
हर साल आश्विन महीने की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होता है और इसकी किरणों से अमृत बरसता है। इसलिए इस रात को चांदनी में दूध और चावल से बनी खीर रखी जाती है, जिसे बाद में प्रसाद के रूप में खाते हैं।
माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की शीतल किरणें खीर में अमृत घोलती हैं, जिसे खाने से सेहत और सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है। यह खीर सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं रखती, बल्कि इसका स्वाद भी लाजवाब होता है। इसलिए इस शरद पूर्णिमा के खास मौके पर हम आपको चावल की खीर बनाने की बेहतरीन रेसिपी बताने वाले हैं, जिसे बनाना बेहद आसान है।
चावल की खीर बनाने के लिए सामग्री
दूध- 1.5 लीटर (फुल क्रीम दूध का इस्तेमाल करें, इससे खीर गाढ़ी और मलाईदार बनेगी)
चावल- 1/4 कप (छोटे दाने वाले बासमती चावल)
चीनी- 1/2 कप (या स्वादानुसार)
केसर के धागे- 8-10 (गर्म दूध में भिगोए हुए)
इलायची पाउडर- 1/2 छोटा चम्मच
मेवे- बारीक कटे हुए काजू, बादाम, पिस्ता, और किशमिश
घी- 1 छोटा चम्मच
खीर बनाने की आसान विधि
यह विधि खीर को गाढ़ा और मलाईदार बनाने का सबसे आसान तरीका है-
सबसे पहले चावल को अच्छी तरह धोकर 30 मिनट के लिए पानी में भिगो दें। इससे चावल जल्दी पकते हैं। अब एक छोटी कटोरी में 2 चम्मच गरम दूध लें और उसमें केसर के धागे भिगोकर रख दें, ताकि केसर अपना रंग और खुशबू छोड़ दे। साथ ही, मेवों को बारीक काट लें।
अब एक भारी तले वाले बर्तन या कड़ाही में दूध डालें और मध्यम आंच पर गर्म करें और दूध में एक उबाल आने दें।
जब दूध उबल जाए, तो भीगे हुए चावल इसमें डाल दें। आंच को धीमा कर दें और धीरे-धीरे चलाते रहें ताकि चावल बर्तन के तले पर न लगें। खीर को लगभग 30-45 मिनट तक धीमी आंच पर पकाएं।
खीर को तब तक पकाएं जब तक कि चावल पूरी तरह मुलायम न जाएं और दूध गाढ़ा होकर अपनी मात्रा का लगभग आधा न रह जाए। इसे बीच-बीच में चलाते रहना बहुत जरूरी है। जब खीर गाढ़ी होने लगे, तो इसमें चीनी और भिगोया हुआ केसर वाला दूध डालकर अच्छी तरह मिलाएं। चीनी के घुलने तक 5 मिनट और पकाएं।
अब इसमें इलायची पाउडर और कटे हुए मेवे डालकर मिलाएं। 2-3 मिनट और पकाकर गैस बंद कर दें। आपकी स्वादिष्ट चावल की खीर तैयार है।
खीर को थोड़ा ठंडा होने दें और रात के समय इस खीर को एक साफ बर्तन में जाली वाली प्लेट से ढककर खुले आसमान के नीचे चांदनी में रखें और अगली सुबह इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।