यूपी: पूरे प्रदेश में बिजली कटौती, 2065 मेगावाट की उत्पादन इकाइयां ठप

यूपी: पूरा प्रदेश भीषण कटौती से परेशान है। ऊर्जा मंत्री की चेतावनी के बाद बिजली व्यवस्था पटरी पर नहीं आ पा रही है। कई गांवों में दस घंटे से कम बिजली मिल पा रही है।

प्रदेश की बिजली व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ की चेतावनी और ऊर्जा मंत्री एके शर्मा की नाराजगी भी बेअसर साबित हो रही है। कागजों में बिजली भरपूर है। कम मांग और तकनीकी कारणों से 2065 मेगावाट की उत्पादन इकाइयां बंद कर दी गई हैं, लेकिन हकीकत इससे अलग है। उपभोक्ता कटौती झेलने को मजबूर हैं। स्थिति यह है कि गांवों में बमुश्किल 10 घंटे बिजली मिल रही है। इसे देखते हुए अब फीडरवार निगरानी की रणनीति बनाई गई है।

प्रदेश में करीब 3.50 करोड़ उपभोक्ता है। 10 जून रात को 10.45 बजे 32 हजार मेगावाट बिजली आपूर्ति का रिकॉर्ड बन चुका है। इन दिनों 23566 मेगावाट की मांग है। कागजों में शहरी इलाके में 24 घंटे और गांवों में 18.50 घंटे आपूर्ति का दावा है, लेकिन हकीकत एकदम अलग है। शहरों में लोग ट्रिपिंग से परेशान हैं। लखनऊ में ही 24 घंटे में 8 से 10 बार ट्रिपिंग आम बात हो गई है। ग्रामीण इलाकों का बुरा हाल है। बिजली आपूर्ति के दावे और हकीकत में करीब 8 घंटे का अंतर है। इस अंतर को लोकल फाल्ट नाम दिया गया है। किसी भी स्थान पर फाल्ट होने पर उसे ठीक करने में घंटों लग रहे हैं। इससे उपभोक्ता परेशान हैं। ऊर्जा क्षेत्र के जानकारों के मुताबिक यह प्रबंधकीय असफलता है।

कम मांग के चलते बंद की गईं इकाइयां
प्रदेश में इन दिनों 2065 मेगावाट बिजली उत्पादन ठप है। सरकारी क्षेत्र में ओबरा की यूनिट दो की 660 मेगावाट की इकाई बॉयलर लीकेज और यूनिट नौ की 200 मेगावाट की इकाई अन्य तकनीकी गड़बड़ी से बंद है। ऐसे ही हरदुआगंज की 105 मेगावाट और पनकी की 660 मेगावाट की इकाई बिजली की कम मांग की वजह से पांच अगस्त तक बंद की गई है। निजी क्षेत्र की टांडा की 440 मेगावाट की चार यूनिटें भी 31 जुलाई तक कम मांग के चलते बंद की गई हैं।

दावे और हकीकत में अंतर की वजह
ऊर्जा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कागज में रोस्टर के अनुसार बिजली आपूर्ति होने के बाद उपभोक्ताओं को घंटों कम बिजली मिलने की कई कारण हैं। लाइनें 20 से 30 किलोमीटर लंबी और जर्जर हैं। ग्रामीण इलाकों में कर्मचारियों की पहले से कमी है। फाल्ट ढूंढने में वक्त लगता है। वे बताते हैं कि यदि कहीं इंसुलेटर फट गया है तो पोल टू पोल चेक करने में समय लगता है। ग्रामीण क्षेत्रों में 132 केवी के बिजलीघर दूर-दूर हैं। यदि दिल्ली की तरह तीन से पांच किलोमीटर पर डीपीएम (जॉइंट बॉक्स) बन जाए तो ट्रिपिंग की जल्दी जानकारी मिल जाएगी। एक जेई के भरोसे दो से तीन उपकेंद्र हैं। इससे भी आपूर्ति प्रभावित होती है।

ब्रेक डाउन रोकें, रोस्टर खत्म कर 24 घंटे हो आपूर्ति
बारिश के मौसम में ब्रेक डाउन होना स्वाभाविक है। इससे निपटने के लिए पहले से रणनीति बनानी चाहिए। निगरानी तंत्र को मजबूत करने की जरूरत है। निगमों को रोस्टर खत्म करके 24 घंटे आपूर्ति करना चाहिए। ऐसे में लोकल फाल्ट होने पर कम से कम 15 से 18 घंटे बिजली मिल सकेगी।– अवधेश कुमार वर्मा, अध्यक्ष, विद्युत उपभोक्ता परिषद

मैन पॉवर की कमी से निगरानी तंत्र फेल
बिजली होने के बाद भी उपभोक्ताओं को नहीं मिलने का मतलब है कि प्रबंधन पूरी तरह से फेल है। ऊर्जा निगमों में मैटेरियल और मशीन है, लेकिन मैन पॉवर गायब है। ब्रेक डाउन की निगरानी करने वाले पेट्रोलमैन के पद खत्म हो गए। लाइनमैन नाम मात्र के हैं। करीब 20 हजार संविदाकर्मियों की छंटनी कर दी गई। लिहाजा निगरानी तंत्र फेल हो गया है।– शैलेंद्र दुबे, अध्यक्ष, ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन

फीडर स्तर पर बनाई गई रणनीति का दिखेगा असर
लोकल फाल्ट दूर करने के लिए फीडर स्तर पर रणनीति बनाई गई है। तारों से लेकर ट्रांसफार्मर तक में सुधार हो रहा है। आरडीएसएस योजना के तहत सुधार के कार्य हो रहे हैं। जल्द ही इसका असर दिखेगा। उपभोक्ता जितनी बिजली लें, उसका बिल भी अनिवार्य रूप से अदा करें। इससे बिजली सुधार के कार्य तेज होंगे और सबको राहत मिलेगी। – डॉ. आशीष कुमार गोयल, अध्यक्ष, पॉवर कॉर्पोरेशन

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