पड़ोस के इन चरमपंथी गुटों से रहना होगा, भारत को सावधान रहने को बोला, कहीं बन न जाएंं खतरा…

श्रीलंका में रविवार को हुए सिलसिलेवार आतंकी हमलों ने भारत की चिंता बढ़ा दी है। 2009 में लिट्टे के सफाए के बाद यहां पर ये सबसे बड़ा आतंकी हमला था। जिस चरमपंथी गुट की तरफ यह हमला करवाने की शक की सुई गई है उसकी एक शाखा भारत के तमिलनाडु में भी है। यहां पर चिंता की दूसरी बड़ी वजह ये भी है कि पहले केवल पाकिस्‍तान के आतंकी गुटों को लेकर ही भारत की चिंताएं बनी रहती थीं लेकिन अब श्रीलंका, म्‍यांमार, नेपाल बांग्‍लादेश और मालदीव में पनप रहे चरमपंथी गुटों को लेकर भी भारत को सतर्क रहना होगा।

श्रीलंका में लिट्टे के खात्‍मे के बाद वहां कमोबेश शांति ही थी। 1975 में इस संगठन की नींव वी प्रभाकरन ने रखी थी जो तमिलों के लिए अलग देश बनाने का हिमायती थी। लिट्टे ने न सिर्फ श्रीलंका के 15 हजार स्‍क्‍वायर किमी की जमीन पर अपना अधिपत्‍य स्‍थापित किया था बल्कि श्रीलंका समेत भारत में कई बड़े हमलों को अंजाम भी दिया। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्‍या हो गया फिर श्रीलंका के पूर्व राष्‍ट्रपति पर किया गया आत्‍मघाती हमले को भी इसी संगठन ने अंजाम दिया था। लेकिन 2009 में प्रभाकरन की मौत के साथ यह संगठन पूरी तरह से खत्‍म हो गया। इसके सफाए के साथ ही भारत को भी इसकी चिंता से मुक्ति मिल गई थी। दुनिया के करीब 32 देशों ने इसको प्रतिबंधित किया हुआ था जिसमें भारत भी शामिल था। दुनिया के करीब 52 देशों में इस संगठन की अलग-अलग नाम से शाखा खुली हुई थीं और कई अन्‍य आतंकी गुटों से भी इसकी सांठगांठ थी। लिट्टे के खात्‍मे के बाद नेशनल तोहिद जमात का नाम पहली बार 2013 में उस वक्‍त सामने आया था जब श्रीलंका के तत्‍कालीन रक्षा मंत्री ने इसके तार इस्लामिक स्टेट से जुड़े होने की बात कही थी। अब्‍दुल रैजिक इस इस संगठन का सचिव है जो अपने भड़काऊ बयानों के लिए कुख्‍यात है। वर्ष 2014 में उसने बौद्ध धर्म को लेकर बेहद आपत्तिजनक बयान दिए थे, जिसके चलते यहां पर तनाव फैल गया था। पिछले वर्ष ही इस संगठन ने भगवान बौद्ध की मूर्तियों को भी नुकसान पहुंचाया था।श्रीलंका के आतंकी हमले के बाद भारत के लिए यह बेहद जरूरी हो गया है कि वह अपने पड़ोस में पनप रहे चरमपंथी गुटों पर कड़ी नजर रखे और भारत के खिलाफ उनके कदमों को उठने से पहले ही कुचल दे। ऐसे में भारत के पड़ोसी मुल्‍कों में किस तरह के चरमपंथी और आतंकी गुट सक्रिय हैं इन पर भी नजर डालनी जरूरी हो जाती है।

भारत के पड़ोसी म्‍यांमार में सीमा पर कुछ ऐसे आतंकी संगठन हैं जो भारतीय सीमाओं पर तैनात जवानों के लिए समस्‍या बने हुए हैं। इसमें जोमी रिवोल्‍यूशनरी आर्मी और ऑल बर्मा स्‍टूडेंट्स डेमोक्रेटिक फ्रंट, नेशनल सोशलिस्‍ट काउंसिल ऑफ नागालैंड प्रमुख हैं। जहां तक एनएससीएन-के गुट की बात है तो यह अपहरण, हत्‍या, धर्म परिवर्तन समेत कई गैरकानूनी कामों में लिप्‍त है। इस गुट ने मणिपुर में तैनात जवानों के काफिले पर कई बार हमला किया है। फिलहाल इस गुट से भारत सरकार ने सीज फायर को लेकर एक समझौता किया हुआ है। इसके बाद भी इस पर कड़ी निगाह रखी गई है। इस गुट को पाकिस्‍तान समेत चीन से धन और हथियार मुहैया करवाया जाता है। इतना ही नहीं चीन इसके लोगों को ट्रेनिंग तक मुहैया करवाता है। 4 जून 2015 को दीमापुर में इस संगठन के आतंकियों ने सीआरपीएफ के काफिले पर हमला कर 18 जवानों की हत्‍या कर दी थी। इसके बाद भारतीय सेना द्वारा 9 जून 2015 को म्‍यांमार की सीमा के अंदर सर्जिकल स्‍ट्राइक को अंजाम दिया गया, जिसमें कई आतंकियों और उनके ट्रेनिंग कैंपों को खत्म कर दिया गया था।

ऑल बर्मा स्‍टूडेंट्स डेमोक्रेटिक फ्रंट की यदि बात करें तो 1988 में इसकी शुरुआत हुई थी। भारत-म्‍यांमार सीमाए म्‍यांमार-चीन सीमा पर इसके सदस्‍यता कैंप हैं। इसके अलावा इस संगठन की आस्‍ट्रेलिया और अमेरिका में भी शाखाएं हैं। म्‍यांमार सरकार और इस संगठन के बीच 2013 से ही सीज-फायर चल रहा है। जोमी रिवोल्‍यूशनरी आर्मी  की शुरुआत 1993 में हुई थी। यह हत्‍या, अपहरण और फिरौती समेत कई अन्‍य गैर कानूनी कामों में लिप्‍त हैं। इसका एनएससीएन-आईएम गुट से भी गठजोड़ है। यह भारतीय राज्‍य मणिपुर, मिजोरम समेत म्‍यांमार की सीमा से लगते इलाके में सक्रिय है। बांग्‍लादेश में कई इस्‍लामिक कट्टरपंथी संगठन देश में शरिया कानून को लागू करने की वकालत करते हैं। यहां पर धर्म के नाम पर कई बार हिंसा हो चुकी है। इतना ही नहीं विभिन्‍न मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यहां पर आतंकी संगठन आईएस दस्‍तक दे चुका है। वहीं यहां के स्‍थानीय आतंकी गुटों का भी आईएस से गठजोड़ होने को लेकर भी कुछ रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। वर्ष 2016 में यहां पर हुए आधा दर्जन से अधिक आतंकी हमलों की जिम्‍मेदारी आईएस ने ली थी। बांग्‍लादेश ने 1999 से लेकर 2017 तक कई आतंकी हमलों को झेला है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि भारत और बांग्‍लादेश की आपस में करीब 4156 किमी की सीमा मिलती है। इसमे असम (262 किमी), त्रिपुरा (856 किमी), मिजोरम (180 किमी), मेघालय (443 किमी) और पश्चिम बंगाल (2217 किमी) शामिल हैं।

बांग्‍लादेश में मौजूद जमान उल मुजाहिद्दीन का गठन 1998 में हुआ था। इस आंतकी संगठन को कुछ देशों ने प्रतिबंधित किया हुआ है। कई हमलों में यह संगठन शामिल रहा है। इसके पास करीब 10 हजार आतंकी या समर्थक हैं, जो इससे सीधेतौर पर जुड़े हैं। इसको पाकिस्‍तान से वित्‍तीय मदद मिलती है। इसका खुलासा उस वक्‍त हुआ था जब 2015 में पाकिस्‍तान हाई कमिशन के वीजा अटैची को इस संगठन को वित्‍तीय मदद देते हुए रंगेहाथ पकड़ा गया। इसके बाद कमिशन से जु़ड़े दो अधिकारियों को तुरंत बांग्‍लादेश से निकाल दिया गया था। हरकत उल जिहाद अल इस्‍लामी या हूजी की शुरुआत बांग्‍लादेश में 90 के दशक में हुई थी। वर्ष 2005 में इसको बांग्‍लादेश प्रतिबंधित कर चुका है। 2011 में इसका ऑपरेशनल कमांडर इलियास कश्‍मीरी अफगानिस्‍तान में एक ड्रोन अटैक में मारा जा चुका है। यह फरवरी 2010 में पुणे के जर्मन बेकरी बम धमाके का भी आरोपी था। पाकिस्‍तान समर्थित यह संगठन भारत में भी हमलों को अंजाम दे चुका है।

पाकिस्‍तान की बात करें तो यहां पर एक नहीं बल्कि कई आतंकी संगठन हैं जो लगातार भारत के लिए खतरा बने हुए हैं। यहां आतंकी संगठनों के आका खुलेआम घूमते हैं और सरकार समेत सेना की छत्रछाया में रहते हैं। पाकिस्‍तान सरकार और आतंकियों का गठजोड़ कोई नया नहीं है। दुनिया के सभी देश इस बात को जानते और मानते हैं। ओसामा बिन लादेन का पाकिस्‍तान में मारा जाना इसका सीधा सा एक उदाहरण है। इसके अलावा पाकिस्‍तान के पूर्व राष्‍ट्रपति और रिटायर्ड जनरल परवेज मुशर्रफ ने खुद इस बात को कबूल किया है कि उन्‍होंने आतंकी संगठनों के दम पर कारगिल युद्ध करवाया था। मुशर्रफ खुद आतंकियों को अपना हीरो बता चुके हैं। पूर्व में भारतीय खुफिया एजेंसियों ने केरल से आइएस में शामिल होने के लिए जाने वाले युवाओं के एक दल का भंडाफोड़ किया था। इस दल के बारे में अभी तक कोई ठोस जानकारी एजेंसियों के हाथ नही लगी है। इसके अलावा आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में आइएस से प्रभावित कई युवाओं को विगत में पकड़ा गया है। वैसे भारत ने शुरू से ही आइएस के प्रभाव को काटने के लिए बेहद सटीक नीति अपना रखी है। एनआइए के अलावा महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश की स्थानीय पुलिस ने आइएस की सूचना प्रौद्योगिकी आधारित गतिविधियों को रोकने के लिए विशेष उपाय किए हुए हैं। इनकी बदौलत ही कई युवाओं को एयरपोर्ट पर तब गिरफ्तार करने में सफलता मिली थी जब वे आइएस ज्वाइन करने के लिए उड़ान भरने वाले थे। इसके बावजूद कुछ भारतीय युवाओं के आइएस में शामिल होने की सूचनाएं मिली थीं। इसमें से कुछ के मारे जाने की सूचना भी एजेंसियों को मिली है। यही वजह है कि भारत श्रीलंका में इस आतंकी वारदात को लेकर ज्यादा सतर्क है।

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