
छत्तीसगढ़ के भिलाई स्टील प्लांट में मंगलवार को काम के दौरान धमाका हो गया, जिसमें 10 कर्मचारियों की मौत हो गई, वहीं नौ लोग बुरी तरह झुलस गए हैं। घायलों के सेक्टर नौ अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
सूत्रों के मुताबिक कोको ओवन में गैस सप्लाई करने वाली पाइप में दो विस्फोट हुए हैं। हालांकि अभी विस्फोट होने के कारणों के बारे में खुलासा नहीं हुआ है। गौरतलब है कि भिलाई स्टील प्लांट में कई वर्षों से मेंटेनेंस कार्य में विलंब होने को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं।
भिलाई स्टील प्लांट के आधुनिकीकरण के लिए यूपीए सरकार के कार्यकाल में 18 हजार करोड़ रुपए की योजना बनी, 2007 से शुरु हुई, लेकिन अब तक पूरी नहीं की जा सकी। नतीजा, प्लांट का उत्पादन लगातार गिरता गया। इस वर्ष भी हालात बदतर हैं। हाल ही स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भिलाई स्टील प्लांट पहुंचे थे। पुराने काम को पूरा करने का दावा करते हुए पीएम के हाथों राष्ट्र को समर्पित कराया गया लेकिन नतीजा फिलहाल सिफर ही है।
बीएसपी के पूर्व अफसरों की सुस्ती या अधिक लापरवाही का खामियाजा देश भुगत रहा है। सुनहरे दौर से बदतर हाल तक 1957 में रूस की मदद से स्थापित बीएसपी ने आजादी के बाद देश को आत्मनिर्भर बनाने में योगदान दिया।
स्वतंत्र भारत के विकास में हर क्षेत्र को इससे मिले फौलादी इस्पात ने मजबूती दी। देश के हर हिस्से से पहुंचे लाखों श्रमिक परिवारों ने लौह नगरी को घर बनाया और देश की मजबूती में हाथ बढ़ाया।
क्यों बरती गई लापरवाही
समय पर धमन भट्ठीयों (फर्नेस) की मरम्मत न होने से उत्पादन लगातार घटता रहा है। मशीनें पुरानी हो चुकी हैं, स्ट्रक्चर जर्जर और प्लांट बूढ़ा हो गया है। समय के साथ जिस अंतराल में रखरखाव होना चाहिए, नहीं किया गया। यह गंभीर जांच का विषय है कि लापरवाही क्यों की गई।
निजीकरण को बल
महारत्न उपक्रम स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सेल) की इकाइयों के लगातार घटते उत्पादन और घाटे ने इनके निजीकरण को ही बल दिया है। तीन इकाइयां सेलम, विश्वेश्वैरया और अलॉय स्टील प्लांट इस ओर बढ़ चुकी हैं। आशंका जताई जा रही है कि ऐसे ही हालात रहे तो अगला नंबर भिलाई स्टील प्लांट का हो सकता है।
सेल की सभी इकाइयों में बीएसपी का प्रदर्शन सबसे अच्छा होता था। मौजूदा समय में खराब हालात से गुजर रहा है। सूत्र यह भी दावा कर रहे हैं कि आधा वित्तीय वर्ष खत्म होने को है लेकिन उत्पादन लुढ़क चुका है। यहां कभी प्रतिदिन 16 हजार टन से ज्यादा इस्पात तैयार होता था, आठ हजार तक लुढ़कने के बाद बमुश्किल 11-12 हजार पर पहुंचा है। जबकि एशिया की सबसे बड़ी धमन भट्टी-8 भी चालू है। इसकी क्षमता 8400 टन रोज इस्पात बनाने की है।