
दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट टीम के मुख्य कोच शुकरी कोनराड की बयानबाजी ने भारत-दक्षिण अफ्रीका टेस्ट सीरीज के बीच अचानक बड़ी बहस खड़ी कर दी है। कोनराड ने मैच के चौथे दिन कहा कि उनकी टीम का इरादा था कि भारत ग्रोवेल करे। क्रिकेट में यह शब्द सामान्य रणनीतिक बयान जैसा लग सकता है, लेकिन इसके पीछे एक गहरा नस्लीय इतिहास और सांस्कृतिक अपमान जुड़ा है, जिसकी वजह से यह टिप्पणी विवादों में आ गई। टेस्ट के पांचवें दिन का खेल शुरू होने से पहले अनिल कुंबले जैसे दिग्गज और खुद दक्षिण अफ्रीका के महान तेज गेंदबाज डेल स्टेन ने इस बयान की आलोचना की। आइए जानते हैं, इस शब्द से इतना विवाद क्यों हो रहा है…
दक्षिण अफ्रीका की रणनीति और बयान का संदर्भ
गुवाहाटी टेस्ट में दक्षिण अफ्रीका ने भारत पर 548 रन की बढ़त बनाने के बाद अपनी पारी घोषित की। इस रणनीति के बाद भारत ने स्टंप्स तक दो विकेट खो दिए और आखिरी दिन जीत के लिए 522 रन की असंभव चुनौती का सामना कर रहा है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में कोनराड ने कहा, ‘हम चाहते थे कि भारत मैदान पर थक जाए। हम चाहते थे कि वे बिल्कुल ग्रोवेल करें। यह वाक्य मैं चुरा रहा हूं। हम मैच उनकी जद से बिल्कुल बाहर करना चाहते थे।’ यानी उनकी टीम दूसरे टेस्ट के चौथे दिन भारतीय टीम को पूरी तरह घुटनों के बैठा दें। हालांकि, इस शब्द ने कई पूर्व खिलाड़ियों और दर्शकों को नाराज कर दिया है।
कोनराड के इस बयान से तनाव पैदा हो गया है, लेकिन उन्होंने कहा कि वह इंग्लैंड के दिवंगत कप्तान टोनी ग्रेग के मशहूर इंटरव्यू से एक वाक्य चुरा रहे हैं, जो उन्होंने 1976 में क्लाइव लॉयड की वेस्टइंडीज टीम के खिलाफ सीरीज से पहले बोला था। ग्रेग की टीम वह सीरीज 0-3 से हार गई थी।
‘ग्रोवेल’ शब्द क्यों आपत्तिजनक है?
‘ग्रोवेल’ शब्द का मतलब होता है- ‘घुटनों के बल सर झुकाकर रेंगना या यूं कहें जमीन के बल लेटना।’ लेकिन क्रिकेट इतिहास में यह नस्लवाद और गुलामी की दर्दनाक पीड़ा से जुड़ा शब्द है, विशेषकर अश्वेत खिलाड़ियों के संदर्भ में। दक्षिण अफ्रीकी मूल के श्वेत क्रिकेटर ग्रेग ने यह शब्द दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद और कैरेबियाई खिलाड़ियों के संदर्भ में इस्तेमाल किया था जहां दासता का दर्दनाक इतिहास रहा है। अभी यह पता नहीं है कि क्रिकेट दक्षिण अफ्रीका ने विरोधी टीम के बारे में आपत्तिजनक संदर्भ इस्तेमाल करने वाले अपने अश्वेत कोच से बात की है या नहीं।
1976 का विवाद: जब पहली बार फूटा गुस्सा
यह विवाद पहली बार 1976 इंग्लैंड बनाम वेस्टइंडीज सीरीज के दौरान सामने आया था। तब इंग्लैंड के कप्तान टोनी ग्रेग, जो स्वयं दक्षिण अफ्रीका में पले-बढ़े थे, ने बीबीसी इंटरव्यू में कहा था, ‘मैं चाहूंगा कि वेस्टइंडीज की टीम ग्रोवेल करे।’ यह बयान अश्वेत खिलाड़ियों के लिए गुलामी और दास प्रथा की भाषा जैसा माना गया। वेस्टइंडीज कप्तान क्लाइव लॉयड ने कहा था, ‘ग्रोवेल शब्द किसी भी अश्वेत व्यक्ति का खून खौला देने के लिए काफी है।’ इसके बाद वेस्टइंडीज खिलाड़ियों ने इंग्लैंड को हराकर सीरीज 3-0 से जीत ली और मैच के दौरान ग्रेग को मजाक में घुटनों पर झुककर दर्शकों के सामने माफी मांगनी पड़ी थी।
कोनराड का बयान से वापस क्यों उभरा मुद्दा?
दक्षिण अफ्रीका का अतीत ही नस्लीय भेदभाव और अपार्थाइड से जुड़ा रहा है। ऐसे में उसी देश के कोच द्वारा यह शब्द इस्तेमाल करना कई लोगों को असंवेदनशील और गैरजरूरी लगा। क्रिकेट विशेषज्ञों का मानना है कि चाहे नीयत अपमान की न रही हो, लेकिन इस शब्द का इतिहास इतना विवादित है कि इसे बोलना ही भड़काऊ माना जाएगा।
कुंबले, पुजारा और स्टेन ने आलोचना की
पांचवें दिन के खेल के शुरू होने से पहले अनिल कुंबले ने कहा कि जब आपकी टीम विश्व टेस्ट चैंपियन हो और किसी भी टेस्ट में मजबूत स्थिति में हो तो इस तरह के विवादित बयान से बचना चाहिए। तब आपको विनम्रता दिखानी चाहिए अपने शब्दों में क्योंकि आपने अपने खेल से जवाब दे दिया है और ऐतिहासिक जीत के करीब हैं। इस तरह के बेतुके बयान बाजी और शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘इस शब्द के साथ इतिहास जुड़ा है। पचास साल पहले एक इंग्लैंड कप्तान ने यही शब्द महान वेस्टइंडीज टीम के खिलाफ इस्तेमाल किया था, और हम सब जानते हैं कि उसके बाद क्या हुआ था।’ कुंबले ने आगे कहा, ‘हो सकता है कि दक्षिण अफ्रीका ने सीरीज जीत ली हो, लेकिन जब आप शीर्ष पर होते हैं, तो आपके शब्दों की अहमियत बढ़ जाती है। ऐसे समय में विनम्रता सबसे जरूरी होती है। मुझे कोच या सपोर्ट स्टाफ से ऐसी टिप्पणी की उम्मीद नहीं थी। जब आप जीत रहे होते हैं, तो सबसे पहले विनम्र रहना चाहिए, न कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में ऐसी बातें कहना। टीम की जगह कोनराड खुद को हेडलाइन में लाना चाहते थे।’
वहीं, स्टेन ने भी आपत्ति जताई और कहा कि वह कोनराड के बयान से सहमत नहीं हैं और इसकी आलोचना करते हैं। पुजारा ने पांचवे दिन के खेल से पहले कहा, ‘इस तरह की बात चोट पहुंचाती है। मुझे नहीं लगता कि यह बयान ड्रेसिंग रूम में किसी को अच्छा लगा होगा। इसका सबसे अच्छा जवाब शब्दों से नहीं, बल्कि मैदान पर प्रदर्शन से देना है। हम इस स्थिति में इसलिए हैं क्योंकि हमने अच्छा क्रिकेट नहीं खेला और अब जवाब बल्ले से देना होगा, बातों से नहीं।’