बर्बादी की कगार पर प्राचीनतम जीवाश्म, सुरक्षा पर उठ रहे सवाल

संजय कृष्ण, रांची। दुनिया में सर्वाधिक प्राचीन जीवाश्म (फॉसिल्स) अभी तक उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के सलखन नामक स्थान में मिले हैं। इन्हें करीब एक सौ 50 करोड़ साल पुराना माना जाता है। अभी झारखंड में राजमहल की पहाड़ियों में 118 करोड़ साल पुराने जीवाश्म मिले हैं। इन्हें देखने वाला कोई नहीं। सरकारी उदासीनता और फॉसिल्स पार्क की कल्पना को साकार करने की लेटलतीफी के कारण दुनिया की यह धरोहर बर्बादी की कगार पर पहुंच गई है।

सिद्धो-कान्हू विश्वविद्यालय के भू- वैज्ञानिक डॉ.रणजीत कुमार सिंह कहते हैं, साहिबगंज सिद्धो कान्हू स्टेडियम में हो रही खोदाई में जीवाश्म मिले हैं। शायद यह पहली खोज है, जिसमें पांच से आठ इंच का एक लेयर ही मिला है। उनका दावा है कि कनाडा आदि देशों में इसे राष्ट्रीय संपत्ति का दर्जा प्राप्त है। इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, मैक्सिको जैसे देशों के वैज्ञानिक यहां आकर अध्ययन कर चुके हैं।

इसके बाद भी सरकार का कोई ध्यान इस ओर नहीं है। भू-पर्यटन की व्यापक संभावनाएं सरकार जीवाश्म पार्क बना रही है, लेकिन रफ्तार बहुत धीमी है। यहां भू- पर्यटन की व्यापक संभावनाएं हैं। जीवाश्म की सुरक्षा शोध के साथ पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए जरूरी है। इसके लिए आजादी के बाद से ही प्रयास हो रहा है, लेकिन जमीन पर नहीं उतर सका और धीरे-धीरे चीजें बर्बाद हो रही हैं। संताल परगना भू- वैज्ञानिकों के लिए ज्ञान का भंडार है।

धरती पर किसी समय जिंदा रहने वाले प्राचीन सजीवों के परिरक्षित अवशेषों या उनके द्वारा चट्टानों में छोड़ी गई छापों को, जो धरती की सतहों या चट्टानों की परतों में सुरक्षित पाए जाते हैं, जीवाश्म कहलाते हैं।

1- साहिबगंज जिले में वनस्पति जीवाश्म के शोध अध्ययन से उस दौर के हालात का पता लगेगा। पर्यावरण और भविष्य की योजना के बारे में जानकारी मिल सकती है।

2 -साहिबगंज जिले में प्राकृतिक संपदा व संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, जिसके अध्ययन और शोध से कई रहस्यों से पर्दा उठ सकेगा।

3 – देश और विदेश में ग्रामीण विकास तेजी से हो रहा है। जीवाश्म पार्क स्थापित होने से संताल परगना का विकास भी हो सकता है।

जीवाश्म की सुरक्षा के प्रति सरकार संवेदनशीलता नहीं दिखा रही

दुनिया के प्राचीनतम जीवाश्म झारखंड में साहिबगंज की राजमहल की पहाड़ियों में मिले हैं। इनकी सुरक्षा के प्रति सरकार संवेदनशीलता नहीं दिखा रही है।’

-रणजीत कुमार सिंह, भू-वैज्ञानिक, सिद्धो-कान्हू विश्वविद्यालय, साहिबगंज, झारखंड

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