जानिये कब, और कैसे शुरू हुई थी दलबदल की ‘परंपरा’ जब गया राम बन गए थे आया राम…
हरियाणा के ही एक विधायक गयाराम के दलबदल के कारनामे के कारण यह कहावत शुरू हुई। फिर तो हरियाणा की राजनीति में दलबदल जैसे एक परंपरा बन गया। इस बार भी लोकसभा चुनाव की आहट महसूस होते ही निष्ठाएं बदलने का दौर शुरू हो गया। अब भी आए दिन कोई न कोई नेता पाला बदल रहा है। जरूरी नहीं कि यह खेल हमेशा फायदे वाला ही हो, कई बार निष्ठाएं बदलने वाले नेता औंधे मुंह गिर गए, लेकिन सिलसिला थम नहीं रहा। हरियाणा के गठन के 52 बरस हो चुके हैं। इस दौरान यहां की राजनीति कई उतार-चढ़ाव से गुजरी। शायद ही कोई सरकार रही होगी, जिसमें दल और दिल बदलने के खेल नहीं हुए। इस बार हो रहे लोकसभा चुनाव से पूर्व ही नेताओं का पाला-बदलना शुरू हो गया था। प्रमुख विपक्षी दल इनेलो के कई नेता जननायक जनता पार्टी, भाजपा और कांग्रेस में चले गए। कांग्रेस से भाजपा और भाजपा से कांग्रेस में नेताओं का जाना भी अब तक जारी है। तीन बार के सांसद रहे डॉ. अरविंद शर्मा चुनाव पूर्व भाजपा में शामिल हुए और पार्टी ने उन्हें रोहतक जैसी हाईप्रोफाइल सीट पर प्रत्याशी बनाया है। आम आदमी पार्टी के अंबाला से उम्मीदवार पृथ्वी राज पहले खुद की पार्टी चलाते थे।
फरीदाबाद से कांग्रेस प्रत्याशी बनाए गए अवतार भड़ाना का तो दल बदलने का रिकॉर्ड है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में चौधरी बीरेंद्र सिंह, रमेश कौशिक, धर्मबीर और राव इंद्रजीत जैसे दिग्गज कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए और दोबारा सांसद बनने में सफल रहे। चुनाव की घोषणा से पहले ही इनेलो के चार विधायकों नैना चौटाला, पिरथी नंबरदार, अनूप धानक और राजदीप फौगाट जननायक जनता पार्टी की ओर चले गए। दो विधायकों रणबीर गंगवा और केहर सिंह रावत ने भाजपा का दामन थाम लिया। राज्य के शिक्षा मंत्री रहे राव बहादुर सिंह ने हाल ही में इनेलो छोड़कर कांग्रेस का दामन थामा है। वाकया 1967 का है। अभी हरियाणा बने एक साल भी पूरा नहीं हुआ था। हसनपुर से विधायक चुने गए गयालाल 24 घंटे के अंदर तीन दलों में शामिल हुए थे। पहले वह कांग्रेस से युनाइटेड फ्रंट में गए। फिर कांग्रेस में लौटे और फिर नौ घंटे के अंदर ही युनाइटेड फ्रंट में वापस शामिल हो गए। उस समय कांग्रेस नेता बीरेंद्र सिंह ने कहा था, गयाराम, अब आया राम है। इसके बाद यह दलबदलू नेताओं के लिए मुहावरा बन गया। इसे रोकने के लिए संसद को दल बदल निरोधक कानून बनाना पड़ा, लेकिन वह भी नेताओं का रास्ता नहीं रोक पाई है।
गया लाल के बेटे उदय भान हालांकि इन आरोपों को साफ नकारते हैं। उनका कहना है कि उनके पिता ने कभी भी राजनीतिक दल नहीं बदला। हालात के अनुसार उन्होंने दूसरे दलों का समर्थन जरूर किया। असल में संसद में उमा शंकर दीक्षित ने पहली बार आया राम, गया राम बोला था। बाद में इसे मेरे पिता से जोड़ दिया गया। वैसे, यह मुहावरा लोहारू के विधायक रहे हीरानंद आर्य पर फिट बैठता है, जिन्होंने सात बार राजनीतिक दल बदला था। हरियाणा के इतिहास में अभी तक कुल 19 विधायक दल-बदल के चलते अपनी विधायकी गंवा चुके हैैं। दल-बदल निरोधक कानून के तहत विधायकों की सदस्यता खत्म करने की शुरुआत पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला की सरकार में हुई थी। वर्ष 1991 में चौटाला की सिफारिश पर तत्कालीन स्पीकर हरमोहिंदर सिंह चट्ठा ने अपनी ही पार्टी लोकदल के तीन विधायकों मुंढाल से वासुदेव शर्मा, फिरोजपुर झिरका के अजमत खान और साल्हावास के राम नारायण की सदस्यता रद कर दी थी।
चौटाला की सरकार में यही कहानी वर्ष 2000 में दोहराई गई, जब आठ विधायकों को अयोग्य करार दिया गया। उस समय स्पीकर सतबीर सिंह कादियान ने आरबीआइ के पलवल से विधायक करण सिंह दलाल और एनसीपी के दादरी से विधायक जगजीत सिंह सांगवान के साथ ही निर्दलीय विधायकों सोनीपत के देवराज दीवान, इंद्री के भीमसेन मेहता, करनाल के जय प्रकाश गुप्ता, बल्लभगढ़ के राजेंद्र बिसला, झज्जर के दरियाव सिंह और नारनौल के मूला राम को कांग्रेस में शामिल होने के चलते विधायक पद के अयोग्य करार दे दिया था। वर्ष 2008 में कांग्रेस से अलग होकर हरियाणा जनहित कांग्रेस बनाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल, गोहाना के विधायक धर्मपाल मलिक और इंद्री के विधायक राकेश कंबोज को तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष रघुबीर सिंह कादियान ने दल बदल कानून के तहत दोषी ठहराते हुए विधानसभा की सदस्यता रद कर दी थी। वर्ष 2011 में हजकां के पांच विधायकों सतपाल सिंह सांगवान, विनोद भ्याना, राव नरेंद्र सिंह, धर्म सिंह छौक्कर और जिले राम शर्मा को कांग्रेस में शामिल होने के बावजूद तत्कालीन स्पीकर कुलदीप शर्मा ने बचाए रखा, लेकिन हाई कोर्ट ने विधानसभा से उनकी सदस्यता रद कर दी। बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा जहां इन विधायकों को राहत मिल गई।