अपनी सूखी किस्मत खुद बदलना किसे कहते हैं यह कोई,यूपी के बांदा जिले के छिबांव गांव वालों से सीखे..

अपनी सूखी किस्मत खुद बदलना किसे कहते हैं यह कोई सूखे बुंदेलखंड के हिस्से वाले यूपी के बांदा जिले के छिबांव गांव वालों से सीखे। यहां ग्रामीणों ने पिछले 7 सालों की मेहनत से गांव के वाटर टेबल सिस्टम में इतना ज्यादा सुधार किया कि लोग इसे अब ‘जल गांव’ कहने लगे हैं। ग्रामीणों ने अपनी मेहनत से गांव के दोनों तालाबों को न सिर्फ खोदकर गहरा किया बल्कि उनकी साफ सफाई कर, मजबूत दीवार बनवा चारों तरफ हरे पेड़ पौधे भी लगाए।

यह तालाब पिछले साल ही बनकर तैयार हो गए थे। ग्रामीण बताते हैं कि लगभग डेढ़ साल से दोनों तालाब बारहों महीने लबालब रहते हैं, फालतू पानी खेतों में मोड़ देने से खेती को भरपूर पानी मिलता है। पांच हजार की आबादी वाले अतर्रा तहसील के छिबांव गांव में भूगर्भ जल स्तर ऊपर उठने से हर घर मे भरपूर पानी मिल रहा है। ऐसे में जब बुंदेलखंड के लगभग सभी इलाकों में पानी का भीषण जल संकट है, गर्मियों में हाहाकार मच जाता है, इस गांव में हर मौसम भरपूर पानी इसकी समृद्धि की कहानी खुद कहता हैं। तालाब को देखने के बाद स्थानीय सदर विधायक प्रकाश द्विवेदी कहते हैं कि “हमारे छिबांव जैसा कोई दूसरा गांव पूरे बुंदेलखंड में नहीं है, यहां ग्रामीणों की मेहनत के अच्छे नतीजे आये हैं, यह निश्चित तौर पर जल ग्राम है। मैं यहां कुछ चेकडैम बनवाना चाहता हूँ। इसे मॉडल के रूप में अपना अन्य गांवों को विकसित किया जाएगा।”

सात साल पहले का हाल याद कर ग्रामीण बताते हैं कि प्यास से तड़प कर हमारे मवेशी मर रहे थे, गांव के सिर्फ एक हैंडपम्प में बमुश्किल पानी आता था, तालाब में गंदगी का अंबार था, कुएं और जल स्रोत सूख गए थे, खेती के लिए पानी नहीं था। तब गांव की तत्कालीन प्रधान सुमित्रा देवी ने ग्रामीणों को एकजुट कर जल संरक्षण के फायदे समझाए और गांव का पानी गांव में ही रहे इसके लिए काम किया। आज गांव के दोनों तालाब लबालब भरे हुए हैं और यह हर मौसम भरे रहते हैं। तालाब के किनारे हरे भरे पौधे लगाये गए थे जो अब पेड़ बन गए हैं। सेनिटेशन और वेस्टेज का पानी नालियों से बह खेतों में प्रयोग हो रहा है। गांव का भूजल स्तर ऊपर आ गया है और अब पानी की कोई कमी नहीं है। चारों तरफ खेतों की हरियाली 7 साल की मेहनत और प्रेरणा लेने की सैकड़ों कहानियां अपने आप मे समेटे हुए है।

E-Paper