नर हो न निराश करो मन को, कुछ काम करो, कुछ काम करो…मैथिलीशरण गुप्त

किसी भी देश का साहित्यकार समाज का निर्माता होता है!मैथिलीशरण गुप्त ने समाज और देश को वैचारिक पृष्ठभूमि दी, जिसके आधार पर नया दर्शन विकसित हुआ है! उन्होंने शब्द शिल्पी का ही नहीं, बल्कि साहित्यकार कहलाने का गौरव प्राप्त किया है, जिनके शब्द आज भी मानवजाति के हृदय को स्पंदित करते रहते हैं!ब्रजभाषा में अपनी रचनाओं को लिखने की उनकी कला ने उन्हें बहुत जल्दी प्रसिद्ध बना दिया! प्राचीन और आधुनिक समाज को ध्यान में रखकर उन्होंने कई रचनाएं लिखीं! उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से जन जागरण का काम किया! भारत की आजादी में भी उनका विशेष योगदान रहा है!भारत दर्शन की काव्यात्मक प्रस्तुति ‘भारत-भारती’ निश्चित रूप से किसी शोध से कम नहीं आंकी जा सकती!

चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,
स्वच्छ चांदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।

पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
मानों झूम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से!!

मैथिलीशरण गुप्त हिंदी साहित्य के जाने माने कवी औऱ बहुत सी रचनाओं से उन्होंने सभी का दिल जीता था! वे हिंदी साहित्य के कड़ी बोली के बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रथम कवी माने जाते है! वह कवी होने के साथ देश भगत भी थे! वे गांधी जी से बहुत प्रभावित थे! उन्हीं से प्रभावित होकर ही उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा भी लिया था! जिसके चलते कुछ समय तक कारावास में भी बिताया! 1952 व 1957 में राष्ट्रपति द्वारा भारतीय राज्य सभा के सदस्य नियुक्त किये गए!कविता लिखने वाले गुप्त ने 1914 में राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत ‘भारत भारती’ लिखी! 1916-17 में उन्होंने ‘साकेत’ लिखना शुरू किया! इसके बाद उन्होंने 1931 में उन्होंने ‘पंचवटी’ लिखी!महात्मा गांधी ने राष्ट्रकवि का दर्जा दिया! 1953 में उन्हें पद्मविभूषण और फिर 54 में पद्मभूषण प्रदान किया गया! हिन्दी के सर्वाधिक प्रभावी और लोकप्रिय रचनाकारों में से एक हैं! उनकी कविताओं में बौद्ध दर्शन, महाभारत और रामायण के कथानक स्वत: उतर आते हैं!

मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त, 1886 को झांसी के समीप चिरगांव में हुआ था! बचपन में स्कूल जाने में रूचि न होने के कारण इनके पिता सेठ रामचरण गुप्त ने इनकी शिक्षा का प्रबंध घर पर ही किया था और इसी तरह उन्होंने संस्कृत, अंग्रेजी और बांग्ला का ज्ञान प्राप्त किया!बारह साल की उम्र से गुप्त ने कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं! काव्य-लेखन की शुरुआत उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं में अपनी कविताएं प्रकाशित कर की! इन्हीं पत्रिकाओं में से एक “सरस्वती” आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के संपादन में निकलती थी! युवक मैथिली ने आचार्यजी की प्रेरणा से खड़ी बोली में लिखना शुरू किया! 1910 में उनकी पहला प्रबंधकाव्य “रंग में भंग” प्रकाशित हुआ! “भारत-भारती” के प्रकाशन के साथ ही वे एक लोकप्रिय कवि के रूप में स्थापित हो गए! उन्होंने पराधीनता काल में मुंह खोलने का साहस न करने वाली जनता का नैराश्य-निवारण करके आत्मविश्वास भरी ऊर्जामयी वाणी दी, इससे ‘भारत-भारती’ जन-जन का कंठहार बन गई थी! इस कृति ने स्वाधीनता के लिए जन-जागरण का शंखनाद किया! हिन्दी साहित्य में गद्य को चरम तक पहुंचाने में जहां प्रेमचंद्र का विशेष योगदान माना जाता है, वहीं पद्य और कविता में राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त को सबसे आगे माना जाता है! इनकी ओजस्वी कविताएं स्वतंत्रता संग्राम के दौरान आजादी के मतवालों की जुबान पर रहती थीं!महात्मा गांधी के भारतीय राजनीतिक जीवन में आने से पूर्व गुप्तजी का युवा मन गरम दल और तत्कालीन क्रांतिकारी विचारधारा से प्रभावित हो चुका था! लेकिन बाद में महात्मा गांधी, राजेन्द्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरू और विनोबा भावे के संपर्क में आने के कारण वह गांधीवाद के व्यावहारिक पक्ष और सुधारवादी आंदोलनों के समर्थक बने!

देशभक्ति से भरपूर रचनाएं लिख उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में एक अहम काम किया! वे भारतीय संस्कृति एवं इतिहास के परम भक्त थे! परंतु अंधविश्वासों और थोथे आदर्शों में उनका विश्वास नहीं था! वे भारतीय संस्कृति की नवीनतम रूप की कामना करते थे! पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय संबंधों की रक्षा गुप्त जी के काव्य के प्रथम गुण हैं, जो पंचवटी से लेकर ‘जयद्रथ वध’, ‘यशोधरा’ और ‘साकेत’ तक में प्रतिष्ठित एवं प्रतिफलित हुए हैं! ‘साकेत’ उनकी रचना का सर्वोच्च शिखर है! लेकिन ‘भारत-भारती’ उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना मानी जाती है! इस रचना में उन्होंने स्वदेश प्रेम को दर्शाते हुए वर्तमान और भावी दुर्दशा से उबरने के लिए समाधान खोजने का एक सफल प्रयोग किया है!

1954 में उन्हें पद्मभूषण से नवाजा गया! इसके अतिरिक्त उन्हें हिन्दुस्तानी अकादमी पुरस्कार, साकेत पर इन्हें मंगला प्रसाद पारितोषिक तथा साहित्य वाचस्पति की उपाधि से भी अलंकृत किया गया! काशी विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट्. की उपाधि प्रदान की जा चुकी हैं! मध्य प्रदेश शासन द्वारा साहित्य और कलाओं को प्रोत्साहन देने के लिए अनेक राष्ट्रीय और राज्य स्तर के सम्मानों की स्थापना की गयी है! हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में ‘वार्षिक सम्मान’ का नाम खड़ी बोली के शीर्ष कवि श्री मैथिलीशरण गुप्त की स्मृति में रखा गया है! यह सम्मान वर्ष 1987-88 से प्रारम्भ किया गया! इस सम्मान के अन्तर्गत एक लाख रुपये की राशि तथा प्रशस्ति पट्टिका भेंट की जाती है! राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान का उद्देश्य हिन्दी साहित्य में श्रेष्ठ लेखक, कवि को सम्मानित करना है! सम्मान के लिए रचनात्मकता, उत्कृष्टता और दीर्घ साहित्य साधना के मानदण्ड रखे गये हैं! सम्मान के लिये चुने जाने के समय रचनाकार का सक्रिय होना ज़रूरी है!

तेरे घर के द्वार बहुत हैं,
किसमें हो कर आऊं मैं?
सब द्वारों पर भीड़ मची है,
कैसे भीतर आऊं मैं.?

मैथिलीशरण गुप्त को साहित्य जगत में ‘दद्दा’ नाम से सम्बोधित किया जाता था!अपने जीवन में गुप्त जी ने गद्य, पद्य, नाटक, मौलिक और अनुवाद, सब मिलाकर हिंदी को लगभग 74 रचनाएं प्रदान कीं, जिनमें दो महाकाव्य, 20 खंड काव्य, 17 गीतिकाव्य, चार नाटक और गीतिनाट्य हैं! गुप्त जी कबीर दास के भक्त थे! पं महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से आपने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया!भारत-भारती’ की प्रस्तावना में स्वयं गुप्तजी लिखते हैं- यह बात मानी हुई है कि भारत की पूर्व और वर्तमान दशा में बड़ा भारी अन्तर है! अन्तर न कहकर इसे वैपरीत्य कहना चाहिए! स्वदेश प्रेम को दर्शाते हुए वर्तमान और भावी दुर्दशा से उबरने के लिए समाधान खोजने का एक सफल प्रयोग कहा जा सकता है!

समाज में शोषण, झूठ, अधिकारों का दमन, अनैतिकता एवं पराधीनता थी, उसे वह बदलना चाहता थे और उसके स्थान पर नैतिकता एवं पवित्रता से अनुप्राणित आजाद भारत देखना चाहते थे! इसलिए वे जीवनभर शोषण और अमानवीय व्यवहार के विरोध में आवाज उठाते रहे! उनके जीवन में सत्यं, शिवं और सुंदरं की स्थापना के लिए साहित्य की आवश्यकता रहती है और ऐसे ही साहित्य का सृजन गुप्तजी के जीवन का ध्येय रहा है!

“द्वारपाल भय दिखलाते हैं,
कुछ ही जन जाने पाते हैं,
शेष सभी धक्के खाते हैं,
क्यों कर घुसने पाऊं मैं.?

देश एवं समाज में क्रांति पैदा करने का उनका दृढ़ संकल्प समय-समय पर मुखरित होता रहा है! मैथिलीशरण गुप्त यद्यपि बालसाहित्य की मुख्यधारा में सम्मिलित नही तथापि उन्होंने कई बाल-कविताओं से हिन्दी बाल-काव्य को समृद्ध किया है! उनकी ‘माँ, कह एक कहानी’ कविता के अतिरिक्त ‘सर्कस’ व ‘ओला’ बाल-कविताएँ अत्यंत लोकप्रिय रचनाएं हैं! यहाँ उनकी बाल-कविताओं को संकलित किया गया है!

“जय जय भारत माता!
तेरा बाहर भी घर-जैसा रहा प्यार ही पाता!!
ऊँचा हिया हिमालय तेरा,
उसमें कितना दरद भरा!
फिर भी आग दबाकर अपनी,
रखता है वह हमें हरा!
सौ सौतो से फूट-फूटकर पानी टूटा आता!!

जब तक सूर्य का प्रकाश और मानव का अस्तित्व रहेगा, साहित्यकार का दायित्व भी इन प्रश्नों से जुड़ा रहेगा और तब तक गुप्तजी के अवदानों के प्रति हम नत होते रहेंगे!12 दिसंबर 1964 को दिल का दौरा पड़ने से राष्ट्रकवि गुप्त का निधन हो गया! हिन्दी कविता को रीतिकालीन श्रृंगार-परंपरा से निकालकर तथा राष्ट्रीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की संजीवनी से अभिसंचित करके लगभग छह दशक तक हिन्दी काव्यधारा का नेतृत्व मैथलीशरण गुप्त ने ही किया हैं!

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