
प्रधानमंत्री के स्वागत व अभिनंदन की तैयारियों के लिए भाजपा का संपर्क व संवाद अभियान जारी है। ध्वजारोहण समारोह के आयोजन को अद्वितीय स्वरूप देने के लिए हजारों संतों की मौजूदगी सुनिश्चित की जा रही है। संतों की ओर से वैदिक मंत्रोच्चारण, शंखनाद और घंटों की ध्वनि से प्रधानमंत्री का अभिनंदन किया जाएगा।
इसी कड़ी में अयोध्या विधायक वेद प्रकाश गुप्त और भाजपा महानगर अध्यक्ष कमलेश श्रीवास्तव ने रंगमहल मंदिर पहुंच कर महंत रामशरण दास से मुलाकात की। अन्य प्रमुख मंदिरों के महंतों व संतों से भी संपर्क कर उन्हें स्वागत-अभिनंदन कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया। इसमें जगन्नाथ मंदिर व अमांवा मंदिर के संत शामिल हैं। संतों के साथ हर प्रतिष्ठान पर जाकर विधायक व महानगर अध्यक्ष ने व्यापारियों से संपर्क स्थापित किया।
विधायक ने कहा कि प्रधानमंत्री का आगमन रामनगरी के लिए सौभाग्य और गौरव का अवसर है। उनका स्वागत अयोध्या की आध्यात्मिक गरिमा और परंपरा के अनुरूप भव्य करने की तैयारी की जा रही है। हजारों संतों की उपस्थिति इस कार्यक्रम को ऐतिहासिक बनाएगी। अभिनंदन कार्यक्रम के दौरान अयोध्या की सनातन संस्कृति की दिव्यता प्रधानमंत्री के समक्ष अपने श्रेष्ठतम रूप में प्रकट होगी। महानगर अध्यक्ष ने कहा कि प्रधानमंत्री के स्वागत के दौरान संतों की उपस्थिति के स्थान को चिह्नित कर दिया गया है। भाजपा पदाधिकारी व कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी भी सौंप दी गई है।
हुआ ध्वज का महापूजन
राम मंदिर के शिखर पर फहराए जाने वाले ध्वज का विधिवत महापूजन रविवार को संपन्न हुआ। ध्वजारोहण समारोह के अनुष्ठानों के क्रम में तीसरे दिन रविवार को विभिन्न अनुष्ठान हुए। इसमें सबसे प्रमुख ध्वज पूजन रहा। ध्वज, जो केवल वस्त्र नहीं, बल्कि मर्यादा, संस्कृति और सनातन की परंपरा का साक्षात प्रतीक है को पूरे वैदिक विधान के साथ यज्ञ वेदी पर स्थापित किया गया। आचार्यों ने मंत्रोच्चार के मध्य इसे उसी श्रद्धा से अर्पित किया, जैसे देवत्व को अर्पित किया जाता है। अनुष्ठान का केंद्र बना भव्य यज्ञकुंड, जिसमें विष्णु सहस्रनाम और गणेश अथर्वशीर्ष के मंत्रों के साथ आहुतियां अर्पित की गईं।
विष्णु सहस्रनाम के प्रत्येक नाम के साथ यज्ञकुंड से उठती अग्निशिखाएं मानों लोककल्याण की कामना करती प्रतीत हुईं। गणपति को समर्पित अथर्वशीर्ष के मंत्रों ने वातावरण को विघ्नविनाशक ऊर्जा से भर दिया। मंत्रध्वनि ऐसी थी मानो अयोध्या की धरती स्वयं भगवान राम और विष्णु के चरणों में नत हो रही हो। यज्ञाग्नि की लपटें और धूप की सुगंध मिलकर एक ऐसा दिव्य समागम रच रही थीं, जिसे देख श्रद्धालु अभिभूत हो उठे। आचार्यगणों ने पंचगव्य, गंगा जल, पुष्पजल और सुगंधित द्रव्यों से ध्वज का अभिषेक किया। इसके बाद ध्वज पर अक्षत और चंदन लगाया गया, शंखध्वनि और नगाड़ों की गूंज के बीच कलशों से मंगल-जल छिड़का गया। अंत में ध्वज को ‘राम नाम’ के उच्चारण के साथ सुशोभित आसन पर स्थापित किया गया। पूरी प्रक्रिया अनुशासन और दिव्यता से संपन्न हुई ।