एक कोतवाली में चार इंस्पेक्टर, मतलब एक म्यान में चार तलवार, डीजीपी के फैसले का विरोध शुरू

एक कोतवाली में चार इंस्पेक्टर की नियुक्ति के आदेश का पुलिस महकमे में अंदरूनी तौर पर विरोध शुरू हो गया है। हालांकि कोई खुलकर सामने नहीं आ रहा है, लेकिन चर्चा है कि इंस्पेक्टरों के एक बड़े वर्ग में ही इस फैसले को लेकर विरोध के स्वर फूट रहे हैं।

वजह साफ है कि इन्हें अपने समकक्ष के निर्देशन में काम करना पड़ेगा और अलग से कोई स्टाफ भी उपलब्ध नहीं होगा। ऐसे में एक-दूसरे को मजबूत करने के बजाय कमजोर करने की कोशिश शुरू हो जाएगी।

इस मामले में पुलिस विभाग में ही अलग-अलग राय बन रही है। एक सीनियर अफसर का कहना है कि यह बहुत जोखिम भरा निर्णय है। अभी तक थानों पर सब इंस्पेक्टर के अधीन सब इंस्पेक्टर की तैनाती होती रही है। यह पुरानी व्यवस्था थी इसलिए चली आ रही थी, लेकिन अब इंस्पेक्टर के अधीन इंस्पेक्टर की तैनाती कितनी कारगर साबित होगी, यह आने वाला समय बताएगा।

पहले पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लागू करना था

रिटायर्ड डीजीपी विक्रम सिंह का कहना है कि यह प्रयोग पूरी तरह सफल होगा, इस पर संशय है। अगर इसे लागू ही करना था तो पहले पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर पूरब, पश्चिम व मध्य यूपी के एक-एक जिले में दो-तीन महीने के लिए करके देख लेना चाहिए था। इससे न सिर्फ कुछ नई चीजें सामने आतीं बल्कि कमियों को दूर करने का मौका भी होता। पूरे प्रदेश में 414 कोतवाली पर एक साथ इसे लागू करना जोखिम भरा, मगर साहसिक निर्णय है। इससे आउटपुट पर नकारात्मक फर्क पड़ेगा क्योंकि किसी भी इंस्पेक्टर की ख्वाहिश होती है कि वह थाने का प्रभारी बने। ऐसे में अगर उसे एडिशनल इंस्पेक्टर कानून-व्यवस्था, क्राइम या अपराध की जिम्मेदारी मिलती है तो वह अपने सीनियर की टांग खींचने या उसे फेल करने की अधिक कोशिश करेगा न कि आउटपुट देने की।

टकराव के हालात न बन जाएं

रिटायर्ड डीजीपी अरविंद कुमार जैन का कहना है कि फेल होने के डर से कोई प्रयोग न करें, ऐसा नहीं होना चाहिए। हालांकि इसमें नीचे के पुलिस कर्मियों में आदेशों के पालन को लेकर विवाद सामने आ सकता है। ऐसे में थानों पर कहीं टकराव जैसे हालात न पैदा हो जाएं। नई व्यवस्था से क्षेत्राधिकारियों और अपर पुलिस अधीक्षक की जिम्मेदारी अधिक बढ़ जाएगी। उन्हें इनके कामकाज की बारीकी से मॉनिटरिंग करनी होगी।

नई व्यवस्था में अतिरिक्त प्रभारी निरीक्षक को अधीनस्थ स्टाफ दिए जाने की व्यवस्था नहीं है। उन्हें पूर्व में चली आ रही व्यवस्था के अनुसार ही काम लेना होगा। ऐसे में अधीनस्थ अधिकारी कितना सहयोग करते हैं, इस पूरे प्रयोग की सफलता इसी पर निर्भर करेगी।

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