
भोपाल : एमपी में चार महीने बाद विधानसभा चुनाव होना है. यही तो सही वक्त है मतदाता सूची में किसी का नाम जुड़वाने या कटवाने का! इन दिनों यही खेल यहां जोरदार तरीके से चल रहा है. मतदाता सूची में नाम जुड़वाना या कटवाना यूं तो बड़ी जटिल प्रक्रिया नजर आती है, लेकिन यह प्रक्रिया केवल आम लोगों के लिए जटिल है. अगर आप आम नहीं खास हैं, रुतबे वाले हैं और आपने किसी जिला निर्वाचन कार्यालय में ठेके पर काम कर रहे वेंडर को पटा लिया, तो किसी का भी नाम कटवाना या जुड़वाना कोई मुश्किल काम नहीं है.
बीते साल शिवपुरी जिले के कोलारस और अशोकनगर के मुंगावली विधानसभा के उपचुनाव में फर्जी मतदाताओं के मामले ने तूल पकड़ा था और शिवपुरी के जिलाधिकारी आयोग के निशाने पर भी आए थे. कांग्रेस की ओर से प्रदेश में 25 लाख से ज्यादा फर्जी मतदाता बनाए जाने का आरोप लगातार लगाया जा रहा है.
नया मामला टीकमगढ़ जिले के पूर्व मंत्री यादवेंद्र सिंह बुंदेला और उनके परिवार के सदस्यों का आया है. उन सभी के नाम मतदाता सूची से गायब हो गए हैं. बुंदेला ने जो अधिकृत सूची निकलवाई थी, उसमें सभी के नाम थे, मगर 20 जिन बाद जिला निर्वाचन कार्यालय से जो सूची जारी हुई, उसमें से नाम गायब मिले. मामले ने जब तूल पकड़ा तो विकासखंड स्तरीय अधिकारी (बीएलओ) की जिम्मेदारी निभा रहे सबसे कमजोर कर्मचारी यानी एक सहायक शिक्षक को निलंबित कर दिया गया.
राज्य के उप मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी एस.एस. बंसल ने शुक्रवार को आईएएनएस को बताया कि नाम काटने के लिए बीएलओ द्वारा फॉर्म-7 को भरा जाना जरूरी है. उसके बाद ही मतदाता सूची से नाम हटाए जा सकते हैं. उन्होंने यह भी स्वीकारा कि एक निजी कंपनी के द्वारा ठेके के वेंडरों की तैनाती की गई है, जो नाम कंप्यूटर में दर्ज करते हैं और उनका साथ तहसीलदार या अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) के कार्यालय के कर्मचारी भी देते हैं.
टीकमगढ़ में जो हुआ, वह सरकारी मशीनरी में बने ‘सुराख’ को जाहिर करने के लिए काफी है. बीएलओ ने 7 नंबर फॉर्म भरा ही नहीं, मगर सुपरवाइजर ने जांच कर ली और सूची तहसीलदार कार्यालय को दे दी गई. नाम काटने की सूची में बुंदेला के परिवार का नाम नहीं है. लेकिन निर्वाचन कार्यालय ने जो सूची जारी की है, उसमें भी बुंदेला के परिवार का नाम नहीं है.
बुंदेला को जब पता चला तो उन्होंने सवाल उठाए. उनका कहना है कि यह साजिश है और इसमें बड़े स्तर के अधिकारी शामिल हैं, मगर जिस कर्मचारी का कसूर ही नहीं है, उसे निलंबित कर दिया गया.
चुनाव प्रक्रिया से जुड़े एक अधिकारी ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि बीएलओ फॉर्म-7 भरकर देता है, जिसे सुपरवाइजर क्रॉस चेक करके तहसीलदार या एसडीएम कार्यालय में देता है, उसी के आधार पर कंप्यूटर में नाम दर्ज किए जाते हैं या काटे जाते हैं. वे इस बात को मानते हैं कि अफसरों का पासवर्ड कंप्यूटर वेंडर के पास होता है. यह सब भरोसे पर चलता है, लेकिन वेंडर चाहे तो गड़बड़ी कर सकता है. संभव है, टीकमगढ़ में ऐसा ही कुछ हुआ हो.
सूत्रों का कहना है कि राज्य के कई हिस्सों से इस तरह के मामले सामने आ रहे हैं. बड़ी संख्या में एक तरफ नाम जोड़े जा रहे हैं तो दूसरी ओर नाम काटे भी जा रहे हैं. बीएलओ इससे बेखबर हैं. बीएलओ ने कई जिलों में आपत्ति भी दर्ज कराई है कि उन्होंने नाम जोड़ने और काटने का फॉर्म दिया नहीं, फिर भी नाम काटे और जोड़े गए हैं. बेबस बीएलओ कहते हैं, “मेरी शिकायतों पर कोई गौर नहीं कर रहा है.”
फर्जी वोटरों की बात सामने आने के बाद राज्य निर्वाचन अधिकारी की ओर से की गई कार्रवाई में लाखों मतदाताओं के नाम काटे गए हैं. अब भी लाखों मतदाताओं के नाम को लेकर विवाद की स्थिति है. इन शिकायतों और खुलासों ने निर्वाचन आयोग की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं.