कारगिल विजय दिवस के 21 साल: कल, आज और कल

26 जुलाई को देश कारगिल युद्ध में विजय की 21वीं सालगिरह मनाएगा। कैसे जीता गया वह युद्ध, देश की सैन्य शक्ति और सीमा पर मुस्तैदी के मामले में अब हम कहां आ खड़े हुए हैं, चीन के साथ वर्तमान तनातनी और पाकिस्तान की छद्म चालों के बीच रक्षा तंत्र की उत्तरोत्तर मजबूती इत्यादि विषयों पर कारगिल युद्ध के दौरान डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशन की भूमिका निभाने वाले पूर्व सेना प्रमुख जनरल एनसी विज और इस युद्ध के एक और महानायक पूर्व वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल (रिटा.) एवाई टिपनिस से इस अवसर पर विशेष चर्चा की जागरण संवाददाता आदित्य राज ने। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश :

पूरी दुनिया ने माना लोहा : जनरल विज कारगिल युद्ध का स्थान पूरी दुनिया के इतिहास में अलग है। अचानक युद्ध सामने आ गया था। अकसर दो देशों के बीच यदि युद्ध होता है, तो इसकी तैयारी पहले से चलती रहती है। किंतु कारगिल युद्ध के बारे में कुछ भी पता नहीं था। दुश्मन 16 से 18 हजार फीट की ऊंचाई पर था और हम छह से सात हजार फीट नीचे। सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि दुश्मनों को मारना कितनी बड़ी चुनौती थी। एक-एक जवान ने अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास किया था। उसी जीत का परिणाम है कि अब चीन भी हमसे सामने से युद्ध करने की हिम्मत नहीं जुटा सकता है।

21 बरस में थल सेना की ताकत बढ़ी है, लेकिन ताकत से अधिक चुनौती बढ़ी है। अब सेना के सामने चीन और पाकिस्तान के साथ एकसाथ युद्ध करने की चुनौती है। कम समय के लिए यदि लड़ाई हुई तो दोनों भारतीय सेना पानी पिला देगी, इतनी तैयारी हमेशा रहती है। अत्याधुनिक हथियारों की कमी नहीं है। सेना हर तरह की लड़ाई को लेकर प्रशिक्षित है। लंबे समय की लड़ाई के लिए हथियारों का भारी भंडार होना चाहिए। हालांकि अब देश के भीतर मिसाइल सहित कई प्रकार के अत्याधुनिक हथियार बनाए जाने लगे है।

चीन से लड़ने को रहें तैयार : टिपनिस

कारगिल युद्ध सबसे अलग इसलिए था क्योंकि दुश्मन की संख्या कितनी है, कहां छिपे हैं, किस तरह के हथियार उनके पास हैं आदि के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी। सबसे बड़ी बात यह थी कि दुश्मन 18 हजार फीट तक की ऊंचाई पर बैठा था। छोटी सी जगह के लिए वायु सेना का इस्तेमाल करना उचित नहीं था, लेकिन करना पड़ा। यदि वायु सेना का इस्तेमाल नहीं किया जाता तो अपने देश के जितने जवान हताहत हुए उसमें दस गुणा की बढ़ोतरी हो जाती। वायु सेना को 18 हजार फीट की ऊंचाई पर बमबारी करने का अभ्यास भी नहीं था। अधिक से अधिक 10 से 12 हजार फीट की ऊंचाई तक ही बमबारी करने का अभ्यास था। सिग्नल कमजोर हो जाता था। बम कहां गिराना है, यह पता नहीं चलता था।

शुरुआत में मिग-23, मिग 21 का इस्तेमाल किया गया। मिग-25, मिग-27 एवं मिग-29 तक का इस्तेमाल किया गया। मिराज के इस्तेमाल ने पूरी तरह पासा ही पलट दिया। पहली बार लेजर गाइडेड बम का इस्तेमाल किया गया। कारगिल युद्ध के बाद देश की ताकत काफी बढ़ी है। तीनों सेना की ताकत में काफी इजाफा हुआ है। आज भारतीय सेना दुनिया की ताकतवर सेनाओं में से एक है। रडार सिस्टम काफी मजबूत हुआ है। ट्रांसपोर्ट सिस्टम को काफी मजबूत किया गया है।

मिसाइलों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। हेलीकॉप्टर की संख्या बढ़ी है। हर मौसम में भारतीय सैनिक किसी भी इलाके में दुश्मन से बेहतर तरीके से मुकाबले करने में सक्षम हैं। लेकिन लगातार तैयारी जारी रखनी होगी। आने वाले दिनों में जब 36 राफेल, 12 नए सुखोई-30 के साथ ही 21 नए मिग-29 लड़ाकू विमान बेड़े में जुड़ जाएंगे, तो शक्ति और बढ़ेगी। मिग-21 और मिग-27 को चलता करने की आवश्यकता है। इनकी जगह नए लड़ाकू विमान की व्यवस्था करनी चाहिए। चीन से युद्ध तय है। जब तक टल रहा है तब तक टल रहा है। लिहाजा हमें अपनी ताकत बढ़ाने पर लगातार जोर देना होगा।

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