मौजूदा इलाज की तकनीक
डॉ. डगलस न्यूबेरी के बताया, वर्तमान में दवा से दिल की गति को नियंत्रित किया जाता है और रक्त पतला करने की दवा दी जाती है। पर गंभीर बीमारी में दवा असर नहीं करती है। फिर सर्जरी का विकल्प बचता है, जिसके दो तरीके हैं। पहले प्रकार में 28 मिमी का गुब्बारा जांघ की नस से फेफड़े की रक्त कोशिका के प्रवेश द्वार तक पहुंचाया जाता है। फिर नाइट्रोजन ऑक्साइड से गुब्बारे को माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा करते हैं। इससे असामान्य पल्स बंद हो जाती है। इस प्रक्रिया को बैलून क्राइयोबलेशन और गुब्बारे को कैथेटर कहते हैं। पर इसके परिणाम अलग-अलग आते हैं क्योंकि रक्त कोशिका का पिछला हिस्सा अगले हिस्से की तुलना में पतला होता है। इसलिए कुछ क्षेत्र का ज्यादा इलाज हो जाता है तो कुछ का कम।
सर्जरी के दूसरे प्रकार में रक्त कोशिका के चारों ओर ऊष्मा का छल्ला बनाकर असामान्य पल्स को रोका जाता है। प्रक्रिया जटिल होने के चलते कुछ मरीजों पर ही आजमाई जाती है।
नई तकनीक
सेंट बार्थोलोमेव अस्पताल में ट्रायल की जा रही नई तकनीक रेडियो फ्रिक्वेंसी बैलून एबलेशन में पहली दोनों सर्जरी समाहित हैं। यह बैलून सारी कोशिका वाहिनी को एक साथ निशाना बनाता है। बैलून को घुमाकर और इलेक्ट्रोड को नियंत्रित कर तय किया जा सकता है कि किस कोशिका वाहिनी को कितनी गर्मी पहुंचानी है।
जानते हैं इसकी प्रक्रिया
इस प्रकिया में जांघ की नस के जरिये कैथेटर को दिल तक पहुंचाते हैं। बैलून में लगे दस इलेक्ट्रोड रक्त कोशिका के प्रवेश द्वार पर गर्मी की सटीक खुराक पहुंचाते हैं। जिसके बाद रक्त कोशिका गर्म होने से असामान्य सिग्नल बंद हो जाते हैं।