
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की खण्डपीठ ने प्लास्टिक बैग और कैरी बैग पर राज्य सरकार के बैन को सही ठहराते हुए कहा कि राज्य कानून बनाने में वैधानिक रूप से सक्षम है। इसके साथ ही प्लास्टिक कैरी बैग्स पर प्रतिबंध लगाने की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली प्लास्टिक निर्माताओं की याचिकाएं खारिज कर दी गईं।
राज्य सरकार द्वारा 24 मई 2017 को आदेश जारी कर पूरे प्रदेश में प्लास्टिक बैग और कैरी बैग पर प्रतिबंध लगा दिया था। सरकार के इस आदेश को सतना के दिलीप कुमार भोजवानी सहित प्रदेश के कई अन्य व्यापारियों ने याचिका दायर हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
याचिका में कहा गया कि इस आदेश के जरिए जैव अन्ना श्यता अपशिष्ट नियंत्रण अधिनियम 2017 संशोधन अधिनियम लागू कर प्लास्टिक कैरी बैग के निर्माण, विक्रय, उपयोग और भंडारण पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके पूर्व राज्य के निर्माताओं, व्यापारियों को सूचना नहीं दी गई। इसके चलते उनके गोदामों में रखा कच्चा-पक्का माल बड़ी तादाद में जाम हो गया।
वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ ने कोर्ट को बताया कि प्लास्टिक बैग, कंटेनर या अन्य संबंधित उत्पादों पर यह प्रतिबंध नहीं है। इस तरह से यह आदेश असंवैधानिक और निरस्त किए जाने योग्य है। सरकार की ओर से अधिवक्ता अमित सेठ ने कहा कि विधि द्वारा प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए राज्य ने यह निर्णय लिया है।
रिसाइकल कर निर्मित प्लास्टिक बैग को कैरी बैग माना जाएगा। कैरी बैग का उपयोग रेडी टू ईट खाद्य पदार्थों को पैक करने में नहीं किया जाएगा। वहीं विक्रयपूर्व सामग्री रखकर पैक करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले प्लास्टिक बैग कैरी बैग की श्रेणी में नहीं आएंगे। ये प्राकृतिक रंग में होना चाहिए। इसकी मोटाई पचास माइक्रोन से अधिक नहीं होनी चाहिए। अंतिम सुनवाई के बाद कोर्ट ने याचिकाएं निरस्त कर दीं।