जानिए ‘टीपू’ के ‘सुल्तान’ बनने का सफर, आजमगढ़ से टक्कर देने को तैयार अखिलेश यादव

 महज 26 साल की उम्र में अखिलेश यादव ने साल 2000 में कन्नौज लोकसभा सीट से उपचुनाव जीत कर राजनीति में एंट्री की. उत्तर प्रदेश में सीएम बनने से पहले अखिलेश सांसद तो थे लेकिन उनकी सबसे बड़ी पहचान मुलायम सिंह यादव के बेटे के तौर पर ही थी.

अखिलेश यादव ने इस बार लोकसभा चुनाव लड़ने का एलान किया और इसके लिए उन्होंने आजमगढ़ को चुना. इस सीट पर अखिलेश यादव का मुकाबला बीजेपी के उम्मीदवार और भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ से है. आजमगढ़ से पिछली बार अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव जीते थे, मुलायम सिंह यादव इस बार फिर मैनपुरी लौट गए हैं. यादव बनाम यादव की लड़ाई होने से इस सीट पर मुकाबला बेहद दिलचस्प हो गया है.


दरअसल आजमगढ़ सीट का इतिहास का इतिहास यादवों के पक्ष में रहा है, 1989 से हुए लोकसभा चुनाव में सिर्फ एक बार 1998 में मुस्लिम उम्मीदवार की जीत को छोड़ दें तो लगातार यादव उम्मीदवार ही यहां से जीत का परचम फहराता रहा है. आजमगढ़ लोकसभा में कुल 23 लाख वोटर हैं जिनमें चार लाख यादव और तीन लाख मुस्लिम वोटर और करीब 2.75 लाख दलित वोटर हैं.

अखिलेश यादव के सियासी सफर पर एक नजर

उत्तर प्रदेश में सीएम बनने से पहले अखिलेश सांसद तो थे लेकिन उनकी सबसे बड़ी पहचान मुलायम सिंह यादव के बेटे के तौर पर ही थी. महज 26 साल की उम्र में अखिलेश यादव ने साल 2000 में कन्नौज लोकसभा सीट से उपचुनाव जीत कर राजनीति में एंट्री की. इसके बाद अखिलेश ने साल 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में भी कन्नौज से जीत दर्ज की. इसके बाद साल 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने अप्रत्याशित सफलता हासिल की, 15 मार्च 2012 को अखिलेश यादव देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के 20वें मुख्यमंत्री बने.

2017 में कांग्रेस के साथ विधानसभा चुनाव में उतरे अखिलेश यादव को उम्मीद से भी बुरी असफलता हाथ लगी. इसके बाद समाजवाजी पार्टी और अखिलेश के परिवार दोनों में विवाद और बिखराव शुरू हो गया. समाजवादी पार्टी में दो खेमे बन गए, एक खेमा अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव की ओर था और दूसरा खेमा खुद अखिलेश संभाल रहे थे. अखिलेश के साथ उनके एक और चाचा रामगोपाल यादव भी थे. अखिलेश यादव से नाराज तत्कालीन पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को 6 साल के लिए पार्टी से निकाल दिया.

इसके बाद अखिलेश खेमे ने लखनऊ में सपा का राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाया और अखिलेश यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिया. इसके बाद मुलायम की नाराजगी और बढ़ गई, मुलायम ने अधिवेशन के सभी प्रस्तावों को रद्द दिया और रामगोपाल यादव को भी पार्टी से निकाल दिया. इसके बाद समाजवादी पार्टी और परिवार की ये कलह चुनाव आयोग के दफ्तर भी पहुंची. लंबे सियासी ड्रामे के बाद आखिरकार मुलायम सिंह यादव को झुकना पड़ा. मुलायम को पार्टी का संरक्षक बनाया गया और अखिलेश की ना सिर्फ पार्टी में वापसी हुई बल्कि राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी भी मिली. इस बीच अखिलेश के चाचा शिवपाल समाजवादी पार्टी से अलग हो गए और अपनी अलग पार्टी बना ली.

अखिलेश यादव का व्यक्तिगत जीवन
अखिलेश यादव का जन्म 1 जुलाई 1973 को उत्तर प्रदेश के इटावा में हुआ, अखिलेश के घर का नाम टीपू है. अखिलेश यादव की स्कूली शिक्षा धौलपुर सैनिक स्कूल से हुई. अखिलेश यादव ने मैसूर यूनिवर्सिटी से  सिविल इन्वाइरन्मेंटल इंजीनियरिंग में बैचलर डिग्री ली. इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वे निवर्सिटी ऑफ सिडनी चले गए, जहां से मास्टर्स किया. अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव इस बार कन्नौज से मैदान में हैं, अखिलेश और डिंपल की शादी साल 1999 में ही हो गई थी. अखिलेश यादव के  दो बेटियां (अदिति और टीना) और बेटा (अर्जुन) भी है

E-Paper