भारतीय टीम की ऑलराउंडर बनना चाहती थी हॉकी प्लेयर, किया गया खुलासा

जेमिमा रॉड्रिग्स ने अपनी जिंदगी से जुड़े तमाम किस्सों को क्रिकबज के स्पेशल शो में बताया है। जेमिमा बताती हैं, “जब मैं सात-आठ साल की थी, तब बांद्रा में हमारे चर्च के पादरी की एक बेटी थी, जो हॉकी खेला करती थी। उन्होंने मुझे एक हॉकी स्टिक दी और कहा कि मैं उसके साथ खेलूं और इस तरह से मेरे हॉकी का सफर शुरु हुआ था। हालांकि, मैं हॉकी और क्रिकेट दोनों ही खेला करती थी, लेकिन शुरुआत में मैं हॉकी ज्यादा अच्छा खेल रही थी।”

भारतीय महिला टीम के धाकड़ ऑलराउंडर जेमिमा रॉड्रिग्स बताती हैं, “जब मैं सिर्फ 11 साल की थी तभी से महाराष्ट्र के लिए अंडर-17 हॉकी टीम में खेलना शुरू कर दिया था। फिर जब मुंबई एक अलग टीम बनी तब मैंने मुंबई अंडर–19 के लिए भी खेली खेली। इसलिए मेरे माता–पिता को पूरा विश्वास था कि मैं हॉकी में ही करियर बनाउंगी।” लेकिन कभी-कभी आप और आपके घर वाले जो सोचते हैं, आप उससे भी ऊपर निकल जाते हैं।

बतौर युवा हॉकी खिलाड़ी रॉड्रिग्स को सामने आने वाली चुनौतियों का बहुत अच्छे से पता था। उन्होंने कहा, “क्रिकेट के जैसे, एक खेल के रूप में हॉकी के लिए न तो पर्याप्त पैसा होता है न ही सुविधाएं। मुझे याद है जब हम एक मैच के लिए छत्तीसगढ़ गए थे। 24-घंटे का वह सफर था। हम 18 लड़कियां थीं और हमारे पास सेकेंड क्लास की सिर्फ 4 टिकटें थीं। टूर्नामेंट के दौरान सभी 18 लड़कियों को एक ही क्लासरूम में ठहराया गया था। बाथरूम सबसे खराब थे, हमें हमारे चेहरे पुरुष मूत्रालय (मेन्स यूरीनल) में लगे पाइप से आने वाले पानी से धोना पड़ता था!”

रॉड्रिग्स को इन बातों से फर्क नहीं पड़ा और वो कहती हैं, “मुझे यह खेल इतना पसंद था कि मैं इन मामूली बातों को नज़रअंदाज़ कर इसी में बनी रहना चाहती थी।” वहीं, उनकी शुरुआत क्रिकेट में कैसे हुई? इस बारे में उन्होंने बताया, “किस्मत में जो लिखा हो वही होता है, अगले ही साल से मैंने क्रिकेट में भी बहुत अच्छा प्रदर्शन करना शुरु कर दिया। मैंने राज्य और क्षेत्रीय स्तर पर खेलना शुरु किया। आखिरकार, मेरे पिताजी मुझे एक किनारे ले गए और मुझसे कहा कि मुझे किसी एक को चुनना होगा। यह बहुत मुश्किल फैसला था, लेकिन उस समय, हॉकी की तुलना में क्रिकेट में मेरा चयन उच्च स्तर पर हो गया था, इसलिए मैंने क्रिकेट में आगे बढ़ने का फैसला कर लिया।”

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