कभी ढिबरा चुनकर करती थी रोटी का जुगाड़, अब राज्यपाल ने की सराहना

13 साल की चंपा कभी खुद बाल मजदूर थी। आज वह अपने हमउम्र हजारों बच्चों की आवाज बन चुकी है। उसने अपने प्रयास से न सिर्फ बाल श्रम के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की, बल्कि कम उम्र में होने वाली कई शादियों तक को रोक पाने में सफलता अर्जित की। बाल अधिकारों के हनन के विरुद्ध राष्ट्रीय स्तर तक आवाज उठा चुकी चंपा आज द डायना अवार्ड (यूनाइटेड किंगडम) 2019 की विजेता है।

राष्ट्रीय महा बाल पंचायत की उपाध्यक्ष चंपा ने मंगलवार को कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन के अन्य कार्यकर्ताओं के साथ राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की। राज्यपाल ने चंपा के कार्यों की सराहना की तथा उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की। छह भाई-बहनों वाली चंपा मूल रूप से गिरिडीह के गवां प्रखंड स्थित जामदार गांव की निवासी है।

कभी उसके दिन की शुरुआत अपने भाई-बहनों के साथ ढिबरा बीनने और शाम उसे बेचकर रोटी के जुगाड़ में बीतता था। 2016 में एक रैली के दौरान कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन के कार्यकर्ताओं से वह मिली। चंपा ने जब पढऩे की इच्छा जताई तो उसका नामांकन गांव के ही हाई स्कूल में कराया गया। आज वह पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों के हित में आवाज बुलंद कर रही है।

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