कभी भैंसें पालती थीं पूनम, अब विदेश में जीता गोल्ड

21वें कॉमनवेल्थ खेलों में भारतीय वेटलिफ्टर पूनम यादव से जैसे प्रदर्शन की उम्मीद की जा रही थी, उन्होंने वैसा ही किया. पूनम ने 69 किलो भारवर्ग में भारत को वेटलिफ्टिंग में पांचवां गोल्ड मेडल दिलाया. इससे पहले पूनम ने ग्लास्गो में 2014 राष्ट्रमंडल खेलों में 63 किलो वर्ग में कांस्य पदक जीता.

पूनम ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 222 किलो ( 110 और 122 किलो ) वजन उठाया. इंग्लैंड की सारा डेविस 217 किलो वजन उठाकर दूसरे स्थान पर रहीं. कांस्य पदक फीजी की अपोलोनिया वेइवेइ को मिला, जिन्होंने 216 किलो वजन उठाया. महिलाओं की बात करें, तो भारत को मौजूदा गेम्स में इससे पहले वेटलिफ्टिंग में मीराबाई चानू और संजीता चानू गोल्ड मेडल दिला चुकी हैं. पूनम ने कहा ,‘ मुझे फीफी से अच्छी चुनौती मिलने की उम्मीद थी, इंग्लैंड से नहीं. सारा ने जब आखिरी लिफ्ट में 128 किलो वजन उठाने का फैसला किया तो मैं नर्वस थी क्योंकि वह उठा सकती थी.’

उन्होंने कहा ,‘लेकिन यह किस्मत की बात है. मुझे वह मिला जो मेरी तकदीर में था और उसे वह जो उसकी तकदीर में था. शुक्र है कि कुछ देर के लिए हमारे फिजियो को आने दिया गया, जिन्होंने मेरे घुटने पर पट्टी लगाई. मुझे वहां दर्दहो रहा था.’ 22 साल की पूनम यादव का यह मेडल बेहद खास है. जिंदगी की कई मुश्किलों को हराकर वो इस मुकाम तक पहुंची हैं. पूनम का जन्म वाराणसी के एक बेहद ही गरीब परिवार में हुआ था. उनके पिता कैलाश नाथ यादव दूध बेचकर परिवार का भरण-पोषण करते थे. उनके घर की स्थिति ऐसी थी कि कई बार चूल्हा तक नहीं जलता था.

एक समय में पूनम घर में भैंसों की देखरेख करती थीं. ऐसे हालात में उन्होंने वेटलिफ्टिंग शुरू की. मजबूत इरादों वाली पूनम ने जैसे ही वेटलिफ्टिंग को अपना करियर चुना, उसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने कहा, ‘मैंने अपनी बड़ी बहन के कहने पर भारोत्तोलन अपनाया और 2014 में भारतीय टीम के शिविर में आई. मेरे पिता ने मेरे प्रशिक्षण के लिए कर्ज लिया था.’ आज पूनम की गिनती देश की बेहतरीन वेटलिफ्टरों में की जाती हैं. वह रेलवे में अच्छे पद पर नौकरी कर रही हैं. कॉमनवेल्थ खेलों में गोल्ड मेडल जीतकर उन्होंने अपने प्रति देशवासियों और खेलप्रेमियों की उम्मीदें और बढ़ा दी हैं.

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