इंदौर: 3 साल की बच्ची को संथारा दिलाने पर हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब, माता पिता सहित 10 को नोटिस

तीन साल की बच्ची को संथारा दिलाए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर मंगलवार को हाई कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान मुख्य सचिव, डीजीपी, प्रमुख सचिव विधि विभाग, मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष और बच्ची के माता-पिता को अगली सुनवाई से पहले जवाब पेश करने के लिए कहा है। दरअसल, पिछली सुनवाई पर हाई कोर्ट ने बच्ची के माता-पिता को भी पक्षकार बनाने के निर्देश दिए थे। वहीं संथारा को लेकर जो प्रमाण पत्र जारी किया गया, उसके संबंध में भी जानकारी देने के निर्देश याचिकाकर्ता को दिए थे।

बच्ची दिमागी बीमारी से गंभीर रूप से पीड़ित थी
मामले में याचिकाकर्ता प्रांशु जैन ने अपने एडवोकेट शुभम शर्मा के माध्यम से हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की। याचिका में नाबालिग बच्चों और मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति को संथारा दिलाए जाने पर रोक लगाने की मांग की गई है। याचिका में उल्लेख किया है कि मानसिक रूप से कमजोर और नाबालिग बच्चों के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं किया जा सकता। बच्चों के साथ इस तरह की प्रथा बंद किए जाने की मांग याचिका में की गई है। हालांकि जिस बच्ची को संथारा दिलाया गया था वह दिमागी बीमारी से गंभीर रूप से पीड़ित थी। मंगलवार को याचिकाकर्ता ने नोटिस जारी करने की जानकारी दी। जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की डबल बेंच ने इन सभी 10 प्रतिवादीगण को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

यह है मामला
मामला 21 मार्च का है। बच्ची वियाना ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित थी। उसे माता-पिता इंदौर में एक आध्यात्मिक संकल्प अभिग्रहधारी महाराज के पास दर्शन करने ले गए। महाराज ने बालिका की दूसरे दिन मृत्यु की भविष्यवाणी की थी। साथ ही उसे संथारा दिलाने के लिए कहा था। इस पर माता-पिता ने उसे संथारा दिलाया था। ‘गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में इसे सबसे कम उम्र में संथारा का रिकॉर्ड बताते हुए उन्हें सर्टिफिकेट जारी किया था।

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