सरकारी जमीनों को तलाशने के लिए अधिकारियों को बार-बार नहीं खंगालना पड़ेगा रिकॉर्ड…

राजधानी की सरकारी जमीनों की जानकारी अब एक क्लिक में मिल जाएगी। इतना ही नहीं जमीन की वास्तविक स्थिति भी पता लगाई जा सकेगी। जमीन पर अतिक्रमण है या जमीन खाली है इसकी जानकारी अब ऑनलाइन अपडेट कर लैंड बैंक तैयार किया जा रहा है। इसकी कवायद शुरू हो गई है। कलेक्टर तरुण पिथोड़े ने सभी आरआई और पटवारियों से सरकारी जमीनों की रिपोर्ट और डाटा मंगवाया है। दरअसल, 2012 में तत्कालीन कलेक्टर निंकुज कुमार श्रीवास्तव ने भोपाल जिले की सरकारी जमीनों का एक लैंड बैंक तैयार करने की योजना बनाई थी। उस दौरान उन्होंने सभी तहसील व नजूल सर्कलों के एसडीएम को अपने क्षेत्रों में सरकारी जमीनों को चिन्हित कर उसकी एक सूची तैयार करने को कहा था। उस वक्त केवल तहसील हुजूर ने ही यह सूची तैयार की थी। इसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

उनके जाने के बाद कलेक्टर निशांत वरवड़े और डॉ. सुदाम पी. खाडे ने भी भोपाल जिले की सरकारी जमीनों का एक लैंड बैंक बनाने का प्रयास शुरू किया, लेकिन वे भी इस काम को पूरा नहीं कर सके। सभी सर्कलों व तहसीलों के एसडीएम व तहसीलदारों ने रुचि नहीं ली। इसके कारण यह लैंड बैंक नहीं बन सका। अब कलेक्टर तरुण पिथोड़े ने ऑनलाइन लैंड बैंक तैयार करने की कवायद शुरू की है।

इसलिए तैयार हो रहा है लैंड बैंक

सरकारी जमीनों को चिन्हित कर ऑनलाइन लैंड बैंक बनाए जाने के पीछे तर्क यह है कि किसी भी प्रोजेक्ट या संस्थाओं को जमीन अलॉट करने में दिक्कते न हो। एक क्लिक में जमीन की स्थिति की जानकारी मिल जाए ताकि अलॉटमेंट के समय कोई विवाद न हो।

यह भी हो रही है कवायद

एसडीएम हुजूर राजेश श्रीवास्तव ने बताया कि सरकारी जमीनों में से कुछ जमीनों को विकसित कर वहां 10 हजार वर्गफीट तक के प्लॉट कांटे जा रहे हैं, ताकि कोई सरकारी जमीन का छोटा हिस्सा मांगे तो उसे वहां पर्याप्त मात्रा में सड़क व ड्रेनेज सिस्टम मिले। इसके दो फायदे होंगे जमीन अलॉट करते समय सिर्फ साइड दिखानी पड़ेगी। वहीं कई बार जमीन के सामने का हिस्सा अलॉट होने पर पीछे बची हुई जमीन को अलॉट करने में कठिनाई होती है। प्लॉट काटकर देने से इस परेशानी से निजात मिल जाएगी।

लैंड बैंक बनने से यह होगा लाभ

– सरकारी जमीनों को तलाशने के लिए अधिकारियों को बार-बार रिकॉर्ड नहीं खंगालना पड़ता।

– किसी भी प्रोजेक्ट या संस्थाओं के लिए जमीनें देने में समय नहीं लगता।

– सरकारी और निजी जमीनों की स्थिति प्रशासन आसानी से बता सकेगा।

– किस क्षेत्र में सरकारी जमीन है और किस क्षेत्र में नहीं, इसकी सटीक जानकारी मिलेगी।

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