने लगी। वहीं, इनके समर्थकों के मन की बात बार-बार छलक कर बाहर आती रही कि सीएम नहीं तो प्रदेश अध्यक्ष ही बना दों। लेकिन सरकार और संगठन में सुनवाई नहीं हो रही थी। इस बीच कमलनाथ के खेमे के लेागों ने यह हवा उड़ानी शुरू कर दी कि उनके लोग उनके लिए सीएम पद की दावेदारी कर रहे है, जबकि विधायक दल की मीटिंग में उन्हें सात ही वोट मिले थे। यही बात कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के लिए काल बन गई हैं। कांग्रेस ने डबल लीडरशिप प्रयोग किया मध्य प्रदेश की राजनीति को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रभु पटैरिया बताते है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में डबल लीडरशिप प्रयोग किया था। राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट थे। इसके एक वरिष्ठ और एक युवा नेता की जोड़ी। इसी तरह मध्य प्रदेश में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया थे। कमलनाथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे और ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव अभियान समिति का संयोजक बनाया गया था। सीएम की रेस से दिग्गी ने खुद को बताया बाहर वह चुनाव सभी नेताओं ने पूरी ताकत से लड़ा। उस चुनाव में दिग्विजय सिंह ने भी बहुत मेहनत की थी। उस समय दिग्विजय सिंह ने नर्मदा प्रक्रिया पैदल यात्रा की थी। खासकर ट्रायबल सीटों पर। उनकी नर्मदा प्रक्रिया का धार्मिक के साथ ही राजनीतिक उद्देश्य भी था। हालांकि दिग्विजय सिंह चुनाव से पहले ही कह चुके थे कि वह मुख्यमंत्री समेत किसी पद की रेस में नहीं हैं। उनका लक्ष्य सिर्फ प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाना हैं। चुनाव में कांग्रेस की भाजपा से ज्यादा सीटें आई और विधायक दल के नेता का चुनाव हुआ, जिसमें कमलनाथ को ज्यादा विधायकों का समर्थन मिला।
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