लंबित मामलों में मीडिया की टिप्पणी पर उठा सवाल, इससे होती है सुप्रीम कोर्ट की अवमानना

लंबित मामलों में मीडिया की टिप्पणियां न केवल जजों को प्रभावित करने के प्रयास हैं, बल्कि वे उनके फैसले पर असर डालने की कोशिश भी हैं। यह कोर्ट की अवमानना की तरह हैं। यह बात अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने लंबित मामलों में खास तरह की मीडिया रिपोर्टिग का जिक्र करते हुए मंगलवार को शीर्ष कोर्ट में कही। उन्होंने कहा कि ये न्यायाधीशों की सोच को प्रभावित करने वाली और न्यायिक संस्थान को बहुत नुकसान पहुंचाने वाली हैं। उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह से वर्जित है और इससे सुप्रीम कोर्ट की अवमानना हो सकती है।

अधिवक्ता प्रशांत भूषषण और पत्रकार तरण तेजपाल के खिलाफ 2009 के अवमानना मामले में जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष वर्चुअल सुनवाई के दौरान वेणुगोपाल ने कोर्ट में लंबित मामलों पर इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया की टिप्पणियों का उल्लेख किया और कहा कि ऐसा करना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। वेणुगोपाल ने कहा, आज किसी ब़़डे मामले में जब जमानत की अर्जी सुनवाई के लिए आने वाली होती है तो टीवी पर दिखाई जाने वाली खबरें उन आरोपितों के लिए भी बहुत नुकसान पहुंचाने वाली होती हैं, जिन्होंने जमानत की अर्जी दायर कर रखी होती है।

उन्होंने राफेल मामले में मीडिया की रिपोर्टिग का जिक्र करते हुए कहा कि लंबित मामलों में इस तरह की टिप्पणियां नहीं की जानी चाहिए। कोर्ट ने वेणुगोपाल के कथन का संज्ञान लिया और कहा कि वह उन सवालों को फिर से तैयार करने पर विचार करें, जिन पर पीठ को विचार करना है। इसके साथ ही पीठ ने इस मामले की सुनवाई चार नवंबर के लिए स्थगित कर दी। अटॉर्नी जनरल इस मामले में कोर्ट की मदद कर रहे हैं। बता दें कि कोर्ट ने अवमानना के इस मामले में विचार योग्य कतिपय मुद्दों को फिर से तैयार करने के लिए वेणुगोपाल को समय दिया था। इस मामले में कोर्ट ने नवंबर 2009 में भूषषण और तहलका पत्रिका के संपादक तरण तेजपाल को नोटिस जारी किए थे। इस पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में भूषषण ने शीषर्ष कोर्ट के कुछ पीठासीन और पूर्व न्यायाधीशों पर कथित रूप से आक्षेप लगाए थे।

 

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