ई-टेंडर घोटाले में गुजरात की कंपनी पर कसेगा शिकंजा

आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) के मुखिया बदले जाने के बाद अब बहुचर्चित ई-टेंडर घोटाले में शिकंजा कसने की संभावना है। घोटाले में राशि के लेनदेन के पुख्ता प्रमाण मिलने के बाद अब गुजरात की कंपनी सोरठिया वेलजी रत्ना प्राइवेट लिमिटेड के मालिक पर कार्रवाई में तेजी आने के आसार हैं। अब तक कंपनी के संचालक हरेश सोरठिया ईओडब्ल्यू को चकमा दे रहे हैं और जांच एजेंसी को कानूनी प्रक्रिया में उलझाए रखकर बचे हुए हैं। इसी तरह जिन डिजीटल सिग्नेचर से जांच के दायरे में आए नौ टेंडरों को खोला गया, उनमें अधिकारियों से अब तक केवल पूछताछ की गई है।

ई-टेंडर घोटाले में डिजीटल सिग्नेचर बनाने वाली ऑस्मो आईटी सॉल्यूशन और गुजरात की कंपनी सोरठिया वेलजी रत्ना प्राईवेट लिमिटेड के बीच राशि के कई बार लेन-देन के प्रमाण जांच एजेंसी को मिले हैं। दोनों के बीच करोड़ों रुपए के ट्रांजेक्शन हुए हैं। लिहाजा, ईओडब्ल्यू ने सोरठिया वेलजी कंपनी के संचालक हरेश सोरठिया को नोटिस देकर बुलाया था। कई नोटिस के बाद भी जब वे नहीं आए तो टीम वहां गई। उन्होंने परिवार में कोई कार्यक्रम की व्यस्तता बताकर बिना नोटिस के ही आ जाने का आश्वासन देकर टीम को लौटा दिया था। इसके बाद हरेश सोरठिया ने कानूनी प्रक्रिया शुरू कर दी। वह ईओडब्ल्यू को उसमें उलझाकर पेश होने से बचता रहा। ईओडब्ल्यू के मुखिया बदले जाने के बाद अब सोरठिया पर कार्रवाई की संभावना जताई जा रही है।

जिनके डिजीटल सिग्नेचर से खुले थे टेंडर, उनसे केवल पूछताछ

उल्लेखनीय है कि ई-टेंडर घोटाले में सोरठिया के अलावा अब तक ऑस्मो आईटी सॉल्यूशन के तीन पार्टनर बंगलुरु की कंपनी के मनोहर की गिरफ्तारी हो चुकी है। इनके अलावा मप्र इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम कारपोरेशन के ओएसडी एनके ब्रह्मे की गिरफ्तारी हुई है, लेकिन अब तक जिनके डिजीटल सिग्नेचर से ई-टेंडर खोले जाने की प्रक्रिया पूरी हुई, उनके खिलाफ कार्रवाई पूछताछ के आगे नहीं बढ़ी है। ईओडब्ल्यू अभी केवल नौ टेंडरों की जांच कर रही है।

इन टेंडरों को जिन अधिकारियों के डिजीटल सिग्नेचर से खोला गया, उनसे जांच टीम ने अभी केवल पूछताछ की है। अधिकृत डिजीटल सिग्नेचर वाले अधिकारियों ने अब तक अपनी जिम्मेदारी से बचने का प्रयास किया है। कुछ अधिकारियों के तबादला होने के बाद भी उनके डिजीटल सिग्नेचर का इस्तेमाल किया गया तो कुछ अधिकारियों के डिजीटल सिग्नेचर के बारे में स्थिति सामने आई कि ऑफिस का कोई भी कर्मचारी-अधिकारी इस्तेमाल कर सकता था। इस तरह घोटाले में किसी की जिम्मेदारी तय नहीं की जा सकी है।

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