चीन की चाल से चौंकन्ना भारत, बीजिंग के प्रभुत्व वाले RCIP से मोदी ने किया किनारा, कई हैं इसके प्रमुख कारण
भारत ने चीन के प्रभुत्व वाले आरसीइपी में शामिल नहीं होने का फैसला लिया है। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे अपनी आत्मा की आवाज का फैसला बताया। आखिर मोदी के इस आत्मा की आवाज के पीछे क्या हैं बड़े कारण ? क्या है पीएम मोदी का एजेंडा ?
नई दिल्ली। भारत ने चीन के प्रभुत्व वाले आरसीइपी यानी रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप में शामिल नहीं होने का फैसला लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस फैसले ने सबकों चौंका दिया। हालांकि, मोदी सरकार का कहना है कि देश हित के चलते आरसीइपी में शामिल नहीं होने का फैसला लिया गया है। भारत सरकार का साफ कहना है कि आरसीइपी के कुछ पहलुओं को लेकर चिंता व्यक्त की गई थी। इसके कुछ प्रावधान अस्पष्ट थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे अपनी आत्मा की आवाज का फैसला बताया। आखिर मोदी के इस आत्मा की आवाज के पीछे क्या हैं बड़े कारण ? क्या है पीएम मोदी का एजेंडा ? किसान और कारोबारी संगठन की क्या है बड़ी चिंता ? क्या है आरसीइपी ?
भारत के घरेलू उत्पाद पर गंभीर प्रभाव-
प्रो हर्ष पंत का कहना है कि आरसीइपी में शामिल होना भारत के किसानों के लिए खासकर भारत के छोटे व्यापारियों के लिए बड़े संकट का विषय बन सकता था। इस समझोते के विनाशकारी परिणाम होते। इस समझौते के बाद नारियल, काली मिर्च, रबड़, गेहूं और तिलहन के दाम गिर जाने का खतरा था। इससे छोटे व्यापारियों का धंधा चौपट होने का खतरा था। न्यूजीलैंड से दूध के पाउडर के आयात के चलते भारत का दुग्ध उद्योग चौपट हो जाता।
चीन बना बड़ा फैक्टर-
प्रो. हर्ष का कहना है कि मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर भारत का अनुभव पहले से ठीक नहीं रहा है। आरसीइपी में भारत जिन देशों के शामिल होगा, उनसे भारत आयात अधिक करता और निर्यात कम। चीन के प्रभुत्व और समर्थन वाले आरसीइपी भारत की स्थिति सहज नहीं होती। चीन के साथ भारत का व्यापारिक घाटा पहले से अधिक है और निर्यात कम। ऐसे में भारत की स्थिति और खराब हो सकती है। प्रो पंत का कहना है कि आर्थिक रूप से चीन ज्यादा मजबूत है। इसके साथ पूर्व एशियाई देशों में उसकी पहुंच भारत से अधिक है। ऐसे में जाहिर है कि चीन को यहां अधिक लाभ होगा। उन्होंने कहा कि पूर्व एशियाई देशों में भारत के उस तरह के आर्थिक रिश्ते नहीं हैं। भारत इस दिशा में पहल कर रहा है, जबकि चीन की उन मुल्कों में पहले से ही बेहतर पहुंच है।