मध्य प्रदेश में बीते 10 सालों में कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ा मगर सीटें घटीं

230 सीटों वाली मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए 28 नवंबर को मतदान होना है। प्रदेश में 15 साल से भाजपा की सरकार है। शिवराज सिंह चौहान तेरह सालों से सत्ता की कमान संभाले हुए हैं। कांग्रेस पार्टी अपने वनवास को समाप्त करने के लिए इस बार पूरा जोर लगा रही है। विपक्षी पार्टी भले ही लगातार तीन चुनाव हार चुकी हो मगर आंकड़े बताते हैं कि पिछले दो विधानसभा चुनावों में उसका वोट प्रतिशत बढ़ा है। दिलचस्प बात ये है कि कांग्रेस वोट प्रतिशत बढ़ाने के बावजूद सीटों की संख्या में बढ़ोतरी करने में नाकाम रही है। 

2003 से 2013 तक वोट प्रतिशत बढ़ा, सीटें कम हुई

कांग्रेस का ध्यान इस बार उन सीटों पर है जहां भाजपा और उसके बीच जीत का अंतर कम था। 2003 के मुकाबले 2013 में कांग्रेस का वोट प्रतिशत पांच फीसदी वोट बढ़ा, लेकिन सीटें कम होती चली गईं।

कई सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों ने ढाई हजार से भी काम वोटों के अंतर से जीत दर्ज की। लिहाजा इस बार पार्टी की कोशिश जनता का गुस्सा भुनाकर जीत का सूखा खत्म करने की है। भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने वोटों के प्रतिशत को बरकरार रखने की है। 

वोट प्रतिशत की कहानी आंकड़ों की जुबानी  

आंकड़े बताते हैं कि भाजपा और कांग्रेस में वोटों की संख्या के लिहाज से ज्यादा अंतर नहीं रहा है। 1998 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस ने वोट प्रतिशत में महज दो फीसदी के अंतर से सरकार बनाई थी।

1998 में 320 सीटों के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस ने 40.63 फीसदी वोट और 172 सीटें लेकर दूसरी बार सरकार बनाई थी। भाजपा का वोट प्रतिशत 39.03 फीसदी पर सिमट गया और उसे 119 सीटें मिली थी। 

2003 में हुए चुनावों में भाजपा ने 42.50 फीसदी वोट हासिल करके सरकार बनाई। जबकि कांग्रेस को 31.59 फीसदी वोट मिले थे। भाजपा को 173 सीटें मिली और कांग्रेस 38 सीटों पर सिमट गई थी। 

2008 में हुए चुनावों में अंदरूनी कलह की वजह से भाजपा के वोट प्रतिशत को नुकसान हुआ और वोट प्रतिशत का अंतर महज 4.86 फीसदी रह गया।

2013 में भाजपा ने वापसी की और वोट प्रतिशत के साथ-साथ सीटों की संख्या में भी इजाफा किया। भाजपा ने 44.87 फीसदी वोट लेकर 165 सीटों पर कब्जा किया। जबकि कांग्रेस 36.38 फीसदी वोट लेकर 58 सीटों के साथ फिर से विपक्ष में पहुंच गई। इन चुनावों में कांग्रेस को 13 सीटों का नुकसान हुआ। 

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