वैश्विक स्‍तर पर मंदी के चपेट में आने की है आशंका, जाने कितनी मजबूत है इंडियन इकोनॉमी

दुनियाभर की अर्थव्यवस्था से जुड़ी संभावनाएं निराशाजनक होती जा रही हैं क्योंकि इकोनॉमी पर नजर रखने वालों को निकट भविष्य में मंदी की आशंका नजर आ रही है। रूस-यूक्रेन के बीच जंग ने पहले से आसमान छूती महंगाई को काफी अधिक बढ़ा दिया है। इससे दुनियाभर में जीवन-बसर करने की लागत चुनौतीपूर्ण स्तर तक बढ़ गई है। इस वजह से वैश्विक स्तर पर मंदी की आशंका पैदा हो गई है।

कोविड-19 के बढ़ते मामलों को काबू में करने के लिए चीन ने हाल में लॉकडाउन लगा दिया है। इस वजह से सप्लाई चेन बाधित हुई है और आर्थिक अनिश्चितता की स्थिति और विकट हो गई है। इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) ने हाल में प्रकाशित वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक में इस बात का अनुमान जाहिर किया है कि वैश्विक वृद्धि की रफ्तार 2021 के 6.1 फीसदी से घटकर 2022 और 2023 में 3.6 फीसदी पर रह जाएगी। यह अनुमान दुनियाभर में बढ़ती महंगाई के चिंताजनक आंकड़ों से प्रभावित है।

अमेरिकी अर्थव्‍यवस्‍था के हालात

अमेरिका में जून में महंगाई दर 9.1 फीसदी पर रही थी। यह 8.8 फीसदी की सबकी उम्मीद से काफी ज्यादा था। अमेरिकी ब्रोकरेज कंपनी गोल्डमैन साक्स (Goldman Sachs) के एक हालिया सर्वेक्षण के मुताबिक, अगले 12 महीनों में अमेरिका के मंदी के चपेट में आने की 30 फीसदी संभावना है। इसी तरह बैंक ऑफ अमेरिका सिक्योरिटीज के इकोनॉमिस्ट्स के मुताबिक, इस बात की 40 फीसदी आशंका है कि अगले वर्ष अमेरिका में मंदी आएगी। ये आंकड़े इस बात की ओर इशारा करते हैं कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व महंगाई दर को काबू में करने के लिए अपने प्रयास तेज करेगा। प्रमुख एनालिस्ट्स का अनुमान है कि अमेरिकी फेड रिजर्व अगले महीने आयोजित होने वाली पॉलिसी मीटिंग में ब्याज दरों में 100 बेसिस प्वाइंट्स का इजाफा कर सकता है। रेट में इजाफे से खपत के साथ-साथ ग्रोथ पर असर पड़ सकता है।

निराशाजनक संकेतकों ने गंभीर आर्थिक संकट के डर को काफी अधिक बढ़ा दिया है। हालांकि, भारत की इकोनॉमी ग्रोथ के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए सही स्थिति में है।

भारत के विकास की चाल

आत्मनिर्भर बनने की रणनीति के साथ यह देश अगले कुछ वर्षों में 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए पूरी लगन से मेहनत कर रहा है। घरेलू स्तर पर मांग में इजाफा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निवेश मुख्य रूप से वृद्धि के वाहक बनने वाले हैं। भारत सरकार ने कई बिजनेसेज को भारत में मैन्यूफैक्चरिंग फैसिलिटीज लगाने के लिए आमंत्रित किया है। इससे देश की इकोनॉमी को बूस्ट मिलेगा और साथ-ही-साथ रोजगार के मौके पैदा होंगे। भारत सरकार मेक इन इंडिया और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम्स जैसे फ्लैगशिप प्रोग्राम के जरिए देश की विनिर्माण क्षमता का पूरा इस्तेमाल करने में लगी है।

इसके साथ-ही-साथ सरकार कोविड-19 महामारी के बाद देश की इकोनॉमी को सपोर्ट करने के लिए पूंजीगत व्यय पर जोर दे रही है इन प्रयासों से मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को मजबूती मिलनी तय है।

इसके साथ ही ‘चाइना प्लस वन’ के मैक्रो इकोनॉमिक ट्रेंड से भारत के पास प्रोडक्शन हब बनने का अहम मौका है। ‘चाइना प्लस वन’ ट्रेंड का मकसद चीन से प्रोडक्शन को लेकर निर्भरता कम करना है।

यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत की इकोनॉमी मंदी से जुड़ी परिस्थितियों में किस प्रकार आगे बढ़ती है। इकोनॉमी पर नजर रखने वालों का मानना है कि तेल के आयात पर निर्भरता भारत को मंदी की आशंकाओं से बचाए रखेंगी। संभावित मंदी से दुनियाभर में कमोडिटी की कीमतों में नरमी आएगी। इससे देश आर्थिक तूफान को शांत कर पाएगा। हालांकि, एक्सपर्ट्स का अनुमान है कि भारत की इकोनॉमी पर मध्यम से लेकर शॉर्ट टर्म में मंदी के ट्रेंड का असर देखने को मिलेगा।

इन सबसे इतर यह बात अहम है कि भारत ज्यादातर घरेलू खपत पर निर्भर है। ऐसे में जब तक घरेलू स्तर पर हालात अनुकूल हैं, इस बात की आशंका बहुत कम है कि अमेरिका की मंदी का बहुत अधिक असर भारत की इकोनॉमी पर देखने को मिलेगा। अन्य विकासशील देशों की इकोनॉमी की तुलना में भारत में काफी हल्का असर देखने को मिल सकता है।

इसके परिणामस्वरूप अगले कुछ वर्षों में मौजूदा चुनौतियों के बावजूद भारत की वृद्धि दर अन्य समकक्ष अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले ज्यादा रह सकती है। दूसरे देशों के ब्रोकरेज फर्म्स और अंतरराष्ट्रीय संगठनों सहित कई ऑब्जर्वर्स का ऐसा मानना है कि भारतीय इकोनॉमी में बहुत अधिक संभावनाएं मौजूद हैं। आत्मनिर्भर भारत के एजेंडा पर जोर देकर भारत महंगाई दर के संकट और मंदी की आशंका को मौके में तब्दील कर सकता है।

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