सियासी सांपों ने चंदन को डस लिया

बुरा आदमी बुरा काम तो खूब करता है लेकिन बुरा नहीं बनना चाहता। अच्छों के कंधे पर बंदूक चलाता है। पलटवार होता भी है तो निर्दोष अच्छा इंसान ही मरता है। खून-खराबे का माहौल पैदा करने वाले का हथियार रिवर्स-वे में चलता है। शिकार सामने वाला कम होता है। ज्यादा बड़ा शिकार वो होता है जिसके कंधे पर बंदूक रखी जाती है।
एक किस्सा है :- एक किसान को काले नाग ने डस लिया। डस कर चंदन के पेड़ में छिप गया। किसान के साथी ने गुस्से में चंदन पर कुल्हाड़ी से वार किए।चंदन का पेड़ गिर गया। नाग दूसरे चंदन के पेड़ पर लिपटकर फिर किसी को डसने की तैयारी करने लगा।

एक और किस्सा जीवन के अनुभव से है- मेरी चार पीढियों का वास्ता लखनऊ से रहा है। लखनऊ की नजाकत-नफासत, गंगा-यमुनी तहजीब के मलमल पर दशकों तक शिया-सुन्नी दंगों का बदनुमा दाग रहा है। दोनों समुदायों के धार्मिक जुलूसों में विवाद के दौरान दर्जनों बार साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाएं सैकड़ों इंसानों की जिन्दगी ले गयीं। मकान जले, बस्तियां ख़ाक हुईं, करोड़ो-अरबों का नुकसान हुआ। शांति भंग हुई और इंसानियत को शर्मसार किया गया।
पुराने लखनऊ में हमेशा रहा इसलिए ये सब बहुत करीब से देखा।
पेशेवर पत्रकारिता का सिलसिला शुरू हुआ तो इस मसले की बीट मिली। मुसलमाननों के धार्मिक जुलूसों में शिया-सुन्नी दंगों के कारण बीस बरस से जुलूसों पर पाबंदी के खिलाफ आंदोलन तेज हो गया था। आन्दोलन से परेशान सरकार धार्मिक जुलूसों पर से पाबंदी हटा देना चाहती थी लेकिन डर था कि बहाल जुलूसों में फिर से दंगे ना शुरू हो जाये। जुलूस को बहाल करने से पहले शिया-सुन्नी समुदायों के धार्मिक गुरुओं के बीच बैठक हुई। प्रमुख सचिव गृह, कमिश्नर और जिलाधिकारी की तरफ से शिया-सुन्नी प्रतिनिधियों से पूछा गया कि दोनों समुदायों को एक दूसरे के धार्मिक जुलूसों पर क्या एतराज है?
दोनों का जवाब था कि शिया जिन इमाम हुसैन का जुलूस निकालते हैं उन्हें सुन्नी भी मानते हैं और सुन्नी जिन मोहम्मद साहब का जुलूस निकालते है उन्हें शिया भी मानते हैं। लेकिन दोनों समुदायों में दोनों के धार्मिक जुलूस तब दंगे का रूप इख्तियार कर लेते है जब कुछ सियासी एजेंट धार्मिक जुलूस के नाम पर दंगाइयों की भीड़ इकट्ठा करके दूसरे समुदाय से टकराव की स्थिति पैदा कर देते हैं। ये लोग सियासी एजेंट होते है।

यानी पहले सियासत के दलाल चंद शिया-सुन्नी धर्म के कंधे पर नफरत की बंदूक रखकर दंगे कराते थे।
वक्त ने बहुत कुछ बदलाव दिखाये, सियासी चालें भी बदलती देखीं। अब राष्ट्रवाद के कंधे पर भी सियासत के दलालों की भगवा बंदूकें चलते देख रहा हूं। धर्म और अब राष्ट्रवाद जैसे पवित्र चंदन पर जहरीले नाग लिपटे हैं। ये चंदन को इस्तेमाल करके इसी को डस भी लेते हैं। भारत माँ रो रही हैं। सियासत के राक्षसों तुमने माँ के एक चंदन को छीन लिया। कितने और चंदन छीनोगे !
रब खैर करे, लोक सभा चुनाव में मात्र एक वर्ष शेष है।

अब कोई चंदन किसी जहरीले नाग को अपने करीब ना आने दे।

नवेद शिकोह (स्वामी नवेदानंद)
8090180256

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