जानिए ‘डायबिटिक रेटिनोपैथी’ के लक्षण और बचाव, पढ़े एक्सपर्ट की राय

 देश की आबादी में लगभग साढ़े आठ प्रतिशत डायबिटीज (मधुमेह) से पीड़ित लोग हैं। इस हिसाब से संभावित रेटिना रोगियों की संख्या करोड़ों में पहुंच जाती है। डायबिटिक रेटिनोपैथी एक गंभीर समस्या है। इसकी वजह से आंखों की रोशनी भी जा सकती है, लेकिन इससे बचा जा सकता है। यदि हम समय रहते इस बीमारी की पहचान कर लें। जानें क्‍या कहते है नेत्र रोग विशेषज्ञ।

नए प्रयोग : एक तरफ तकनीकी विकास का सहारा लेते हुए आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस द्वारा डायबिटिक रेटिनोपैथी की पहचान विकसित हो रही है साथ ही प्रारंभिक उपकरण भी बाजार में उपलब्ध हैं।

पीड़ित लोगों के लिए : यदि आपको मधुमेह है तो वर्ष में कम से कम एक बार पुतली फैलाकर (इनडायरेक्ट ऑप्थैल्मोस्कोपी) द्वारा रेटिना अर्थात आंखों के परदे की जांच अवश्य करवा लें। यदि जांच से यह पता चले कि आप इस समस्या से पीड़ित हैं तो घबराएं नहीं। नवीनतम इलाज के द्वारा आंखों की रोशनी को बरकरार रखा जा सकता है।

लक्षण : डायबिटिक रेटिनोपैथी प्राय: अंदर ही अंदर पनपती रहती है। जब बीमारी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है तब इसके लक्षण सामने आते हैं। अगर आंख के सामने एकदम से धब्बा आ जाए या जाला सा दिखाई पड़ने लगे या धुंधला दिखने लगे तो ये डायबिटिक रेटिनोपैथी के लक्षण हो सकते हैं। आल इंडिया ऑप्थैल्मिक सोसाइटी के तत्वावधान में एक राष्ट्रव्यापी मुहिम शुरू की गयी है। इसमें डायबिटिक रेटिनोपैथी के बारे में बताया जाता है और मरीजों को प्रोत्साहित किया जाता है कि वे अपने रेटिना की जांच करवाएं। विशेषकर अगर उन्हें मधुमेह रोग है तो अवश्य ही।

इलाज : डायबिटिक रेटिनोपैथी में पहले कुछ जांचें की जाती हैं। इससे बीमारी की गंभीरता का आकलन हो जाता है। इसके पश्चात इलाज किया जाता है। इसमें प्राय: कुछ इंजेक्शन जो आंखों में लगाए जाते हैं, का प्रयोग किया जाता है। इसके साथ ही रेटिना में प्रयोग होने वाले ग्रीन लेजर का भी उपयोग किया जाता है। डायबिटिक रेटिनोपैथी का इलाज एक लंबी प्रक्रिया है, लेकिन इलाज के द्वारा मरीजों को काफी लाभ मिल जाता है। हालांकि डायबिटिक रेटिनोपैथी से बचाव तभी संभव है, जब समय रहते इसकी पहचान कर ली जाए।

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