CG में पहली बार हार्ट के पीछे का ट्यूमर ऑपरेट, ऐसे बची महिला की जान

 एडवांस कॉर्डियक इंस्टिट्यूट (एसीआइ) के कॉर्डियक थोरोसिक सर्जरी विभाग के डॉक्टर्स ने मरीज की जान बचने की 10 फीसद संभावना पर सर्जरी प्लान की। तीन घंटे चली सर्जरी के बाद ऑपरेशन करने वाली टीम ने राहत की सांस ली, क्योंकि वह रेअर बीमारी की सफल सर्जरी कर चुकी थी। एसीआइ के कॉर्डियक थोरोसिक सर्जन डॉ. केके साहू का दावा है कि प्रदेश में अब तक ‘पोस्टेरियल मेडिस्टेनल ट्यूमर’ ऑपरेट ही नहीं हुआ है। 35 वर्षीय अहिल्ला (बदला हुआ नाम) पूरी तरह से स्वस्थ है, उसे बुधवार को छुट्टी भी दे दी गई।

30 वर्षीय अहिल्ला मुंगेली के किसान परिवार से हैं। करीब चार महीने से उन्हें सांस लेने में समस्या हो रही थी। लगातार खांसी बनी हुई थी। परिजनों ने मुंगेली के जिला अस्पताल में जांच करवाई, वहीं एक्सरे हुआ तो स्पष्ट हो गया कि ‘पोस्टेरियल मेडिस्टेनल ट्यूमर’ यानी हार्ट के पीछे का ट्यूमर है।

जिला अस्पताल से छत्तीसगढ़ इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (सिम्स) बिलासपुर रेफर किया गया। वहां कॉर्डियक थोरोसिक सर्जन नहीं थे, इसलिए वहां से अहिल्ला को रायपुर के एसीआइ रेफर कर दिया गया।

यहां कॉर्डियक थोरोसिक सर्जन डॉ. साहू ने तमाम रिपोर्ट देखने के बाद सर्जरी का फैसला लिया। अहिल्ला से डॉ. साहू ने कहा- हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सफल होने के सिर्फ 10 फीसद चांस है। अहिल्ला का जवाब सुनिए- डॉक्टर साहब, मुझे भरोसा है कि मैं जीवित रहूंगीं। आप सर्जरी कीजिए।

हार्ट को दो सेमी दबा चुका था ट्यूमर

हार्ट के पीछे का यह ट्यूमर हार्ट को दो सेमी तक दबा चुका था। यह सांस नली, आहार नली को भी दबाए हुए थे। फेफड़े के पास तक फैल चुका था। ट्यूमर सीने के राइट साइड था, वहीं 10 सेमी चीरा लगाकर इसे ऑपरेट किया गया। ऑपरेशन के दौरान हर एक अंग को सुरक्षित बचा लिया गया। इस दौरान सिर्फ अशुद्ध रक्त को हार्ट तक लाने वाले नली कट गई थी, उसे तत्काल दुरुस्त कर दिया गया था।

वायप्सी में अनसेटिसफाइड टीशू

अहिल्ला के ट्यूमर की तीन बार वायप्सी करवाई गई। हर बार रिपोर्ट में ‘अन सेटिफाइड टिशू’, यानी की ट्यूमर के बारे में सटीक जानकारी नहीं मिल सकी।डॉ. साहू ने निर्णय लिया कि वे बगैर वायप्सी रिपोर्ट के ही ऑपरेट करेंगे। यह हाईरिस्क फैसला था, लेकिन अहिल्ला की जान बचाने के लिए दूसरा कोई विकल्प नहीं था। समय और नहीं गंवाया जा सकता था।

क्यों होता है यह ट्यूमर

‘नईदुनिया’ के इस सवाल पर डॉ. साहू का कहना है कि यह टिशू ग्रोथ है, ये न्यूरो जेनेटिक ट्यूमर होते हैं। टिशू एकाएक बढ़ने लगते हैं और फिर वे ट्यूमर का रूप ले लेते हैं। महिला को छह महीने से प्रॉब्लम थी तो माना जा सकता है कि यह छह महीने में ही 3.5 किलो बढ़ा।

ये डॉक्टर, स्टाफ थे शामिल

कॉर्डियक थोरोसिक सर्जन डॉ. केके साहू, एनिस्थियोलॉजिस्ट डॉ. ओमप्रकाश सुंदरानी, जूनियर रेसीडेंट रमेश, टेक्नीशियन राजेंद्र, चोवा। रेडियोलॉजिस्ट एवं आंबेडकर अस्पताल के रेडियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. विवेक पात्रे, सिम्स बिलासपुर के सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. लखन सिंह की भी बीमारी डायग्नोस करने में महत्वपूर्ण भूमिका रही।

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