जानें गौ माता में 33 करोड़ देवताओं का कैसे है वास, मनोकामनापूर्ण के लिए ऐसे करें पूजा

बाबा की बात सुनकर भगवान् झट से पंडित जी के पास पहुंचे और बोले –पंडित जी, आपको बाबा ने बुलाया है, गौ चारण का मुहूर्त देखना है, आप आज ही का मुहूर्त बता देना मैं आपको बहुत सारा माखन दुंगा

आज गोपाष्टमी मनाई जा रही है. भक्त आज गौ-माता की पूजा अर्चना करेंगे. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार में गाय में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है. गाय की सेवा से पुण्यफल की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि इस दिन पूरे मन से गौ-माता की आराधना करने से जातकों की हर मनोकामना पूरी होती है. गोपाष्टमी पर पढ़ें गोपाष्टमी की व्रत कथा:

गोपाष्टमी की व्रत कथा:

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान् ने जब छठे वर्ष की आयु में प्रवेश किया तब एक दिन भगवान् माता यशोदा से बोले – मैय्या अब हम बड़े हो गए हैं

मैय्या यशोदा बोली– अच्छा लल्ला अब तुम बड़े हो गए हो तो बताओ अब क्या करें…
भगवान् ने कहा– अब हम बछड़े चराने नहीं जाएंगे, अब हम गाय चराएंगे…

मैय्या ने कहा– ठीक है बाबा से पूछ लेना” मैय्या के इतना कहते ही झट से भगवान् नन्द बाबा से पूछने पहुंच गए…

बाबा ने कहा– लाला अभी तुम बहुत छोटे हो अभी तुम बछड़े ही चराओ

भगवान् ने कहा– बाबा अब मैं बछड़े नहीं गाय ही चराऊंगा

जब भगवान नहीं माने तब बाबा बोले- ठीक है लाल तुम पंडित जी को बुला लाओ- वह गौ चारण का मुहूर्त देख कर बता देंगे…

पंडित जी नन्द बाबा के पास पहुंचे और बार-बार पंचांग देख कर गणना करने लगे तब नन्द बाबा ने पूछा, पंडित जी के बात है ? आप बार-बार क्या गिन रहे हैं? पंडित जी बोले, क्या बताएं नन्दबाबा जी केवल आज का ही मुहूर्त निकल रहा है, इसके बाद तो एक वर्ष तक कोई मुहूर्त नहीं है.. पंडित जी की बात सुन कर नंदबाबा ने भगवान् को गौ चारण की स्वीकृति दे दी.

भगवान जो समय कोई कार्य करें वही शुभ-मुहूर्त बन जाता है. उसी दिन भगवान ने गौ चारण आरम्भ किया और वह शुभ तिथि थी कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष अष्टमी, भगवान के गौ-चारण आरम्भ करने के कारण यह तिथि गोपाष्टमी कहलाई.

माता यशोदा ने अपने लल्ला के श्रृंगार किया और जैसे ही पैरो में जूतियां पहनाने लगी तो लल्ला ने मना कर दिया और बोले मैय्या यदि मेरी गौएं जूतियां नहीं पहनती तो में कैसे पहन सकता हूं. यदि पहना सकती हो तो उन सभी को भी जूतियां पहना दो… और भगवान जब तक वृन्दावन में रहे, भगवान ने कभी पैरों में जूतियां नहीं पहनी. आगे-आगे गाय और उनके पीछे बांसुरी बजाते भगवान उनके पीछे बलराम और श्री कृष्ण के यश का गान करते हुए ग्वाल-गोपाल इस प्रकार से विहार करते हुए भगवान् ने उस वन में प्रवेश किया तब से भगवान् की गौ-चारण लीला का आरम्भ हुआ.

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