राफेल डील: जानिए क्या है ऑफसेट करार, जिसपर कांग्रेस और बीजेपी में मचा सियासी घमासान

फ्रांस और भारत के बीच हुए राफेल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर मचे सियासी घमासान के बीच बीजेपी ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस इस डील को रद्द करा गांधी परिवार के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के करीबी संजय भंडारी की कंपनी को पीछे के दरवाजे से फायदा पहुंचाना चाहती है.राफेल डील: जानिए क्या है ऑफसेट करार, जिसपर कांग्रेस और बीजेपी में मचा सियासी घमासान

दरअसल राफेल विमान बनाने वाली कंपनी दसॉ से जब मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस एरोस्पेस टेक्नोलॉजी लिमिटेड (RATL) ने इस डील से खुद को अलग कर लिया तब संजय भंडारी की विवादित कंपनी ऑफसेट्स इंडिया सल्यूशन (OIS) ने दसॉ से ऑफसेट नियमों के तहत सौदा करने के लिए बातचीत की थी.

राफेल डील को लेकर कांग्रेस का मुख्य आरोप सरकारी कंपनी हिंदुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के साथ सौदा रद्द करअनिल अंबानी की कंपनी और दसॉ के बीच हुए ऑफसेट करार को लेकर केंद्रित है. कांग्रेस के इस आरोप को फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद के हालिया बयान से और बल मिला है.

क्या है ऑफसेट नियम?

रक्षा खरीद में ऑफसेट नियम सबसे पहले 2005 में मनमोहन सरकार की रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी) के तहत लाया गया था. इसके तहत किसी विदेशी कंपनी को सौदे का एक हिस्सा भारत में निवेश करना होता है. 126 राफेल विमानों के सौदे में 50 फीसदी ऑफसेट क्लॉज मूल निविदा का हिस्सा था. इस नियम के तहत दसॉ के पास किसी निजी कंपनी को चुनने की छूट थी, बशर्ते मुख्य प्रोडक्शन लाइन सरकारी कंपनी हिंदुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) की ओर से तैयार की जाए. 126 जेट की शुरुआती डील के तहत फ्रांस की कंपनी को भारत में ऑफसेट के तौर पर 1,07,415 करोड़ रुपये का निवेश करना था.

लेकिन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 36 राफेल विमानों की सीधी खरीद का फैसला लिया. जिसके बाद फ्रांस की तरफ से कहा गया कि जब वह उसी दर पर विमानों की आपूर्ति कर रहा है जिस पर वायु सेना खरीद रही है, तो 50 प्रतिशत ऑफसेट क्लॉज की शर्त लागू नहीं होती.  

जानें राफेल डील में यूपीए और एनडीए के दौरान हुए ऑफसेट करार

भारत के मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (MMRCA) के सौदे के लिए दसॉ ने अपने राफेल जेट को 28 अगस्त, 2007 को मैदान में उतारा था. उस समय दसॉ ने भारत में निजी पार्टनरशिप के लिए टाटा ग्रुप के साथ बातचीत शुरू की थी. दरअसल दसॉ को भारत में ऐसी मजबूत कंपनी की तलाश थी जो बड़े पैमाने पर ऑर्डर ले सके.

लेकिन टाटा ग्रुप द्वारा अमेरिकी पार्टनर को चुनने के फैसले के बाद दसॉ ने मुकेश अंबानी की रिलायंस के साथ बातचीत शुरू की. इस समय रिलायंस ऐरोस्पेस सेक्टर में उतरने की योजना बना रही थी. जिसके लिए 4 सितंबर, 2008 को एक नई कंपनी रिलायंस ऐरोस्पेस टेक्नॉलजीज लिमिटेड (RATL) बनाई गई थी.

राफेल और यूरोफाइटर को वायु सेना की ओर से शॉर्टलिस्ट किए जाने के कुछ सप्ताह बाद मई 2011 में RATL ने साझेदारी की तैयारी के मद्देनजर सीनियर एग्जिक्यूटिव्स की भर्तियां भी शुरू कर दी थी. जनवरी 2012 में जब दसॉ इस सौदे के लिए सबसे कम कीमत लगाने वाली कंपनी के तौर पर सामने आई. तब सरकार ने MMRCA के लिए दसॉ के साथ सौदा तय किया. जिसके बाद दसॉ और रक्षा मंत्रालय के बीच कीमत को लेकर मोलभाव शुरू हुई. इसमें ऑफसेट प्लान और HAL के साथ करार की शर्तें शामिल थीं.

दसॉ की ओर से तैयार किए गए ऑफसेट प्लान में कंपोजिट मैन्युफैक्चरिंग का एक सेंटर बनाना, महत्वपूर्ण तकनीकि का ट्रांसफर और फाल्कन जेट के लिए एक जॉइंट वेंचर करने के साथ ही भविष्य में स्मार्ट सिटीज में निवेश करने की योजना भी थी. जिसके लिए मुकेश अंबानी की RATL के साथ बातचीत चल रही थी. लेकिन मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज (RIL) के 2014 में रक्षा और ऐरोस्पेस के धंधे से हटने का फैसला लिया. जिस कारण यह योजना रद्द हो गई.  

मुकेश अंबानी की तरफ से डील रद्द होने के बाद 2014 में ऑफसेट्स इंडिया सल्यूशंस (OIS) नाम की एक दागी कंपनी ने दसॉ के साथ ऑफसेट नियमों के तहत बातचित शुरू की. इस कंपनी के प्रमोटर संजय भंडारी के कथित तौर पर गांधी परिवार के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के साथ संपर्क थे. 2016 में दिल्ली में OIS के दफ्तर में एक जांच के दौरान छापेमारी हुई. जिसके बाद संजय भंडारी भारत फरवरी 2017 में लंदन भाग गए. इसके बाद से यह फर्म लगभग बंद है.

2015 में मोदी सरकार ने फ्रांस की सरकार के साथ पुराना सौदा रद्द करते हए 36 राफेल विमानों की सीधी खरीद का फैसला लिया. जिसमें ऑफसेट साझेदार के तौर पर अनिल अंबानी की कंपनी को शामिल किया गया. सरकारी कंपनी HAL का जिक्र इस सौदे में नहीं रहा.

अब फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के उस बयान ने देश में सियासी भूचाल ला दिया है जिसमें उन्होने दावा किया है कि अनिल अंबानी की कंपनी का नाम भारत की तरफ से आगे बढ़ाया गया. जबकि फ्रांस की सरकार और दसॉ की तरफ से बयान जारी कर कहा गया है कि ऑफसेट करार में सरकार का कोई योगदान नहीं है और कंपनी अपनी निजी पार्टनर चुनने के लिए स्वतंत्र है.

E-Paper