
पेरिस। फ्रांस की सोरबोन यूनिवर्सिटी के विज्ञानियों के अनुसार म्यूकस मेम्ब्रेन में आइजीए (इम्युनोग्लोबुलिन ए) नामक एंटीबॉडी पाई जाती है। कोरोना के खिलाफ इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा प्रणाली) की प्रारंभिक प्रतिक्रिया में आइजीएम और आइजीजी जैसी दूसरी एंटीबॉडी की तुलना में आइजीए ज्यादा हावी रहती है।
विज्ञानियों ने कोरोना वायरस (कोविड-19) खिलाफ इम्यून रिस्पांस को लेकर एक नया अध्ययन किया है। उन्होंने अपने आकलन में पाया कि म्यूकस मेम्ब्रेन (श्लेष्मा झिल्ली) में मिलने वाली एंटीबॉडी सबसे पहले सक्रिय होती है। इस निष्कर्ष से कोविड-19 से मुकाबले के लिए नई वैक्सीन के विकास की राह खुल सकती है।

फ्रांस की सोरबोन यूनिवर्सिटी के विज्ञानियों के अनुसार, म्यूकस मेम्ब्रेन में आइजीए (इम्युनोग्लोबुलिन ए) नामक एंटीबॉडी पाई जाती है। कोरोना के खिलाफ इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा प्रणाली) की प्रारंभिक प्रतिक्रिया में आइजीएम और आइजीजी जैसी दूसरी एंटीबॉडी की तुलना में आइजीए ज्यादा हावी रहती है। साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन पत्रिका में छपे अध्ययन में विज्ञानियों ने कहा कि यह काफी हद तक अप्रत्याशित नतीजा है। क्योंकि आमतौर पर आइजीएम एंटीबॉडी इम्यून सिस्टम की प्रारंभिक प्रतिक्रिया मानी जाती है। उन्होंने यह निष्कर्ष 159 कोरोना रोगियों पर किए गए एक अध्ययन के आधार पर निकाला है।
इन पीडि़तों के रक्त, लार और फ्लूइड में एंटीबॉडी की प्रतिक्रिया का आकलन किया गया। इन रोगियों में कोरोना संक्रमण के लक्षण उभरने के बाद पहले तीन-चार हफ्तों के दौरान आइजीजी और आइजीएम की तुलना में आइजीए एंटीबॉडी की सघनता उच्च पाई गई। बाद में इसकी सघनता कम होने लगी। हालांकि विज्ञानियों ने कहा कि लार में आइजीए एंटीबॉडी की मौजूदगी कई हफ्तों तक पाई गई। उनका मानना है कि इन नतीजों से ऐसी नई वैक्सीन के विकास की राह खुल सकती है, जिनमें आइजीए रिस्पांस को प्रेरित किया जाए। इसके अलावा प्रारंभिक अवस्था में ही संक्रमण की पहचान के लिए आइजीए आधारित टेस्ट का भी विकास हो सकता है।