Varuthini Ekadashi 2019: इस दिन पूजा कर पायें दस हजार वर्ष के तप जितना पुण्‍य

10 हजार साल के तप के जितना पुण्‍य लाभ

बैशाख के महीने के कृष्‍ण पक्ष में पड़ने वाली वरुथिनी एकादशी इस लोक और परलोक में भी सौभाग्य प्रदान करने वाली है। वरूथिनी के व्रत से सदा सौख्य का लाभ तथा पाप की हानि होती है। यह सबको भोग और मोक्ष प्रदान करने वाली है। मान्‍यता है कि वरूथिनी के व्रत से मनुष्य दस हजार वर्षों तक की तपस्या का फल प्राप्त कर लेता है। कृष्ण पक्ष की एकादशी होने के कारण यह वानप्रस्थ सन्यास एवं विधवाओं के लिए श्रेष्‍ठ मानी जाती है यदि आप एकादशी का निष्काम व्रत कर रहे हैं तो आपको सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत को करने वाले को 1 दिन पूर्व से ही इस व्रत में संलग्न हो जाना चाहिए।

तिथि प्रारंभ और पूजा

इस बार वरुथिनी एकादशी 29 अप्रैल 2019 को रात्रि 22 बज कर 04 मिनट पर प्रारंभ होगी और एक दिन बाद 31 तारीख को मध्य रात्रि 12 बज कर 18 मिनट तक रहेगी। परंतु उदिया तिथि में होने के कारण व्रत एवम् पूजा मंगलवार को ही होगी। इस के पश्‍चात अगले दिन द्वादशी को यानि 31 अप्रैल को व्रत का पारण 06  बज कर 44 मिनट से लेकर 08 बज कर 22 मिनट के मध्‍य किया जायेगा। 30 अप्रैल 2019 को एकादशी के दिन प्रातः काल 08 बज कर 15 मिनट से पहले स्नान आदि से निवृत होकर संकल्प लेना चाहिए उसके पश्चात कुमार योग में भगवान विष्णु का विधिवत पूजन करना चाहिए इसके बाद यथा जप, यज्ञ, स्त्रोत पाठ और कीर्तन आदि करने चाहिए।

रात्रि में हरि कथा व्रत, पढ़ना स्त्रोत पाठ करना, और भजन, कीर्तन आदि के साथ जागरण करना चाहिए। द्वादशी को पुनः पूजन करने के बाद व्रत का पारण करना चाहिए।

नियम और संयम से किया जाता है व्रत

वरूथिनी एकादशी का व्रत संयमपूर्वक किया जाता है। इस एकादशी की रात्रि में जागरण करके भगवान मधुसूदन का पूजन करने से व्यक्ति सब पापों से मुक्त होकर परमगति को प्राप्त होता है। इस व्रत के माहात्म्य को पढने अथवा सुनने से भी पुण्य प्राप्त होता है। वरूथिनी एकादशी के अनुष्ठान से मनुष्य सब पापों से मुक्ति पाकर वैकुण्ठ में प्रतिष्ठित होता है। जो लोग एकादशी का व्रत करने में असमर्थ हों, वे इस तिथि में अन्न का सेवन कदापि न करें और फलाहार ही करें। वरूथिनी एकादशी महाप्रभु वल्लभाचार्यकी जयंती-तिथि भी है।

पुष्टिमार्गीय वैष्णवों के लिये यह दिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। वे इस तिथि में श्रीवल्लभाचार्यका जन्मोत्सव मनाते हैं। इस व्रत को करने वाले को काम भाव और भोग विलास से खुद को पूरी तरह दूर कर लेना चाहिए।

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