जम्मू-कश्मीर में 4जी इंटरनेट बहाली पर एलजी के बयान की सत्यता जांचेंगे, केंद्र ने SC से कहा
केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल (एलजी) और भाजपा नेता राम माधव के उन बयानों की सत्यता का पता लगाएगी जिनके अनुसार घाटी में 4जी इंटरनेट सेवा बहाल की जा सकती है। केंद्र ने इसके साथ ही गैरसरकारी संगठन (एनजीओ) की याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए कुछ समय देने का अनुरोध किया।
जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने एनजीओ ‘फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स’ की अवमानना याचिका पर सुनवाई सात अगस्त के लिए स्थगित कर दी। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभक्त करने की अगस्त, 2019 की घोषणा के समय से ही यहां 4जी इंटरनेट सेवाएं निलंबित हैं।
शीर्ष अदालत में मंगलवार को सुनवाई शुरू होते ही जम्मू-कश्मीर प्रशासन की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें केंद्र के जवाब पर याचिकाकर्ता का लंबा-चौड़ा प्रत्युत्तर मिला है, जिसके अनुसार 4जी इंटरनेट सेवा पर पाबंदियों की विशेष समिति ने समीक्षा की है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के हलफनामे का जवाब देने के लिए उन्हें कुछ वक्त दिया जाए। एनजीओ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने मेहता के अनुरोध का विरोध नहीं किया और कहा कि उन्हें सोमवार शाम को ही जवाबी हलफनामे की प्रति दी गई है।
उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल ने हाल ही में बयान दिया था कि घाटी में 4जी इंटरनेट सेवा बहाल की जा सकती है। इसी तरह का बयान भाजपा नेता राम माधव ने भी दिया था। अहमदी ने कहा कि इन बयानों पर गौर किया जाना चाहिए। केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि इन बयानों का सत्यापन करने की आवश्यकता है। केंद्र सरकार और जम्मू कश्मीर प्रशासन ने 16 जुलाई को अदालत को सूचित किया था कि इस केंद्र शासित प्रदेश में 4जी इंटरनेट सेवा बहाल करने के मुद्दे पर शीर्ष अदालत के निर्देश के अनुसार एक विशेष समिति का गठन किया जा चुका है।
अटॉर्नी जनरल ने जम्मू कश्मीर में आतंकवादी घटनाएं बढ़ने का दावा करते हुए कहा था कि प्रशासन के अधिकारियों के विरुद्ध कोई अवमानना का मामला नहीं बनता क्योंकि उन्होंने शीर्ष अदालत के 11 मई के निर्देशों का पालन किया है। न्यायालय ने 11 मई को जम्मू कश्मीर में 4जी इंटरनेट सेवाओं को बहाल करने की याचिकाओं पर विचार करने के लिए केंद्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता में विशेष समिति के गठन का आदेश दिया था।