
कारगिल विजय दिवस के अवसर पर सदर वार मेमोरियल में शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई। इस दौरान भारतीय सेना के अफसर और रिटायर्ड अधिकारी भी मौजूद रहे। भारतीय सेना ने 26 मई 1999 से 26 जुलाई 1999 तक कारगिल में ऑपरेशन विजय के नाम से युद्ध लड़ा। यह एक अनोखी लड़ाई थी जो दुश्मन के साथ तो थी ही साथ ही मौसम, जलवायु और विषम परिस्थितियों से भी जवानों को लड़ना पड़ा। यहां जवानों ने 14000 से लेकर 18000 फीट तक ऊंचाई पर जाकर (जहां ऑक्सीजन की कमी के कारण सांस लेना भी मुश्किल था) दुश्मन के छक्के छुड़ाए। सैनिकों ने द्रास, बटालिक, कारगिल में लड़ाई लड़ी।
कारगिल युद्घ में अपनी बहादुरी का प्रदर्शन करने वाले सैनिकों का शहर से भी गहरा नाता है क्योंकि कारगिल में अपनी जान की बाजी लगाकर लड़ने वाले फौजी 13 जैक राइफल्स और 18 ग्रेनेडियर्स के भी थे। ये दोनों ही रेजीमेंट जैक राइफल्स व द ग्रेनेडियर्स जबलपुर में ही है। दोनों ही रेजीमेंट ने कारगिल युद्ध की कई स्मृतियां सहेज कर रखीं हैं। इसके साथ ही जैक राइफल्स में कार्यरत कुछ ऐसे अधिकारियों व सैनिकों ने नईदुनिया के साथ कारगिल युद्ध के अपने अनुभवों को साझा किया।
लोगों को पता चले कि फौज कैसे काम करती है
जब कारगिल युद्ध चल रहा था तो मैं रिक्रूट था। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद मैंने खासकर कारगिल जाने की इच्छा जताई थी। मुझे भी फौज में आए 20 साल हो गए। मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि आम लोग समझें कि फौज कैसे, किन परिस्थितियों में काम करती है। सेना को मॉरल सपोर्ट चाहिए। आज हम कहते हैं कि कारगिल युद्घ हमने जीत लिया। आसान नहीं था कारगिल युद्ध जीतना। बहुत ही कठिन परिस्थितियों में हमारे सैनिकों ने दुश्मन से लड़ाई की। 13 जैक राइफल्स को .5140 और 4875 चोटियों पर कब्जा करने का टारगेट दिया गया था। जो हमारे सैनिकों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए किया। हमारी राइफल से शहीद मेजर विक्रम बत्रा को मरणोपरांत परमवीर चक्र और सिपाही संजय कुमार को परमवीर चक्र दिया गया। इनके साथ ही कई ऐसे सैनिक हैं जो पूरी शिद्दत के साथ युद्ध में लड़े। इनमें डॉ. राजेश अड़ाऊ सेना मेडल, मेजर गुरप्रीत सिंह, मेजर (ब्रिगेडियर सेवानिवृत्त) एसवी भास्कर वीरचक्र, राइफल मैन मेहर सिंह, वीर चक्र जैसे बहादुरों का भी योगदान रहा है। लेफ्टिनेंट कर्नल जोशी की लीडरशिप में सैनिकों का उत्साह चरम पर रहता था और वो युद्ध लड़ते गए। युद्ध में लड़ने के लिए रिक्रूटों की ट्रेनिंग ही इस प्रकार होती है कि वो हर स्थिति का सामना कर सकें। कड़ी मेहनत के बाद ही एक फौजी तैयार होता है।
भूल नहीं सकते वो दिन
मैंने कारगिल युद्ध में ब्रेवो कंपनी की ओर से लड़ाई की। उस समय मेरा रैंक राइफल मैन था। युद्ध के उन दिनों को भुलाया नहीं जा सकता। बहुत ऊंचाई पर थे हम लोग। ऑक्सीजन कम होने के कारण सांस लेने में परेशानी होती थी। फिर भी किसी सैनिक का जोश कम नहीं था। कोई भी पीछे नहीं हटा। हम लोगों का बस एक ही टारगेट था दुश्मन को खदेड़ना। कारगिल युद्ध दिवस पर ही पिछले वर्ष मुझे साइटेशन दिया गया।