वक्त से आगे थे बाबा साहेब, ऐसे मिला था ‘आंबेडकर’ उपनाम

जैसे-जैसे समय बीता है, वैसे-वैसे डॉ. भीमराव आंबेडकर और जीवंत हुए हैं. आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, बीएसपी सुप्रीमो मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव जैसे नेता अपने-अपने ढंग से उनकी विरासत पर दावा जता रहे हैं. चुनाव हो या फिर आन्दोलन डॉ. आंबेडकर चर्चा में बने ही रहते हैं. आखिर क्यों 20वीं सदी के महान चिंतकों में से एक डॉ. आंबेडकर 21वीं सदी में इतने प्रभावी बने हुए हैं? इस सवाल का जवाब आज उनके 127वें जन्म दिन के मौके पर जानने की कोशिश करते हैं.

भारत रत्न डॉ. बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर का जन्म दिवस आज पूरे देश में मनाया जा रहा है. जगह-जगह पर उनके त्याग, समर्पण और उपब्लधियों को झांकियों के जरिए दिखाया जा रहा है. युगों-युगों में एक मसीहा पैदा होता है, जिनके विचारों का देश, समाज पर गहरा असर पड़ता है. उनके विचार युगों को बदल जाते हैं. ऐसे ही युग-प्रर्वतक विचार डॉ. आंबेडकर ने दिए हैं. उन्होंने अर्थ-नीतियों से लेकर सामाजिक नीतियों तक, वेलफेयर स्टेट, दलित, किसान, मजदूर और महिला अधिकार जैसे मुद्दों पर गहन विचार दिए हैं. ये विचार आज भी प्रासंगिक हैं. जिनका फायदा आज समाज के हर तबके को हो रहा है.

14 अप्रैल 1891 को डॉ. आंबेडकर मध्यप्रदेश के महू में एक महार परिवार में पैदा हुए. उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल ब्रिटिश आर्मी में सुबेदार जबकि मां भीमाबाई गृहणी थीं. वह अपने चौदह भाई, बहन में सबसे छोटे थे. उनका परिवार मराठी भाषी था और मूल रूप से वो महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के अंबावाड़ी के थे. पिता रामजी ने आंबेडकर की पढ़ाई पर शुरू से ही ध्यान दिया.

डॉ. आंबेडकर ने 1907 में बम्बई के गर्वमेंट हाई स्कूल से मैट्रिक परीक्षा पास की. ऐसा करने वाले वह हिंदुस्तान के पहले महार थे. इससे अंचभित होकर उनके गुरु ने बालक सकपाल से कहा, ‘आज तुमने पूरे अंबावाड़े गांव का पूरा नाम रोशन किया है, तो तुम आज से आंबेवाड़ीकर कहलाओगे.’ और यहीं उनका सरनेम सकपाल से बदलकर आंबेडकर हो गया. बाद में उन्होंने एलफिंस्टन कॉलेज (उस वक्त के बंबई और अब मुंबई) से ग्रेजुएशन की.हायर एजुकेशन के लिए डॉ. आंबेडकर बड़ौदा के शासक सैयाजीराव गायकवाड़ से मिली स्कॉलरशिप की मदद से अमेरिका गए. 1917 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी से Ph. D. की. इसी साल उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में एडमिशन लिया. स्कॉलरशिप बंद होने से उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी, लेकिन 1920-1923 के बीच आंबेडकर फिर लंदन गए. लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी की. इसके लिए उन्हें D.Sc. की डिग्री उपाधि मिली.

विदेश में पढ़ाई के दौरान आंबेडकर ने ‘द इवोल्यूशन ऑफ फाइनेंस इंडियन रुपी’, ‘नेशनल डेवलपमेंट ऑफ इंडिया ए हिस्टोरिकल एंड एनालेटिकल’ और ‘प्रॉब्लम ऑफ रूपीज एंड करेंसी इन इंडिया’ जैसी महत्वपूर्ण थ्योरियां लिखीं. और जब 1934 में हिल्टन कमीशन भारत में आया तो बाबा साहब की थ्योरी ‘प्रॉब्लम ऑफ रूपीज एंड करेंसी इन इंडिया’ के आधार पर देश में रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) की स्थापना हुई. इसके अलावा देश को वित्त आयोग, स्वतंत्र चुनाव आयोग, दामोदर घाटी परियोजना, एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज और पानी-बिजली की ग्रिड स्थापना भी आंबेडकर ही देन हैं.

तत्कालीन परिदृश्य में दलितों के साथ हो रहे सामाजिक भेदभाव से डॉ. आंबेडकर आहत थे. वह समाज में व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समानता और भातृत्व देखने चाहते थे. आंबेडकर जानते थे कि वो जिस समाज के लिए संघर्ष कर रहे हैं वो आर्थिक, शैक्षणिक और राजनीतिक, हर तरह से कमजोर है. इसलिए उन्होंने दलित उत्थान के लिए चौतरफा लड़ाई लड़ी. उन्होंने दलितों में शिक्षा, संस्कृति के प्रसार, उनके सामाजिक-आर्थिक-राजनीति विकास के लिए 1924 में ‘बहिष्कृत हित कारणी’ सभा गठित की. साथ ही 1927 में मुंबई में आंबेडकर ने महार मार्च निकाला और पब्लिक वाटर सोर्सेस पर सबके अधिकार होने की वकालत की.

शोषित वर्ग के हक के लिए 1929 में डॉ. आंबेडकर ने साइमन कमीशन का समर्थन करने से भी नहीं पीछे हटे. 1930 में उन्होंने दलितों के मंदिर में प्रवेश को नासिक में आन्दोलन किया. यह आन्दोलन सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों को लेकर उनके संघर्ष की दिशा में ये मील का पत्थर साबित हुआ. आंबेडकर ने तीनों गोलमेज सम्मेलनों में हिस्सा लिया और यहां शोषित वर्ग के कल्याण की जोरदार से मांग उठाई.

दरअसल, डॉ. आंबेडकर शोषित वर्ग के सामाजिक उत्थान के साथ-साथ देश के शासन तंत्र में भी उनकी भूमिका हो, ये चाहते थे. इसलिए डॉ. आंबेडकर ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री रामसे मैकडॉनल्ड को संबोधित करते हुए कहा कि–

12 दिसंबर, 1932 में आंबेडकर और बापू के बीच पूना पैक्ट हुआ. दरअसल, आंबेडकर ने दलितों के लिए अलग निर्वाचक मंडलों की मांग की थी. ब्रिटिश पीएम ने उनकी इस मांग को स्वीकार भी कर लिया था. लेकिन, महात्मा गांधी ने डॉ. आंबेडकर के ‘सेपरेट इलेक्टोरल’ प्रस्ताव के विरोध में थे और वो आमरण अनशन पर बैठ गए. अंतः में डॉ. आंबेडकर ने गांधी जी की बात मानी और पूना पैक्ट पर दस्तखत हुए.
इस पैक्ट से चुनाव क्षेत्रों के साथ सरकारी नौकरियों और विधानमंडलों में दलितों के लिए आरक्षण की बात मान ली गई लेकिन पृथक निर्वाचक मंडलों की बात खारिज कर दी गई.

डॉ. आंबेडकर ने ‘अछूत कौन और कैसे?’, ‘कांग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिए क्या किया’ किताब में उन्होंने दलितों के प्रति कांग्रेस और गांधी के दोहरे रवैए को व्यक्त किया है, तो वहीं ‘हू आर शूद्राज्’ बुक में उन्होंने दलितों को शूद्रों से अलग बताया है. दलितों के पृथक निर्वाचन अधिकार पर गांधी के आगे समर्पण करने को वह भले ही मजबूर हुए हों, लेकिन ‘एनिहिलेशल ऑफ कास्ट’ में उनके निशाने पर गांधी ही थे.

मंदिरों में दलितों के प्रवेश और सार्वजनिक कुओं तक उनकी पहुंच के लिए ही नहीं महिलाओं और मजदूरों के समान हित के लिए भी आंबेडकर को खड़े होते हिए देखा गया. महिला श्रमिकों को वेतन समेत छुट्टियों का प्रावधान, समान काम के लिए पुरुषों के समान वेतन, उनकी शिक्षा, अनचाहे गर्भ से मुक्ति महिलाओं का अपना अधिकार, महिला का देह पर और कोख पर अपना अधिकार हो इन क्रांतिकारी अधिकारों की पैरवी आंबेडकर ने की.

संविधान के मुख्य वास्तुकार के रूप में आंबेडकर के योगदान को भूलाया नहीं जा सकता है. उन्होंने 1948 में संविधान सभा के सामने हिंदू कोड बिल पेश किया. ये बिल संयुक्त और अविभाजित हिंदू परिवार में संपत्ति के अधिकार से जुड़ा था. इसके अलावा इसमें स्त्रियों को अपनी मर्जी से विवाह और तलाक होने पर पति से अलग रहने पर गुजारा भत्ता, गोद लेने खासकर बच्ची को भी गोद लिए जाने और बच्चों के संरक्षण का भी अधिकार भी दिया. लेकिन कट्टर हिंदुओं और कांग्रेस के अंदर उठे विरोध के चलते ये बिल पास न हो सका. इससे नाराज आंबेडकर ने 1951 में कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. हालांकि, बाद में ये बिल टुकड़ों में बांट कर पास किया गया.

इसलिए 14 अक्टूबर 1956 को डॉ. आंबेडकर ने नागपुर की दीक्षा भूमि में अपने 10 लाख अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली. इसी साल डॉक्टर आंबेडकर ने ‘बुद्धा एंड हिज’ धम्म लिखी. जीवन के आखिरी समय भी आंबेडकर समाज के हित की दिशा में काम करते रहे. उनकी आखिरी पुस्तक ‘बुद्धा और कार्लमास्क’ थी. इस किताब को उन्होंने अपनी मृत्य के 4 दिन पहले ही पूरा किया. 6 दिसंबर 1956 को बाबा साहेब पंचतत्व में विलीन हो गए. आज भारत डॉ. आंबेडकर के योगदान का कृतध्न है, उनके कार्यों के लिए 1990 में उन्हें देश के सर्वोच्चय सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया.

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