भारतीय बल्लेबाजों की ‘बैकलिफ्ट’ में छिपा है लॉर्ड्स टेस्ट में शर्मनाक हार का सच
नई दिल्ली. बॉलीवुड का एक लोकप्रिय सॉन्ग है ‘न मैंने सिग्नल देखा.. न तूने सिग्नल देखा… एक्सीडेंट हो गया रब्बा रब्बा’. लेकिन टीम इंडिया के साथ ऐसा नहीं है. लॉर्ड्स टेस्ट में भारतीय टीम के साथ एक्सीडेंट तो हुआ पर उसका सिग्नल देखने के बाद. लॉर्ड्स की पिच पर टीम इंडिया का ये सिग्नल देखा इंग्लैंड के गेंदबाजों ने, जो कि उन्हें भारतीय बल्लेबाजों की ओर से बार-बार दिया जा रहा था. हर विकेट के बाद भारतीय बल्लेबाजों के चेहरे बदल रहे थे पर सिग्नल सबका एक ही था, जिससे इंग्लिश गेंदबाजों का काम आसान होता गया और भारत ये टेस्ट मैच सिर्फ 4 दिन में बुरी तरीके से हार गया. लॉर्ड्स टेस्ट में इंग्लैंड के गेंदबाजों को मिलने वाला भारतीय बल्लेबाजों का ये सिग्नल था उनका बैकलिफ्ट, जो कि बल्लेबाजी की तकनीक का अहम हिस्सा होता है.
‘बैकलिफ्ट’ क्या होता है?
बैकलिफ्ट होता क्या है अब जरा वो समझिए. बल्लेबाजी के दौरान बैट्समैन ने बैट अगर पीछे की ओर ऊंचा उठा रखा हो तो उसे हाई बैकलिफ्ट कहते हैं और अगर पीछे की ओर उसका बल्ला नीचे की ओर हुआ तो उसे लोअर बैकलिफ्ट कहते हैं.
बल्लेबाज के लिए हाई बैकलिफ्ट पर खेलना लोअर बैकलिफ्ट की तुलना में बेहतर माना गया है. इसकी वजह बताते हुए क्रिकेट के जानकार कहते हैं कि बल्लेबाजी के दौरान हाई बैकलिफ्ट से लोअर बैकलिफ्ट पर तो आया जा सकता है लेकिन लोअर बैकलिफ्ट से हाई बैकलिफ्ट पर जाकर शॉट खेलना आसान नहीं है.
लॉर्ड्स में भारतीय बल्लेबाजों का बैकलिफ्ट
लॉर्ड्स टेस्ट में विराट कोहली छोड़कर सभी भारतीय बल्लेबाजों का बैकलिफ्ट लोअर था. जिसका सीधा सा मतलब था कि उनका टारगेट बस गेंद को डिफेंड करना है न कि उस पर हिट करना. इंग्लैंड के गेंदबाजों ने भारतीय बल्लेबाजों की इसी चूक को पकड़ लिया और उन्होंने बिना किसी भय के उनके खिलाफ गेंदबाजी आक्रमण में जोरदार एक्सपेरिमेंट किए, जिसका फायदा उन्हें विकेट के तौर पर मिला.
बैकलिफ्ट दुरुस्त नहीं तो जीत नहीं
टेस्ट सीरीज में 0-2 से पिछड़ने के बाद भारत को तीसरा टेस्ट नॉटिंघम में खेलना है. टीम इंडिया का थिंक टैंक बेशक यहां वापसी का दम भरे लेकिन ये कमबैक तब तक संभव नहीं है जबतक कि भारतीय बल्लेबाज अपने बैकलिफ्ट को नीचे रखने के बजाए थोड़ा ऊंचा रखें.