
शहीदी दिवस के मौके पर शहीद-ए-आजम भगत सिंह और सांडर्स की हत्या को लेकर एक नया सच सामने आया है, जानता नहीं होगा कोई।
लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने की जो रणनीति शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू व चंद्रशेखर आजाद समेत अन्य क्रांतिकारियों ने बनाई थी, उसमें ये फैसला किया गया था कि इस मिशन में क्रांतिकारी जिस पुलिस अफसर पर हमला करेंगे, वो अफसर जब तक सड़क पर ही दम न तोड़ दे, तब तक गोली चलाएगा और कोई क्रांतिकारी भागेगा नहीं। क्रांतिकारी नहीं चाहते थे कि गोली का शिकार कोई पुलिसवाला अस्पताल में दम तोड़े।
इसी रणनीति के तहत सहायक पुलिस अधीक्षक सांडर्स को जब शार्प शूटर राजगुरू ने गोली मारी, तो वह वहीं गिर गया। लेकिन उसके बाद भगत सिंह सांडर्स पर तब तक गोलियां चलाते रहे, जब तक उसकी मौत नहीं हो गई। उसके बाद जब क्रांतिकारी वहां से भागे तो कुछ पुलिस कर्मियों से उनकी मुठभेड़ हुई, जिसमें कांस्टेबल चरण सिंह की भी गोली लगने से मौत हो गई।
इस रणनीति का खुलासा शहीद सुखदेव की चिट्ठियों से हुआ, जो उन्हें लाहौर स्थित बोर्स्टल जेल से सेंट्रल जेल लाहौर में स्थानांतरण के समय प्राप्त हुई। मूल चिट्ठियां तो आज भी पाकिस्तान के रिकार्ड में हैं। लेकिन इसकी प्रति बार्डर सिक्योरिटी फोर्स और राष्ट्रीय अभिलेखागार विभाग के पास भी मौजूद है। बीएसएफ ने शहीद-एक-आजम की वो पिस्तौल भी सहेज कर रखी है, जिससे उन्होंने सांडर्स पर गोलियां दागी थीं।
पहले एक क्रांतिकारी ने देना था मिशन को अंजाम
पत्र में ये भी खुलासा हुआ है कि सांडर्स को जिस रणनीति के तहत क्रांतिकारियों ने मारा, उससे पहले एक और रणनीति बनाई गई थी। जिसमें ब्रिटिश सरकार के लाहौर पुलिस अधीक्षक को मारने का ये काम सिर्फ एक क्रांतिकारी को करना था। उस क्रांतिकारी को पुलिस अधीक्षक स्कॉट के नजदीक जाकर गोली मारनी थी और फिर वहीं सरेंडर करना था।
उसके बाद उसे ये बयान देना था कि लाला लाजपत राय की हत्या ‘नेशनल इंसल्ट’ है, जिसका बदला क्रांतिकारियों ने ले लिया है और आगे भी लेते रहेंगे। लेकिन पुलिस अधीक्षक तक पहुंचना थोड़ा मुश्किल था, इसलिए रणनीति बदली गई और ये तय किया गया कि एसपी स्कॉट जब कार्यालय से बाहर आएगा, तो उसे भगत सिंह, राजगुरू, चंद्रशेखर आजाद व अन्य क्रांतिकारी एक प्लानिंग के तहत मारेंगे। मगर स्कॉट की जगह एएसपी सांडर्स बाहर आया और क्रांतिकारियों ने उसी को मार दिया।