बच्चों में भी बढ़ रहा है कैंसर का खतरा, जानें- क्या हैं लक्षण

बच्चों में कैंसर बहुत आम नहीं है. आबादी के आधार पर पर्याप्त आंकड़े नहीं हो पाने के कारण भारत में इस तरह के मामलों का पूरी तरह अनुमान लगाना संभव नहीं है. हालांकि,  बताया जाता है कि 14 साल से कम उम्र के बच्चों में कैंसर के लगभग 40 से 50 हजार नए मामले हर साल सामने आते हैं.

इनमें से बहुत से मामले डायग्नोस नहीं हो पाते. राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट की सीनियर डॉक्टर गौरी कपूर के अनुसार, बेहतर स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच नहीं होना या प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा कर्मियों द्वारा बच्चों में कैंसर के लक्षण की पहचान न होने की वजह से इस बीमारी का समय पर पता नहीं लग पाता है.

कैंसर से जूझ रहे बच्चों के जीवित बचने के मामलों में पिछले 30 वर्षों में सुधार हुआ है. आज की तारीख में बच्चों में कैंसर के करीब 70 प्रतिशत मामले इलाज के योग्य हैं. हैरत की बात है कि यह सुधार बच्चों में कैंसर के इलाज की नई दवाओं की खोज से नहीं आया है, बल्कि यह सुधार तीन चिकित्सा पद्धतियों-कीमोथेरेपी, सर्जरी और रेडियोथेरेपी के बेहतर तालमेल से हुआ है.

गौरी कपूर मानती हैं कि उपलब्ध थेरेपी को इलाज के नए इनोवेशन के साथ मिलाते हुए लगातार किए गए क्लीनिकल ट्रायल से यह सफलता हासिल की जा सकी है. इन क्लीनिकल ट्रायल को उत्तरी अमेरिका और यूरोप में बच्चों के इलाज की दिशा में कार्यरत विभिन्न टीमों ने अंजाम दिया है. यह बात लगातार दिखी है कि इस विशेषज्ञता से जीवन रक्षा के अवसर और गुणवत्ता में सुधार होता है.

अमेरिकन फेडरेशन ऑफ क्लीनिकल ऑन्कोलॉजी सोसायटीज की ओर से 1998 में सर्वसम्मति से प्रकाशित बयान में भी इस पर जोर दिया गया था. बयान में यह भी कहा गया था कि समय पर इलाज मिलने से बेहतर नतीजों की उम्मीद बढ़ जाती है. बीमारी को पहचानने और इलाज शुरू होने के बीच के समय को कम से कम करना चाहिए.

सभी विकासशील देशों की तरह यहां भी देरी से स्वास्थ्य केंद्र पर पहुंचने, बीमारी को पकड़ने में देरी और उचित इलाज के लायक केंद्रों तक रेफर करने की सुस्त प्रक्रिया से इलाज की दर में कमी आती है. इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इलाज का सर्वश्रेष्ठ मौका, पहला मौका ही होता है. पर्याप्त देखभाल के बाद भी अनावश्यक देरी, गलत परीक्षण, अधूरी सर्जरी या अपर्याप्त कीमोथेरेपी से इलाज पर नकारात्मक असर पड़ता है.

एक औसत सामान्य चिकित्सक या बाल चिकित्सक शायद ही किसी बच्चे में कैंसर की पहचान कर पाते हैं. बच्चों में कैंसर के लक्षणों को देखकर समझा जा सकता है कि इसकी पहचान देरी से क्यों होती है या फिर इसकी पहचान क्यों नहीं हो पाती है.

हेमेटोलॉजिकल (खून से संबंधित) कैंसर और ब्रेन ट्यूमर के अलावा बच्चों में होने वाले अन्य कैंसर जल्दी वयस्कों में नहीं दिखते हैं. बच्चों में साकोर्मा और एंब्रायोनल ट्यूमर सबसे ज्यादा होते हैं. वयस्कों में होने वाले कैंसर के बहुत से लक्षण हैं जो बच्चों में बहुत मुश्किल से दिखते हैं. बच्चों को होने वाले कैंसर में एपिथेलियल टिश्यू की भूमिका नहीं होती है. इसलिए इनमें बाहर रक्तस्राव नहीं होता या फिर एपिथेलियल कोशिकाएं बाहर पपड़ी की तरह नहीं निकलती हैं.

बच्चों में कैंसर के लक्षण-

– पीलापन और रक्तस्राव (जैसे चकत्ते, बेवजह चोट के निशान या मुंह या नाक से खून)

– हड्डियों में दर्द.

– किसी खास हिस्से में दर्द नहीं होता और दर्द के कारण बच्चा अक्सर रात को जाग जाता है.

– बच्चा जो अचानक लंगड़ाने लगे या वजन उठाने में परेशानी हो या अचानक चलना छोड़ दे.

– बच्चे में पीठ दर्द का हमेशा ध्यान रखें.

– टीबी से संबंधित ऐसी गांठें जो इलाज के छह हफ्ते बाद भी बेअसर रहें.

– अचानक उभरने वाले न्यूरो संबंधी लक्षण.

– दो हफ्ते से ज्यादा समय से सिर दर्द.

– सुबह-सुबह उल्टी होना.

– चलने में लड़खड़ाहट.

– अचानक चर्बी चढ़ना. विशेषरूप से पेट, सिर, गर्दन और हाथ-पैर पर.

– अकारण लगातार बुखार, उदासी और वजन गिरना.

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