स्‍वतंत्रता के सारथी: एक प्रयास और हुनरमंद हाथों से दौड़ी जिंदगी की गाड़ी

ये उन महिलाओं और युवतियों की कहानी है, जिनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत बेहतर नहीं थी। जिंदगी की पटरी पर परिवार की गाड़ी मुश्किल से सरक रही थी, लेकिन फिर हाथ हुनरमंद हुए और इन महिलाओं ने एक-दूसरे का हाथ थामा। पहले तरह-तरह के पापड़ चिप्स बनाना सीखा और फिर उसे बाजार में बेचा। सामूहिक काम से जो आय होती है, उससे परिवार की गाड़ी सरपट दौड़ने लगी।

ये वह महिलाएं व युवतियां हैं, जो घर खर्च में मदद के लिए करना तो बहुत कुछ चाहती थीं, लेकिन कोई रास्ता नहीं था। ऐसे में मोहित सामाजिक सेवा संस्थान की अभिलाषा गुप्ता से उनकी मुलाकात हुई। करीब पांच साल पहले अभिलाषा ने उन्हें सुझाव दिया कि वह सामूहिक रूप से काम करेंगी, तो कमाई होगी। सवाल था कि काम क्या करें, ऐसे में उन्हें पापड़, चिप्स व अन्य चीजें बनाने को कहा। तरह-तरह के पापड़ और चिप्स बनाने का महिलाओं का ज्ञान नहीं था, ऐसे में उन्हें इसके लिए बकायदा प्रशिक्षण दिया गया। नीलम, चंचल, पिंकी, रश्मि, मधु, प्रियंका, वंदना, नेहा, बुलबुल समेत दस महिलाओं को उन्होंने प्रशिक्षण दिया। कुछ दिन प्रशिक्षण लेने के बाद जब वह बनाने में हुनरमंद हो गईं, तो काम शुरू हो गया।

अभिलाषा बताती हैं कि रोज जो भी माल तैयार होता है, उसे बाजार में बेचने की समस्या थी। ऐसे में उन्होंने बाजार में माल की ब्रांडिंग की। माल पैकिंग होकर बिकने लगा, तो मांग बढ़ गई। काम में लगी महिला और युवतियों को ये काम रास आने लगा। माल बेचने और लागत निकलने के बाद जो भी कमाई होती है, वह महिलाओं में बंट जाती है। परिवार की गाड़ी चलाने में मदद मिलती है।

यहां काम करने से हो जाती है हमारी अच्छी खासी कमाई

यहां काम करने वाली प्रियंका कहती हैं कि पापड़, चिप्स और वंदनवार बनाकर अच्छी खासी कमाई होती है। तीन हजार रुपये तक हर माह कुछ घंटे की मेहनत में ही आ जाते हैं। अभिलाषा बताती हैं कि इस कमाई से महिलाओं के बच्चों की पढ़ाई पर भी अलग से खर्च होता है। इससे बच्चों का भविष्य भी संवर रहा है। धीरे-धीरे काम बढ़ेगा, तो और महिलाओं को इससे जोड़ा जाएगा।

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