मौलाना ने कांग्रेस की मुश्किल हल कर दी !
एकाएकी माहौल पलट गया। सबकुछ उलट-पुलट। हवा का रूख ही बदल गया। कछुआ खरगोश से आगे निकलता दिख रहा है। चर्चाओं ने भी अपना रुख बदल लिया है। ये सब रातों रात कैसे पलट गया। कोई जीत की सीढ़ियों से हार की तरफ बढ़ने लगा, कोई हार की सीढ़ियों से जीत की तरफ बढ़ने लगा।
एक मौलाना के बयान का रिवर्स गेम परवान चढ़ने लगा। हिन्दू भाई चुनाव में मौलवियों के आदेशों से चिढ़ते हैं और मुस्लिम भाई मौलवियों की सियासत पर ख़ार खाते हैं।पुराना लखनऊ तमाम मिसालें अपने सीने मे दफ्न किए है। सबसे बड़े शिया बाहुल वार्ड का लोकप्रिय लड़का सभासदी के चुनाव में इतनी बुरी तरह हारा कि वो इसका तसव्वुर भी नहीं कर सकता था।मौलाना ने जी जान लगा दी थी उस सभासद प्रत्याशी को जिताने के लिए। मौलाना के समर्थन ने उसे जीत की कगार से हार की खाई में ढकेल दिया। ये परम्परा बन गयी कि मौलाना साहब जिसे जिताने की अपील करेंगे उसे हराने के लिए शिया-सुन्नी भाई एकजुट हो जाते हैं। बस इस करिश्मे को सियासत ने बखूबी समझ लिया। सब जान गये कि चिराग का ये जिन्न किसी बड़े से बड़े जनाधार वाले नेता का समर्थन करके उसे हरा सकता है।
कांग्रेस ने वो जिन्न खरीद लिया जिस जिन्न की अपील का उल्टा असर पड़ता है। मौलाना जिसे जिताने का हुक्म देते हैं क़ौम उसके विपरीत वोट करती है। मौलाना के चहीते प्रत्याशी या पार्टी के खिलाफ माहौल बन जाता है। यही हुआ भी। फाइव स्टार होटल में प्रेस कांफ्रेंस के बाद के असर ने हारे हुए को जीत की गुंजाइश की चौटी पर बैठा दिया। सब कुछ बदल गया।
पुराने लखनऊ में अब अचम्भित करने वाली बाते यहां की फिजाओं में तैरने लगी। कुछ लोग कानाफूसी कर रहे हैं -” मौलाना को कांग्रेस ने खरीद लिया”।
और भाजपा के खिलाफ तिकड़मी चाल चलने के लिए कांग्रेस की चाल का असर दिखने लगा। पुराने लखनऊ के वोट भी बंटने से बच गये।
सच पूछो तो लखनऊ की गंगा जमुनी तहज़ीब महकने लगी।
एक आचार्य के काम आ गये एक मौलाना। हज़रत अली पर अक़ीदा रखने वाले आचार्य मुश्किल में थे इसलिए मुश्किलकुशा को याद कर रहे थे।
एक अली वाले मौलाना आचार्य की मुश्किल हल करने चले आये।
ऐसी बातें अकबरी गेट पर पान की दुकान पर हो रहीं थी।
पांच- साथ लोगों में सबसे एक्साइटेड से दिखने वाले यूसुफ ने इन काम की बातों के साथ एक घिनोनी हरकत की। वो बातों के साथ माचिस की तीली से अपने दांत कुरेद रहा था। रहीम की नहारी की बोटी के रेशे और पान की सुपारी को दांत से निकालने में वो कामयाब हो गया। यहां तक तो ठीक था, लेकिन अब वो दांत से निकाले बोटी के रेशे और सुपारी के छोटे टुकड़ों को फिर से खा रहा था..चबा रहा था और बातों सियासी बातों में मदहोश था। देख कर घिन आयी और मैं आगे बढ़ गया।
अब मैं दूसरे क़याम पर डट कर जायज़ा ले रहा था। यहां चर्चाएं कई राज़ उगल रही थीं। चाय के इस अड्डे पर चर्चाओं का रंग जुदा था- कोई राजनाथ सिंह के समर्थन को नरेंद्र मोदी को हराने की चाल बता रहा है तो कोई कह रहा है कि योगी को कमजोर करने के लिए मौलाना राजनाथ को मजबूत करना चाहते हैं। नीले कुर्ते वाले से जहीर ने कहा- जिस तरह इंदिरा ने पाकिस्तान के टुकड़े कर दिये वैसे ही मौलाना बहुत होशियारी से भाजपा के टुकड़े करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। सुनकर एक शख्स के सब्र का बांध टूटा और उसने अपने मुंह में भरा पान थूका – कुछ भी हो, दुनिया माने पर मैं नहीं मानता कि मौलाना कांग्रेसी हैं और कांग्रेस के इशारे पर भाजपा की जड़ें खोद रहे हैं।
तमाम दलीलों के साथ ज़हीर भी मौलाना की वफादारी और समझदारी पर क़ायम थे।
और क़ायम ये मानने को तैयार नहीं थे कि मौलाना इतनी बारीक सियासत कर सकते हैं।
भाजपा में तख्ता पलट की प्लानिंग की मंशा पर चर्चा शुरु ही हुई थी कि नक्खास चौराहे पर हाजी साहब के होटल के बगल वाले फुटपाथी चाय वाले ने बैंचें पलटना शुरु कर दीं। दुकाने बढ़ाने का समय हो गया। चाय वाले की दुकान बढ़ गई। दो तीन घंटों बाद सुबह की किरण रौशन होते ही फिर चाय की दुकान खुलेगी। नयी सुबह की अगली शिफ्ट में चाय वाला बदल जायेगा लेकिन चर्चा करने वाले यही होंगी।