सरकार ने फिर दिए संकेत, जल्द वजूद में आएंगे ये चार जिले

देहरादून : प्रदेश सरकार द्वारा विधानसभा के बजट सत्र के दौरान चार नए जिलों के गठन की मंशा स्पष्ट किए जाने के बाद नए जिलों का मसला एक बार फिर गर्माने के आसार बन गए हैं। हालांकि, पिछले दो विधानसभा चुनावों के दौरान नए जिले महज मतदाताओं को लुभाने के लिए मुद्दे के तौर पर ही इस्तेमाल किए गए, लेकिन जिस तरह त्रिवेंद्र सरकार ने एक साल पूरा होते-होते ही नए जिलों के गठन की बात कही है, उससे इस बात की संभावना अब काफी प्रबल हो गई है कि निकट भविष्य में ये जिले वजूद में आ जाएंगे। 

यूं तो उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद से ही नए जिलों के गठन की मांग उठती रही है, लेकिन इसने जोर पकड़ा वर्ष 2011 में तत्कालीन भाजपा सरकार के दौरान। उस समय मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने स्वतंत्रता दिवस पर राज्य में चार नए जिलों के गठन की घोषणा की। ये नए जिले थे कोटद्वार (पौड़ी गढ़वाल), यमुनोत्री (उत्तरकाशी), रानीखेत (अल्मोड़ा) और डीडीहाट (पिथौरागढ़)। नए जिलों के गठन का शासनादेश होता, इससे पहले ही मुख्यमंत्री पद से निशंक की विदाई हो गई और उनकी जगह आए भुवन चंद्र खंडूड़ी। खंडूड़ी सरकार ने आठ दिसंबर 2011 को शासनादेश तो कर दिया लेकिन फिर विधानसभा चुनाव के कारण मसला लटक गया। 

वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सत्ता से बेदखल हो गई। इसका नतीजा यह हुआ कि सत्ता संभालने के बाद कांग्रेस ने नए जिलों का मसला ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया। कांग्रेस सरकार के समय नए जिलों समेत तमाम नई प्रशासनिक इकाइयों के गठन के उद्देश्य से अध्यक्ष राजस्व परिषद की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय पुनर्गठन आयोग बनाकर यह मसला उसके सुपुर्द कर दिया गया। कहा गया कि नए जिलों के मुख्यालय, सीमाओं के चिह्नांकन और जिलों में सम्मिलित किए जाने वाले क्षेत्रों को लेकर विवाद को देखते हुए यह कदम उठाया गया। 

पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के दौरान जब वर्ष 2014 में नेतृत्व परिवर्तन के बाद हरीश रावत ने मुख्यमंत्री का पद संभाला तो उन्होंने नए जिलों के गठन में खासी रुचि प्रदर्शित की। रावत ने तो चार नए जिलों के स्थान पर आठ नए जिलों के गठन तक की बात कही। यह बात दीगर है कि रावत के मुख्यमंत्रित्वकाल में भी नए जिले धरातल पर नहीं उतर पाए। महत्वपूर्ण बात यह कि भाजपा और कांग्रेस, दोनों ने ही विधानसभा चुनाव में नए जिलों के गठन को मुद्दा बनाकर इस्तेमाल किया लेकिन दोनों पार्टियों की सरकारों के दौरान पिछले सात सालों से नए जिले जमीन पर उतरने की बजाए फाइलों में ही कैद होकर रह गए। 

अब मौजूदा भाजपा सरकार ने संकेत दिए हैं कि जल्द ही चार नए जिले अस्तित्व में आएंगे। ये वही चार जिले हैं, जिनकी घोषणा वर्ष 2011 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने की थी। यानी, कोटद्वार, यमुनोत्री, रानीखेत और डीडीहाट। गैरसैंण में बजट सत्र के अंतिम दिन एक सवाल के जवाब में सरकार ने यह जानकारी दी। सरकार ने कहा कि नए जिलों के गठन के संबंध में पुनर्गठन को प्राथमिकता प्रदान करते हुए पिछले साल चार जनवरी को राज्य सरकार ने एक हजार करोड़ की धनराशि का कार्पस फंड स्थापित किया। सरकार की ओर से बताया कि चारों जिलों पर फैसला पुनर्गठन आयोग की संस्तुति मिलने पर लिया जाएगा। 

 
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