मिजोरम विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी से तमाम क्षेत्रीय दल बरत रहे हैं दूरी

पू्र्वोत्तर के ईसाई-बहुल राज्य मिजोरम में तमाम क्षेत्रीय दल भाजपा से दूरी बरत रहे हैं। दरअसल, भाजपा के साथ कोई तालमेल कर वे राज्य की ईसाई भावनाओं व चर्च की नाराजगी मोल लेने का खतरा नहीं उठाना चाहते। 

यही वजह है कि एमडीए और नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस (नेडा) में उसके सहयोगी मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) तक ने उससे कन्नी काट ली है। भाजपा नेता भले यहां पार्टी की स्वीकार्यता बढ़ने का दावा कर रहे हों, लेकिन जमीनी हकीकत एकदम उलट है।

एमएनएफ और सात क्षेत्रीय दलों को मिला कर गठित जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) ने साफ कह दिया है कि वे भाजपा से कोई संबंध नहीं रखेंगे। एमएनएफ प्रमुख जोरमथांगा ने कहा है कि वे चुनाव से पहले या बाद में भाजपा के साथ कोई तालमेल नहीं करेंगे। 

पड़ोसी मेघालय, नागालैंड और मणिपुर में भाजपा के सहयोगी दल के तौर पर सरकार में शामिल एनपीपी ने भी इस राज्य में भगवा पार्टी के साथ गठजोड़ की संभावना खारिज कर दी है। एनपीपी अध्यक्ष कोनराड संगमा कहते हैं कि यहां हम भाजपा के खिलाफ मैदान में हैं।

अबकी ज्यादातर राजनीतिक पर्यवेक्षक किसी भी पार्टी को अकेले बहुमत नहीं मिलने यानी विधानसभा त्रिशंकु होने की संभावना जता रहे हैं। लेकिन जोरमथांगा का कहना है कि वे ऐसी स्थिति में भी भाजपा से सहयोग नहीं लेंगे। हालांकि उनका दावा 40 में से 32 सीटें जीत बहुमत हासिल करने का है।

भाजपा अबकी पहली बार राज्य की 40 में से 39 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि उसकी हिंदुत्ववादी छवि को इस ईसाई-बहुल राज्य में संदेह की निगाहों से देखा जा रहा है। हालांकि चर्च ने अब तक भाजपा के बारे में खुल कर कोई टिप्पणी नहीं की है।

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