BJP के दलित सांसद अचानक ‘बागी’ क्यों दिख रहे हैं?
सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी/एसटी एक्ट में संशोधन की व्यवस्था दिए जाने के बाद दो अप्रैल को दलितों के भारत बंद के बाद अचानक सियासत ने तेजी से करवट लेनी शुरू कर दी है. विपक्ष एक तरफ जहां बीजेपी को दलित विरोधी कह रही है, वहीं बीजेपी यह दावा कर रही है कि उसकी सरकार ने ही बाबा साहब डॉ आंबेडकर को सबसे ज्यादा सम्मान दिया है. इस बीच अप्रत्याशित रूप से बीजेपी के कई दलित सांसदों ने इस मसले पर परोक्ष रूप से अपनी ही पार्टी से नाराजगी जाहिर की है. सबसे पहले बहराइच से बीजेपी सांसद सावित्री बाई फुले ने बागी तेवर अपनाए. उसके बाद यूपी से ही कई अन्य दलित सांसदों ने अपनी आवाज उठाई. अब बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि आखिर चार साल तक सत्ता में रहने के बाद ये दलित नेता अलग राग क्यों अलाप रहे हैं? क्या इनका बीजेपी से मोहभंग हो गया है? हालांकि विपक्ष यह भी कह रहा है कि दलितों के आंदोलन को समाप्त करने के लिए बीजेपी की ही यह साजिश है.
14 अप्रैल या 2019?
14 अप्रैल को बाबा साहब डॉ भीमराव आंबेडकर का जन्मदिन है. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दलित राजनीति में जो उबाल देखने को मिल रहा है, उसके पीछे तात्कालिक कारण बाबा साहब का जन्मदिन है. इसके साथ ही अगले एक साल के भीतर लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. इन सबके बीच सबसे बड़ी बात यह है कि यूपी में सपा-बसपा के बीच गठबंधन की चर्चा चल रही है. ऐसा होने की स्थिति में कई सुरक्षित सीटों पर बीजेपी प्रत्याशी को कड़ी चुनौती मिलना तय माना जा रहा है. इसलिए ही सत्ता में रहते हुए चार वर्षों की खामोशी के बाद अचानक इन दलित नेताओं ने दलितों की बात उठानी शुरू कर दी है. इन सबके बीच दबे सुर में यह भी कहा जा रहा है कि इनमें से कई बीजेपी दलित नेता ऐसा भी हैं जिन्होंने अपने क्षेत्र में कोई खास काम नहीं किया है. लिहाजा इनका टिकट कट सकता है. इसलिए इन्होंने अपनी सियासी जमीन तलाशने के लिए बागी तेवर दिखाने शुरू किए हैं.
बदलते सियासी समीकरण
राजनीतिक हलकों में यह भी कहा जा रहा है कि जिन दलित सांसदों ने आवाज उठाई है, उनमें से अधिकांश दलबदलू नेता हैं. अब सपा-बसपा की दोस्ती की आहट के बीच ये फिर से इन दलों की तरफ लौटने का रास्ता तलाश रहे हैं. मसलन दलितों के लिए रैली करने वाली बहराइच से सांसद सावित्री बाई फुले भले ही पिछले एक दशक से बीजेपी में हैं लेकिन उनकी पृष्ठभूमि बामसेफ और बसपा से है. इसी तरह दलितों के मुद्दे पर प्रधानमंत्री को खत लिखने वाले बिजनौर में नगीना के बीजेपी सांसद डॉ यशवंत सिंह रालोद और बसपा से विधायक रहने के बाद 2014 से ऐन पहले बीजेपी में शामिल होकर सांसद बने. अब अचानक उनके विद्रोही तेवर के बारे में कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में किसी अन्य दल से नई पारी शुरू कर सकते हैं.
सियासी हलकों में कमोबेश यही चर्चा रॉबर्ट्सगंज के सांसद छोटेलाल खरवार और मायावती सरकार में मंत्री रह चुके बीजेपी सांसद अशोक दोहरे के बारे में भी हो रही है. इसी तरह कई अन्य दलित बीजेपी सांसद भी विरोध करने का मन बना रहे हैं. जैसे कि यूपी के रहने वाले और दिल्ली से सांसद उदित राज ने भी दलितों के मुद्दे पर आवाज उठाई है. उन्होंने तो 2014 के चुनाव से पहले अपनी इंडियन जस्टिस पार्टी का बीजेपी में विलय कर लिया था.