झारखंड में कोरोना महामारी में अपने माता-पिता को खोने वाले बच्चों का भरण-पोषण करेगा झालसा

कोरोना की दूसरी लहर में कई बच्चों ने अपने माता-पिता को खो दिया है। कई ऐसे बच्चे थे, जिनके माता-पिता अपने बच्चों को पड़ोसी के हवाले कर अस्पताल चले गए, लेकिन लौट कर नहीं आए। ऐसे बच्चों की उचित परवरिश हो और बच्चे किसी गलत हाथ में न चले जाएं साथ ही ऐसे बच्चों को तस्करों से बचाने के लिए झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकार (झालसा) ने महत्वपूर्ण पहल की है। अब झालसा ऐसे बच्चों के जीवन-यापन, पढ़ाई, चिकित्सा आदि की व्यवस्था करेगा।

सोमवार को सभी जिलों के विधिक सेवा प्राधिकार के सदस्य सचिवों के साथ बैठक के बाद झालसा ने ऐसे बच्चों की मदद के लिए प्रोजेक्ट शिशु लांच किया। झालसा ने सभी जिला विधिक सेवा प्राधिकार को ऐसे बच्चों का चयन करने तथा जिला प्रशासन के सहयोग से इन सारे बच्चों को इस स्कीम के तहत लाभ देने के लिए कहा।

प्रोजेक्ट को लांच करने के बाद राज्य के सभी जिला विधिक सेवा प्राधिकार के अध्यक्ष और सचिवों को संबोधित करते हुए झालसा के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस अपरेश कुमार सिंह ने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर में कई बच्चों ने अपने अभिभावकों को खो दिया है। केंद्र और राज्य सरकार ऐसे बच्चों के लिए नीति तैयार कर रही है। सरकार की कुछ स्कीम पहले से चल रही है। अनाथ हुए बच्चों का जीवन बेहतर गुजरे, इसके लिए झालसा ने प्रोजेक्ट शिशु लॉन्चच कर उन्हें सभी सुविधा देने का प्रयास किया है, जो बच्चों का मौलिक अधिकार है।

बच्चों को बुराइयों में धकेलने से बचाना लक्ष्य
जस्टिस अपरेश सिंह ने कहा कि हमें राज्य में ऐसा एक भी बच्चे को नहीं छोड़ना है, जिसने दुर्भाग्यपूर्ण रूप से अपने मां-बाप और अपने अभिभावक को खोया हो। ऐसे सभी बच्चों को झालसा के द्वारा हर संभव सहायता मुहैया करायी जाएगी। उन्होंने कहा कि ऐसे विकट समय में भी कई लोग इस प्रकार के बच्चों को ऑर्गन ट्रेडिंग, बालश्रम आदि जैसी बुराइयों में धकेल देते हैं। हमें ऐसे बच्चों तक पहुंचना है और उन्हें हर हाल में हरसंभव सुविधा और सहायता मुहैया करानी है। 

यदि बच्चों को मनोवैज्ञानिक सहयोग की आवश्यकता है तो मनोवैज्ञानिक रूप से भी हम चिकित्सकों से मिलकर उन्हें समुचित सहायता उपलब्ध कराएंगे। उन्होंने कहा कि झारखंड विधिक सेवा प्राधिकार पूर्व में भी कई महत्वपूर्ण कार्य कर चुका है और पूरे देश में अग्रणी स्थान प्राप्त किया है। इस बार भी हम पूरे देश को दिशा देने वाली संस्था के रूप में कार्य करें और बच्चों के कल्याण का हरसंभव उपाय करें। इस महामारी के दौरान झालसा ने एक वार रूम का गठन किया है, जो स्थानीय प्रशासन से मिलकर महामारी के दौरान महामारी से प्रभावित लोगों को सहायता मुहैया करा रहा है। वार रूम से हजारों लोगों ने सहायता प्राप्त की है।
 
क्यों पड़ी जरूरत
झारखंड से ऐसे कई मामले प्रकाश में आए थे, जिनमें बच्चों के माता-पिता का देहांत कोविड-19 के कारण हो गया। बच्चों के भरण-पोषण में दिक्कतें आ रही थीं। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर झालसा के कार्यपालक अध्यक्ष जस्टिस अपरेश कुमार सिंह  ने राज्य के सभी समाज कल्याण पदाधिकारी, बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष एवं जिला विधिक सेवा प्राधिकार के सचिव की बैठक बुलाई थी। 

बैठक में ऐसे मामलों को चिन्हित किया गया। बैठक में महिला एवं समाज कल्याण सचिव अविनाश कुमार समेत कई वरीय पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया था। बैठक में एक कार्य योजना तैयार की गई थी कि ऐसे बच्चों को समुचित सहायता प्रदान की जाए, उनके पुनर्वास संबंधी एक ठोस रणनीति बनाई जाए, जिससे कि उन बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सके। इसके बाद ही झालसा ने यह स्कीम लांच की है। 

पिछले साल तीन स्कीम लॉन्च हुई थी
कोरोनाकाल में पिछले साल झालसा ने तीन स्कीम मानवता, कर्तव्य और श्रमेव वंदते लांच की थी। श्रमेव वंदते योजना के तहत प्रवासी श्रमिकों के लिए प्रत्येक जिले में एक लॉग बुक मेंटेन किया जा रहा था। इसके बाद उन्हें सरकारी योजनाओं के तहत मनरेगा, बिरसा हरित ग्राम योजना, नीलांबर-पीतांबर जल समृद्धि योजना, पीएम ग्रामीण आवास योजना और स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से जोड़कर लाभ दिलाया गया। 

कोरोना संकट में अनाथ बच्चे, अकेली महिला, विधवा और बुजुर्ग की देखभाल और उनकी सुविधाओं का ख्याल रखने के लिए मानवता नाम से योजना बनाई गई थी। इसके तहत सभी जिलों के जिला विधिक सेवा प्राधिकार को ऐसे लोगों की पहचान कर उन तक आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया। इसके अलावा जेल में रहने वाले कैदी और उनके परिवार के लोगों को हर तरह की सुविधा देने के लिए कर्तव्य के नाम से योजना शुरू की गई थी। 

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