इस शहर में हर शख्स थका-थका सा और परेशान सा क्यों है? डॉक्टरों ने बताई ये वजह

 कहा जाता है कि दिनभर काम और तनाव के बाद यदि रात को चैन की नींद आ जाए तो सारी थकावट दूर हो जाती है। सात से आठ घंटे की सामान्य नींद के बाद की सुबह ताजगी भरी हो सकती है। तन और मन की तरोताजगी के लिए जरूरी है कि नींद गहरी आए साथ ही नींद के बीच में रुकावट न हो। अनयमित दिनचर्या, तनावपूर्ण जीवनशैली शराब पीना, धूमपान करना और अपौष्टिक आहार के कारण शहरी क्षेत्र का हर दसवां आदमी चैन की नींद की तलाश में है। नींद न आने का हल नींद वाली दवाएं खाने में नहीं है, बल्कि इसके लिए कई चरणों में किए गए क्रमबद्ध प्रयास स्वाभाविक नींद दे सकते हैं। आइए जानते हैं इस संदर्भ में विशेषज्ञ चिकित्सकों की राय…

क्या है सामान्य नींद
एक स्वस्थ व्यक्ति को बिस्तर पर जाने के बाद 10 से 15 मिनट के अंदर नींद आ जाती है। इसके लिए उसे प्रयास नहीं करना पड़ता। चिकित्सकीय भाषा में बेहतर नींद को दो तरह से समझा जा सकता है। यदि आप सो रहे हैं तो यह जरूरी नहीं कि हमेशा ही आप गहरी नींद में सो रहे हैं। नींद दो प्रमुख तरह की होती है, जिसे एनरेम और रेम के नाम से जाना जाता है। एनरेम पहले चरण की अवस्था होती है। एनरेम में तीन चरणों में नींद आती है। पहले चरण में गर्दन पर नियंत्रण खो जाता है, लेकिन आंखों की पुतलियां घूमती रहती हैं। एनरेम की दूसरी अवस्था में मस्तिष्क शिथिल हो जाता है। शरीर द्वारा मस्तिष्क को भेजी जाने वाली तरंगें धीमी हो जाती हैं और बाहरी दुनिया से ध्यान हट जाता है। तीसरे चरण के एनरेम में मस्तिष्क ही नहीं शरीर भी सामान्य हो जाता है। इस स्थिति को सपने देखने के लिए भी जाना जाता है। एनरेम की तीनों स्थितियां पूरी होने के बाद रेम नींद आती है। हालांकि रेम नींद को लेकर विशेषज्ञ एकमत नहीं हैं, जबकि यह सही है कि एनरेम में शिथिल होने वाला मस्तिष्क नींद की इस अवस्था में जाकर सक्रिय हो जाता है। स्वस्थ रहने के लिए नींद के इस चक्र का पूरा होना जरूरी है।

नींद पर ग्रहण 
नींद का महत्व जानते हुए भी कई लोग अच्छी नींद के लिए रातभर करवट बदलते रहते हैं। नींद आना एक बेहद स्वाभाविक प्रक्रिया है। बावजूद इसके, लोग नींद न आने से परेशान रहते हैं, जिसे एक तरह का साइक्रेटिक डिस्ऑर्डर माना जाता है। इंसोमेनिया और ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया दो बीमारियां हैं, जिनमें नींद हमसे कोसों दूर हो जाती है। दोनों ही स्थितियों का इलाज जल्दी न होने से अन्य परेशानियां हो सकती हैं।

इंसोमेनिया
नींद न आना, जबरदस्ती नींद का प्रयास करना, करवटें बदलना या फिर टहलकर रात बिताने की मजबूरी ही इंसोमेनिया कहलाती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि इंसोमेनिया कई कारणों से हो सकता है साथ ही कई परेशानियों की वजह हो सकता है। शारीरिक श्रम की तुलना में मानसिक श्रम अधिक करने की स्थिति में भी नींद गायब हो सकती है, जबकि इंसोमेनिया होने के बाद काम में एकाग्रता की कमी, चिड़चिड़ापन, शरीर में ऊर्जा की कमी, थकान, आलस्य जैसी परेशानियां पैदा हो सकती हैं।

ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया (ओएसए)
इस स्थिति में असामान्य दिनचर्या या काम के तनाव की वजह से नहीं, बल्कि सांस लेने में रुकावट की वजह से नींद बाधित होती है। कई बार स्लीप एप्निया के शिकार लोग खर्राटे लेकर भी सो जाते हैं, लेकिन इसे बेहतर नींद नहीं कहा जा सकता। गले के टांसिल बढ़ने, सांस की नलियां संकुचित होने या फिर साइनस की वजह से भी स्लीप एप्निया की शिकायत हो सकती है। सामान्य व्यक्ति को यदि सांस लेने के लिए गहरी सांस लेनी पड़ती है या फिर जम्हाई लेनी पड़ती है तो यह ओएसए के लक्षण हो सकते हैं। सीपीएपी (कांटिनुअस पॉजिटिव एअरवे प्रेशर) के जरिए इस तकलीफ को दूर किया जा सकता है। किसी भी सूरत में नींद न आने के सही कारणों का पता लगाना जरूरी है।

स्लीपिंग लैब है समाधान
अनिद्रा के बढ़ते मामलों को देखते हुए स्लीपिंग लैब का चलन भी मेट्रो शहरों में बढ़ गया है। निजी कंपनियों ने एनसीआर में 16 व देश भर में 145 स्लीपिंग लैब खोलने की योजना बनाई है। हालांकि, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के साइकोलॉजी विभाग में बीते 15 साल से अनिद्रा व अनियमित दिनचर्या संबंधी बीमारियों पर शोध किया जा रहा है, जिसके लिए एम्स में दो स्लीपिंग लैब्स बनाई गई हैं। इनमें पहले अनिद्रा के शिकार लोगों की जांच की जाती है। इस जांच से सेंट्रल न्यूरांस का विश्लेषण किया जाता है। लैब के फाइबर के चेंबर में सोने की सामान्य स्थितियां पैदा की जाती हैं। इस दौरान व्यक्ति के सोने के तीनों चरण, शरीर का तापमान, मस्तिष्क की क्रियाशीलता की मॉनिटरिंग की जाती है। इस प्रक्रिया को आइंटोफोरेनिक अध्ययन कहा जाता है। इससे चार चरण के स्लीपिंग डेमो में अनिद्रा के कारणों का पता लगाया जाता है। इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी से मरीज को नींद आने के लिए सामान्य किया जाता है। चार से पांच चरण के डेमो में मरीज की समस्या दूर हो जाती है।

प्राकृतिक उपचार भी हैं कारगर
बेहतर नींद के लिए प्राकृतिक उपचार का सहारा ले सकते हैं। अनिद्रा का एक कारण मस्तिष्क की एकाग्रता की कमी भी हो सकती है। इस बिंदु को ध्यान में रखकर ही मेडिटेशन को महत्व दिया जा रहा है। सोने से पहले गुनगुने पानी में पैर रखकर बेहतर नींद आ सकती है। मेथी को पीसकर इसका पाउडर गर्म पानी में डालकर पिएं या फिर इसे लस्सी या मट्ठे में भी मिला सकते हैं। सोते समय दिमाग इधर-उधर न भटके, इसके लिए ऊँ नम: शिवाय या फिर अन्य धार्मिक मंत्रों का उच्चारण कर सकते हैं। अच्छी किताबें पढ़कर भी अच्छी नींद आ सकती है। अनिद्रा के इलाज के लिए अब विशेषज्ञ होलीस्टिक एप्रोच के जरिए भी समाधान तलाश रहे हैं। इसके लिए अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान में मड थेरेपी, पंचकर्म क्रिया सहित कुछ विशेष आसन भी कराए जाते हैं।

नींद की गोली लेने से बचें
बेहतर नींद के लिए नींद की गोलियों का सहारा लेना ठीक नहीं है। इनके मस्तिष्क पर नकारात्मक असर को देखते हुए ही इन्हें नारकोटिक्स दवाओं की श्रेणी में रखा जाता है। नींद की दवाएं मस्तिष्क के न्यूरांस को निष्क्रिय कर, उसे सुस्त कर देती हैं। दवाएं लेने का मतलब है कि हम मस्तिष्क को जबरन नींद की एनरेम अवस्था में लाना चाहते हैं। नियम के अनुसार स्लीपिंग पिल्स के नाम से जानी जाने वाली ये दवाएं ओटीसी (ओवर द काउंटर) सीधे दवा विक्रेता से नहीं ली जा सकती है। दमा, दिल के मरीज या फिर दर्द के कारण अनिद्रा के शिकार मरीजों को ये दवाएं डॉक्टर के परामर्श के बाद ही दी जाती हैं। बावजूद इसके, नींद के लिए दवाओं का इस्तेमाल युवा वर्ग भी कर रहा है। नींद की गोलियों का लंबे समय तक प्रयोग मस्तिष्क की क्रियाशीलता को कम करके, याद्दाश्त को कमजोर कर सकता है। दवाओं के नकारात्मक असर के कारण मुंह सूखना और भूख कम लगना आदि समस्याएं हो सकती हैं।

यदि चाहिए अच्छी नींद

  • सोने से पहले टेलीविजन न देखें
  • एल्कोहल, सिगरेट आदि का सेवन न करें
  • लाइट बंद करने के बाद मोबाइल की स्क्रीन न देखें
  • अपनी व्यक्तिगत बातों को डायरी में लिखें या किसी अपने से शेयर करें
  • ऐसे कार्य करें, जो आपको खुशी दें। इससे सेरोटोनिन हार्मोंस का स्राव होगा। यह हार्मोंस अच्छी नींद लाने में कारगर होता है।

अनिद्रा से संबंधित आंकड़े

  • 58 प्रतिशत भारतीयों का काम अनिद्रा के कारण प्रभावित होता है
  • 33 प्रतिशत लोग सोते समय खर्राटे लेते हैं, जो असामान्य बात है
  • 38 प्रतिशत लोग ऑफिस में अपने सहकर्मियों को सोते हुए देखते हैं
  • 11 प्रतिशत भारतीय नींद न आने के कारण ऑफिस से छुट्टी ले लेते हैं
  • केवल दो प्रतिशत भारतीय ही अपने सोने संबंधी समस्या लेकर डॉक्टरों के पास परामर्श लेने जाते हैं। कारण, उन्हें डॉक्टर के पास जाने में झिझक महसूस होती है।
  • नोट- आंकड़े स्लीपिंग डिस्ऑर्डर पर नेशनल एसोसिएशन फॉर स्लीप एप्निया द्वारा जारी।

(इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलायड साइंस के मनोचिकित्सक डॉ. ओमप्रकाश, एम्स के मनोचिकित्सा विभाग के डॉ. नंदकुमार और आयुर्वेदाचार्य डॉ. आरपी पाराशर द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार)

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