मनोहर परिकर सेना में खरीदारी के दशकों पुराने सिस्टम में करना चाहते थे बदलाव

देश के पहले आईआईटियन मुख्यमंत्री मनोहर परिकर सेना में खरीदारी के दशकों पुराने सिस्टम को बदलने के लिए आतुर थे। अभी तक चले आ रहे सिस्टम को लेकर उनके मन की पीड़ा तीन साल पहले आईआईटी के युवा महोत्सव में शब्दों के जरिए बाहर आई।

देश के कर्णधारों से बातों को साझा करते हुए उन्होंने कहा था कि चीजों को बदलने में समय लग रहा है, क्योंकि दशकों पुरानी जड़ता को दूर करना काफी कठिन है। सेना को उपकरणों की बदौलत मजबूत करने की चाह को व्यक्त करते हुए परिकर ने बिना किसी देश का नाम लिए यहां तक कहा था कि वे नहीं चाहते कि कोई भी पड़ोसी उनके देश की तरफ आंखें दिखाए।

तीन साल पहले आईआईटी रुड़की के तकनीकी महोत्सव कॉग्निजेंस में पहुंचे पूर्व रक्षामंत्री मनोहर परिकर ने अपनी सादगी और वाक पटूता से युवाओं का दिल जीत लिया था। भले ही परिकर ने दुनिया को अलविदा कह दिया हो, लेकिन आईआईटी से जुड़ी यादें हमेशा ताजा रहेंगी।
पूर्व रक्षामंत्री ने अपने मन की बात की थी

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पूर्व रक्षामंत्री ने अपने मन की बात की थी। उन्होंने अपना भाषण बिना पढ़े सीधे युवाओं को संबोधित किया। उन्होंने सेना में खरीदारी के सिस्टम पर व्यथा व्यक्त करते हुए कहा था कि सिस्टम में दशकों की जड़ता को खत्म करने में काफी कठिनाई आ रही है।

उनका कहना था कि नई रक्षा खरीद नीति का उद्देश्य स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ ही लालफीताशाही को कम करना और नौकरशाही बाधाओं को दूर करना है। जिसके कारण अभी तक योजनाओं के लक्ष्य को हासिल करने में देरी होती रही है। परिकर सेना को उपकरणों से लैस करने के लिए मेक इन इंडिया कार्यक्रम के प्रति खासे उत्साहित थे। परिकर ने बताया था कि केंद्र सरकार शिक्षा के ईको सिस्टम को लेकर भी लड़ाई लड़ रही है। उन्होंने पढ़ाई के क्षेत्र में सिद्धांत, प्रयोग और नवीनता के अलावा ईको सिस्टम तैयार करने पर जोर दिया था।

अनुमान नहीं था पर पीछे से राजनीति की नदी में धकेला
पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर परिकर ने आईआईटीयंस से राजनीति में उतरने के बाबत भी विचार साझा किए थे। उन्होंने बताया था कि कई आईआईटियन अमेरिका, ब्रिटेन गए, लेकिन मैं यहां फंस गया। उन्होंने राजनीति में आने को लेकर निराले अंदाज में कहा था कि उनका राजनीति सार्वजनिक जीवन ऐसा रहा, जिसका उन्हें कभी भी अनुमान नहीं था और उन्हें राजनीति की नदी में पीछे से धकेल दिया गया। जिसमें वे तैरने में कामयाब हुए और मुख्यमंत्री से रक्षामंत्री तक बन गए।

मेस महासचिव पद ने सिखाए राजनीति के गुर
राजनीति कैसे सीखी, इसके बारे में परिकर ने छात्रों को बताया था कि वे आईआईटी में मेस के महासचिव थे। इसमें छात्रों के बीच काफी लोकप्रिय भी हो गए। तीन साल तक मेस प्रबंधन करते-करते वित्त प्रबंधन का गुर भी सीख लिया। उन्होंने आईआईटी बांबे में बिताए गए दिनों को भी छात्रों से साझा किया। बताया कि आईआईटी बांबे से बीटेक करने के बाद एमटेक पूरा नहीं किया। आईआईटी में साढ़े छह साल बिताए। जिसमें डिग्री से ज्यादा ज्ञान हासिल किया।

खुली किताब से परीक्षा सबसे कठिन होती है
भाषण के दौरान परिकर ने छात्रों की खूब तालियां बटोरी। जब उन्होंने कहा कि खुली किताब की परीक्षा सबसे कठिन होती है। उन्होंने कहा कि खुली किताब से उत्तर तलाशते समय पेज पलटने में ही पसीना निकल जाता है। इस पर आईआईटी का दीक्षांत हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से ऐसे गूंज गया। जैसे छात्र अपने निजी जीवन से उनकी बातों को स्वीकरोक्ति प्रदान कर रहे हों। इस दौरान उन्होंने तुर्की के राजा की कहानी सुनाकर छात्रों को दिल जीत लिया था।

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